Musallah Khoon Se Rangeen Noha Lyrics
खून से रंगीन, खून से रंगीन, खून से रंगीन
अली के सर पे किस ज़ालिम ने ये ज़र्बत लगाई है
मुसल्ला खून से रंगीन है या रब दुहाई है
सदा-ए-हातिफ़-ए-ग़ैबी सुनी हसनैन ने जिस दम
निकल कर घर से बाहर आ गए करते हुए मातम
जो पहुंचे मस्जिद-ए-कूफ़ा में सर को पीटते बाहम
लहू में तर नज़र आया वसीये मुर्सल-ए-आज़म
कहां रो रो के लोगों ने क़यामत किसने ढाई है
मुसल्ला खून से रंगीन है या रब दुहाई है
अली के सर पे किस ज़ालिम ने ये ज़र्बत लगाई है
कहां शब्बीर से शब्बर ने बस बाहर चलो भाई
उठाओ ज़ख्मी बाबा को चलो अब घर चलो भाई
जनाज़ा ज़िन्दगी में ले के काधों पर चलो भाई
ना मर जायें कहीं सर पीट के ख़्वाहर चलो भाई
सदा आई नमाज़-ए-सुबह पढ़ने क़ौम आई है
मुसल्ला खून से रंगीन है या रब दुहाई है
अली बोले हसन पहले नमाज़-ए-सुबह पड़वा दो
फिर उसके बाद मुझको बेटियों के पास पहुंचा
सरे ज़ख्मी किसी ज़र्राह को बुलवा के दिखला दो
लगी है सर पे मेरे तेग़ जहरीली ये समझा दो
इमामत खूं से मेहराब-ए-इबादत में नहाई है
मुसल्ला खून से रंगीन है या रब दुहाई है
किसी सूरत पिदर को खूं भरे कपड़ों में घर लाए
कहा मौला ने हर इक चाहने वाला पलट जाए
सदा-ए-ज़ैनब-ओ-कुलसूम कानों से ना टकराएं
तड़पकर बैन करती हैं हमारी बेटियां हाय !
महे रमज़ान में कैसी मुसीबत आज आई है
मुसल्लाह खून रंगीन है यार अब दुहाई है
कहां ज़र्राह ने रो कर ना अब बच पाएंगे मौला
बिने मुलजिम ने ज़हर-आलूद त़ैग़-ए-ज़ुल्म से मारा
हुआ अहले-ए-हरम में सुनके ये कोहराम सा बरपा
किसी ने घर में सीना और किसी ने अपना सर पीटा
कहीं अब्बास हैं गश में कहीं ज़हरा की जाई है
मुसल्ला खून से रंगीन है या रब दुहाई है
जनाज़ा बाप का हसनैन लो तैयार करते हैं
कफ़न पहना दिया अब आख़री दीदार करते हैं
सुपुर्दे ख़ाक लाशे हैदर ए कर्रार करते हैं
पए दामाद गिरिया अह़मद-ए-मुख़्तार करते हैं
ग़म-ए-हैदर मनाने रुह-ए-ज़हरा घर पे आई है
मुसल्ला खून से रंगीन है या रब दुहाई है
रहा बाक़ी चलन ता-उम्र दस्तूर-ए-क़दीमी का
ज़माने भर में चर्चा क्यूँ ना हो शाने करीमी का
सदा रक्खा भरम ग़ुरबत में भी औज-ए-रहीमी का
न था एहसास एक बच्चे को भी अपनी यतीमी का
यतीमों पर घटा शमशाद अब ग़ुरबत की छाई है
मुसल्ला खून से रंगीन है या रब दुहाई है
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Recited & Composed By: Muhammad Raza Gopalpuri
Lyrics: Maulana Shamshad Ahmad Rizvi
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