दिल सोज से खाली है निगेह पाक नहीं है क़व्वाली लिरिक्स

दिल सोज से खाली है निगेह पाक नहीं है क़व्वाली लिरिक्स

Dil Soz Se Khali Hai Nigeh Paak Nahi Hai Qawwali Lyrics in Hindi

कव्वाल: राहत फतेह अली ख़ान

शायर: हज़रत डॉक्टर अल्लामा इक़बाल

 | English Lyrics |


वो हर्फ़-ए-राज़ के मुझको सिखा गया है जुनूं

ख़ुदा मुझे नफस-ए-जिब्राइल दे, तो कहूं।



सितारा क्या मेरी तक़दीर की ख़बर देगा

वो खुद फ़िराक़ी-ए-अफलाक़ में है खा़र-ओ जुबूं।

 

ह़यात क्या है ख़्याल-ओ-नज़र की मजज़ूबी

ख़ुदी की मौत है अंदेशा-हाय-गू-नागूं।

 

अजब मज़ा है मुझे लज़्ज़त-ए-ख़ुदी दे कर

वो चाहते है के मैं अपने आप में ना रहूं।

 

ज़मीर-पाक-ओ-निगाह-ए-बुलंद-ओ-मस्ती-ए-शौक़

न माल-ओ-दौलत-ए-कारूं, न फ़िक्र-ए-अफ़लातूं।

 

सबक़ मिला है ये मेअ़राज-ए-मुस्तफ़ा से मुझे

के आलम-ए-बशरीयत की ज़द में है गरदूं।

 

ये कायनात अभी ना तमाम है शायद

के आ रही है दमा-दम सदा-ए-कुन-फया-कूं।

 

इलाज आतिश-ए-रूमी के शौर में है तेरा

तेरी ख़िरद पे है ग़ालिब, फिरंगियों का फुसूं।

 

तेरा अंदेशा अफ़लाकी नहीं है

तेरी परवाज़ लौलाकी नहीं है

ये माना अस्ल शाहीनी है तेरा

तेरी आँखों में बेबाकी नहीं है।

 

दिल सोज़ से…

दिल सोज़ से ख़ाली है निगेह पाक नहीं है

दिल सोज से खाली है निगेह पाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

दिल सोज़ से खा़ली है निगेह पाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बे.बा..क नहीं है।

 

दिल सोज से खाली है निगेह पाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है

आ…

दिल सोज़ से ख़ाली है निगेह पाक नहीं है

(सरगम)

दिल सोज़ से खाली है निगेह पाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

मोहब्बत का ज़ुनू

मोहब्बत का ज़ुनूं बाक़ी नहीं है

मुसलमानों में ख़ूं बाक़ी नहीं है

सफी कज, दिल परेशां, सजदा बेज़ौक

के जज़्बे-अन्दरूं बाक़ी नहीं है।

 

दिल सोज़ से खाली है निगेह पाक नहीं है

आ…

दिल सोज से खाली है निगेह पाक नहीं है

फिर इसमें..

 

तेरा तन रूह से ना आशनां है

अजब क्या आह तेरी ना-रसां है

तन-ए-बेरूह से बेज़ार है हक

खुदा-ए-ज़िंदा, ज़िन्दों का ख़ुदा है।

 

दिल सोज़ से खली है निगेह पाक नहीं है

 

रगों में वो लहू बाक़ी नहीं है

वो दिल वो आरज़ू बाक़ी नहीं है

नमाज़-ओ-रोज़ा-ओ-क़ुर्बानी-ओ-हज

ये सब बाक़ी है, तू बाक़ी नहीं है।

 

दिल सोज़ से खली है निगेह पाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

है ज़ौक़े तज्जली भी इसी ख़ाक में पिन्हा

है ज़ौक़े तज्जली भी इसी ख़ाक में पिन्हा

आ…

है ज़ौक़े तज्जली भी इसी ख़ाक में पिन्हा

है ज़ौक़े तज्जली……

है ज़ौक़े तज्जली भी इसी ख़ाक में पिन्हा

है ज़ौक़े तज्जली भी इसी ख़ाक में पिन्हा

इसी ख़ाक में पिन्हा,

इसी ख़ाक में पिन्हा

ग़ाफिल तू मेरा साहिब-ए-इदराक नहीं है

ग़ाफिल तू मेरा साहिब-ए-इदराक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

गाफिल तू मेरा साहिब-ए-इदराक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

(सरगम)

गाफिल तू मेरा साहिब-ए-इदराक नहीं है

(सरगम)

गाफिल तू मेरा साहिब-ए-इदराक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को ख़बर मेरे ज़ुनूं की

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को ख़बर मेरे ज़ुनूं की

क्या सूफी-ओ

आ..

