Ham is kuche mein jab tak jaan hai lyrics

Ham is kuche mein jab tak jaan hai lyrics-Mahboob Bandanawazi

ख़ुदा वालों के घर को हम ख़ुदा का घर समझते हैं
तुम्हारे दर को या पीर मुस्तफ़ा का दर समझते हैं

हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे
मरेंगे भी तो इनकी ख़ाक़ में मिलने को आयेंगे

 

तेरी उल्फ़त में मर मिटना, शहादत इसको कहते हैं
तेरे कूचे में होना दफ़्ना, जन्नत इसको कहते हैं
रियाज़त नाम है, तेरी गली में आने जाने का
तस्व्वुर में तेरे रहना, इबादत इसको कहते हैं
तुझी को देखना, तेरी ही सुनना, तुझ में गुम होना
हक़ीक़त मारफ़त, अहले तरीक़त इस को कहते हैं

हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे
हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे

 

दिल कहीं भी ना लगा तेरे कूचे के सिवा ×4
चैन मुझको ना मिला तेरे कूचे के सिवा ×2

 

ऐ खुदा लगती यहीं! हमने देखी न सुनी
ऐसी पुरकैफ़ फ़िजा तेरे कूचे के सिवा
हाल ए दिल अर्ज़ करूँ
तेरी ख़िदमत में रहूं
मेरी ना आये क़ज़ा तेरे कूचे के सिवा

हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे
हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे

 

वो ही कुछ हुस्न के जल्वों का पूरा लुत्फ़ पाते हैं
जो अपने दिल को ख़ुद इक मुस्तकिल काबा बनाते हैं
मोह़ब्बत हो अगर सच्ची तो ऐसे दिन भी आते हैं
वो अपने नाज़-बरदारों के खुद भी नाज़ उठाते हैं
शराब ए अबदियत हर पीने वाले को नहीं पचती
ये वो मय है के जिसको ज़र्फ़ वाले ही पचाते हैं।

मन्दिर में नहीं, मस्जिद में नहीं, मकतब में नहीं
माबद में नहीं
सुनते हैं किताब ए इ़श्क़ तेरे कूचे में पढ़ाई जाती है
हम दिल में बिठाकर उस बुत की
हर वक़्त परसतिश करते हैं

 

अल्लाह रे तस्वीरे जाना काबे में सजाई जाती है
अफ़लाक़ से खैंची जाती है सीनों में छुपाई जाती है
तौहीद की मय सागर से नहीं आंखों से पिलाई जाती है

 

ये वो मय है के जिसको ज़र्फ़ वाले ही पचाते हैं
जो उस पर मर मिटे, उनसे हज़ारों फ़ैज़ पाते हैं
उन्हें मुर्दा न समझो वो तो मुर्दों को जिलाते हैं

हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे
हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंग

 

अगर कुछ पाना है तो फिर किसी का बनना पड़ता है
किसी अहले नज़र अहले बशर से मिलना पड़ता है
सलीक़ा मांगने का है तो मांगो अपने मुर्शिद से
अगर मुर्शिद जो अड़ जाएं ख़ुदा को देना पड़ता है।

हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे
हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे

 

तसद्दुक फ़ातिमा ज़हरा का हो कुछ आले अतहर का,
मुहईयुद्दीन, मोईनुद्दीन का सदक़ा ले के जायेंगे।

मैं जिनका हूँ उन्हीं को फ़िक्र है हर काम की मेरे,
मेरे यूसुफ़ शरीफ़ुद्दीं मेरी बिगड़ी बनायेंगे।

हमारी आरज़ू तुम हो सलामत तुम रहो, बस है

सलामत तुम रहो बस है
हां हां सलामत तुम रहो बस है
आ हे सलामत तुम रहो बस है

 

चमन ए के ता क़यामत गुले ऊ बहार वादा
सनम ए के बर जमाल अश दो जहाँ निसार वादा

सलामत तुम रहो बस है

सलामत तुम रहो बस है

 

कम होगीं जब चराग़ ए मोह़ब्बत की रौशनी
दिल को जला जला के उजाला करेंगे हम
जोश ए जुनूं में चीखेंगे चिल्लायेंगे मगर
लब पर किसी का नाम न लाया करेंगे हम
दिल को, जिगर को, जान को बारा करेंगे हम
तेरी सलामती का उतारा करेंगे हम।

सलामत तुम रहो बस है
सलामत तुम रहो बस है

 

जचता मेरी नज़र में कोई नाज़नीं नहीं
जब से वो दिल नशीं है कोई दिलनशीं नहीं
ऐसा हसीन कोई ख़ुदा की क़सम नहीं
जैसा मेरा सनम है किसी का सनम नहीं।

सलामत तुम रहो बस है
सलामत तुम रहो बस है

 

हमारी आरज़ू तुम हो सलामत तुम रहो बस है
हमारा क्या है हम सरकार के कुरबान जायेंगे।

 

हमारा क्या है हम सरकार के कुरबान जायेंगे
हमारा क्या है हम सरकार के कुरबान जायेंगे

 

हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे
हम इस कूचे में जब तक जान है आएंगे-जाएंगे

 

Qawwal: Muhammad Mahboob Bandanawazi

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