इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो

इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया लिरिक्स इन हिंदी

कलाम: हज़रत शाह नियाज़ बेनियाज़ रह.अ.


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इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो
ऐश व निशात-ए-जिंदगी छोड़ दिया, जो हो सो हो।

 

पूछो न मुझ ख़राब से यारों सलाह-ए-कार तुम
अपने तो अब रहे नहीं होश बजा, जो हो सो हो।

 

मुझसे मरीज़ को तबीब हाथ तू अपना मत लगा
इसको खुदा पे छोड़ दो बह्र-ए-ख़ुदा जो हो सो हो।

 

अक़्ल के मदरसे से उठ इश्क के मैय-कदे में आ
जाम ए फ़ना व बेख़ुदी अब तो पिया जो हो सो हो।

 

लाग की आग लगते ही पंबा नमत़ वह जल गया
रख़्त ए वजूद ए जान व तन कुछ ना बचा जो हो सो हो।

 

दीदा व दिल ब-हम हैं एक सूझ में और बूझ में
आंखों के सामने अयां दिल में बसा जो हो सो हो।

 

हिज्र की जो मुसीबतें अ़र्ज़ कीं उसके सामने
नाज़ व अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो।

 

हस्ती की इस सराय में रात की रात जो बसे
सुब्ह-ए-अ़दम हुई नुमूद पांव उठा जो हो सो हो।

 

दुनिया के नेक-व-बद से काम हमको नियाज़ कुछ नहीं,
आप से जो गुज़र गया फिर उसे क्या! जो हो सो हो।

         Qawwali         


इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया लिरिक्स इन हिंदी

 

इश्क में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो
ऐश व निशात-ए-जिंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो।

 

पूछो न मुझ ख़राब से यारों सलाह-ए-कार तुम
अपने तो अब रहे नहीं होश बजा जो हो सो हो।

 

मुझसे मरीज़ को तबीब हाथ तू अपना मत लगा
इसको खुदा पे छोड़ दो बह्र-ए-ख़ुदा जो हो सो हो।

 

अक़्ल के मदरसे से उठ इश्क के मैं कदे में आ
जाम ए फना व बेख़ुदी अब तो पिया जो हो सो हो।

 

लाग की आग लगते पंबा नमत़ वह जल गया
रख़्त ए वजूद ए जान व तन कुछ ना बचा जो हो सो हो।

 

दीदा व दिल ब-हम हैं एक सूझ में और बूझ में
आंखों के सामने अयां दिल में बसा जो हो सो हो।

 

हिज्र की जो मुसीबतें अ़र्ज़ कीं उसके सामने
नाज़ व अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो।

 

हस्ती की इस सराय में रात की रात जो बसे
सुब्ह-ए-अ़दम हुई नुमूद पांव उठा जो हो सो हो।

 

दुनिया के नेक-व-बद से काम हमको नियाज़ कुछ नहीं,
आप से जो गुज़र गया फिर उसे क्या! जो हो सो हो।

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