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को ख़बर मेरे ज़ुनूं की

 

वो सूफी जो था ख़िदमत-ए-ह़क़ में मर्द

मोहब्बत में यक्ता, हमीयत में फ़र्द

अजम के ख़यालात में खो गया

ये सालिक मक़ामात में खो गया।

 

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को ख़बर मेरे ज़ुनू की

आ…

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को ख़बर मेरे ज़ुनूं की

 

मुसलमां है तौहीद में गर्म-जोश

मगर दिल अभी तक है ज़ुन्नार-पोश

तमद्दुन, तसव्वुफ, शरीयत, कलाम

बुतान-ए-अजम के पुजारी तमाम

हकीक़त ख़राफ़ात में खो गई

ये उम्मत रवायात में खो गई।

 

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को ख़बर मेरे ज़ुनू की

क्या सूफी-ओ

आ…

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को ख़बर मेरे ज़ुनूं की

 

लुभाता है दिल को कलाम-ए-ख़तीब

मगर लज़्ज़त-ए-शौक से बेनसीब

बयां इसका मन्तक से सुलझा हुआ

लुग़त के बखेड़ों में उलझा हुआ।

 

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को ख़बर मेरे ज़ुनू की

आ…

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को ख़बर मेरे ज़ुनूं की

 

बायज कमाल-ए-तर्क से मिलती है यां मुराद

बा…..यज

बायज कमाल-ए-तर्क से मिलती है यां मुराद

दुनिया जो छोड़ दी है तो उक़बा भी छोड़ दे

सौदागरी नहीं, ये इबादत ख़ुदा की है

ऐ बेख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे

कलाम क्या? जो ना हो दिल में आरजू

बिस्मिल नहीं है तू, तो तमन्ना भी छोड़ दे।

 

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को खबर मेरे ज़ुनू की

(सरगम)

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को खबर मेरे ज़ुनू की

 

शिकायत है मुझे या रब खुदा-बंदान-ए-मकतब से

सबक शाहीं बच्चो को दे रहे है ख़ाक-बाज़ी का!

 

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को खबर मेरे ज़ुनू की

आ…

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को खबर मेरे ज़ुनू की

आ…

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को खबर मेरे ज़ुनू की

 

ना मोमिन है, ना मोमिन की अमीरी

रहा सूफी, गई रौशन ज़मीरी

खुदा से फिर वही क़ल्ब-ओ-नज़र मांग

नहीं मुमकिन अमीरी बे-फ़क़ीरी

 

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को खबर मेरे ज़ुनू की

आ…

क्या सूफी-ओ-मुल्ला को खबर मेरे ज़ुनू की

खबर मेरे ज़ुनू की

खबर मेरे ज़ुनू की

उनका सिर-ए-दामन भी अभी चाक नहीं है

उनका सिर-ए-दामन भी अभी चाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

उनका सिर-ए-दामन भी अभी चाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

कब तक रहे महकूमी-ए-अंजुम में मेरी ख़ाक

कब तक रहे महकूमी-ए-अंजुम में मेरी ख़ाक

अंजुम में मेरी ख़ाक,

अंजुम में मेरी ख़ाक

या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़लाक नहीं है

या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़लाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़लाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

बिजली हूं नज़र कोह-ओ-बयाबां पे है मेरी

बिजली हूं नज़र कोह-ओ-बयाबां पे है मेरी

आ..

बिजली हूं नज़र कोह-ओ-बयाबां पे है मेरी

आ…

बिजली हूं नज़र कोह-ओ-बयाबां पे है मेरी

बिजली हूं नज़र, बिजली.…….

बिजली हूं नज़र कोह-ओ-बयाबां पे है मेरी

बयाबां पे है मेरी

बयाबां पे है मेरी

मेरे लिए शायां खस-ओ-खाशाक नहीं है

मेरे लिए शायां खस-ओ-खाशाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

मेरे लिए शायां खस-ओ-खाशाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जांबाज़ की मीरास

आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जांबाज़ की मीरास

आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जांबाज़ की मीरास

आ…

आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जांबाज़ की मीरास

आ……..ल.म.………..

आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जांबाज़ की मीरास

आ…

आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जांबाज़ की मीरास

आलम, आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जांबाज़ की मीरास

आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जांबाज़ की मीरास

जांबाज़ की मीरास

जांबाज़ की मीरास

मोमिन नहीं जो साहिब-ए-लौलाक नहीं है

मोमिन नहीं जो साहिब-ए-लौलाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

मोमिन नहीं जो साहिब-ए-लौलाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबाक नहीं है।

 

दिल सोज़ से खाली है निगेह पाक नहीं है

फिर इसमें अजब क्या के तू बेबा…..क नहीं है।


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