मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं क़व्वाली लिरिक्स

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं कव्वाली लिरिक्स हिन्दी व अंग्रेज़ी में

कव्वाल: उस्ताद नुसरत फतेह अली ख़ान

शायर: ख़ालिद महमूद ‘ख़ालिद’

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मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं

दिन रात मदीने की दुआ मांग रहे हैं।

 

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं

 

मंगते हैं, उनके मंगते हैं

मंगते हैं, उनके मंगते हैं

 

हुस्न पे जिनके जग मतवाला

नाम है जिनका कमली वाला

हम उनके मंगते हैं,

 

मंगते हैं, उनके मंगते हैं

 

सनद जो रखते हैं, महशर में मुंह दिखाने की

हम, उनके मंगते हैं,

मंगते हैं, उनके मंगते हैं

 

नाज़ जिस बात पे है, वोह बात यही है

हम, उनके मंगते हैं,

मंगते हैं, उनके मंगते हैं

 

हम हैं गुलाम, उनकी गुलामी पे नाज़ है

उनके मंगते हैं,

मंगते हैं, उनके मंगते हैं

 

दोज़ख़ ने हमको देख के मालिक से कहा, ऐ मालिक छोड़

उनके मंगते हैं,

मंगते हैं, उनके मंगते हैं

 

मंगते हैं, किस के मंगते हैं,

मंगते हैं, किस के मंगते हैं,

 

निगाहे गर्म से हमको न देख ऐ दोज़ख़, क्या पता नहीं के

हम, किस के मंगते हैं,

मंगते हैं, किस के मंगते हैं

 

ऐ देखने वालो हमें हंस हंस के न देखो, क्या पता नहीं के

हम, किस के मंगते हैं,

मंगते हैं, उनके मंगते हैं

 

मंगते ख़ाली हाथ न लौटे, कितनी मिली खैरात न पूछो

उनका करम फिर उनका करम है,

उनके करम की बात न पूछो

उनके मंगते हैं,

मंगते हैं, उनके मंगते हैं

 

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं,

दिन रात मदीने की दुआ़ मांग रहे हैं।

 

कम मांग रहे हैं न सवा (सिवा) मांग रहे हैं

जैसा है गनी वैसी अता मांग रहे हैं।

 

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं

जैसा है ग़नी वैसी अ़ता मांग रहे हैं

 

जैसा है ग़नी वैसी अ़ता मांग रहे हैं…

जैसा है ग़नी…

 

आहे! ऐसा है ग़नी

वोह तो, ऐसा है ग़नी

वो तो, ऐसा है ग़नी

 

खुद भीक दे और ख़ुद कहे, मंगते का भला हो

वोह तो, ऐसा है ग़नी

 

ज़रा उनका दुनिया में रहना तो देखो

वोह पत्थर का तकिया, वोह काली कमलिया

वोह वोह, ऐसा है ग़नी

वो तो, ऐसा है ग़नी

 

ज़माने का दाता, मगर घर में फाक़ा

खुदाई का मालिक मगर पेट ख़ाली

वोह ऐसा है ग़नी

वो तो, ऐसा है ग़नी

 

कोई मेरे महबूब सा दुनिया में नहीं है

बैठा है चटाई पे मगर अर्श नाशी है।

वोह तो, ऐसा है ग़नी

वोह तो, ऐसा है ग़नी

 

जैसा है ग़नी वैसी अ़ता मांग रहे हैं

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं

 

हर नेअ़्मत ए कौनैन है, दामन में हमारे

हम सदक़ए महबूब ए ख़ुदा मांग रहे हैं।

 

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं

 

यूं खो गए सरकार के अल्ताफ़ ओ करम में

ये भी तो नहीं होश के क्या मांग रहे हैं!

 

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं

 

ऐ दर्द ए मोहब्बत अभी कुछ और फ़जूं हो

दीवाने तड़पने की अदा मांग रहे हैं।

 

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं

 

सरकार का सदक़ा, मेरी सरकार का सदक़ा

सरकार का सदक़ा, मेरी सरकार का सदक़ा

 

मेरी सरकार का सदक़ा

मेरी सरकार का सदक़ा

 

ये ज़मीं आसमां, ये मकां, ला मकां

मेरी सरकार का सदक़ा

मेरी सरकार का सदक़ा

 

दोनों जहां का नूर मोहम्मद के रूप में

क़ुरआन का शाऊर मुहम्मद के रूप में

अल्लाह का ज़ुहूर मुहम्मद के रूप में

सच है के ये तग़य्युर ए दुनियां ख़ुदा से है

लेकिन ये काएनात फ़क़त मुस्तुफ़ा से है

 

मेरी सरकार का सदक़ा

मेरी सरकार का सदक़ा

 

कलाम ए पाक की अज़मत मेरे हुज़ूर से है

ख़ुदा ए पाक की शोहरत मेरे हुज़ूर से है

वोह चाहें हुस्न हो यूसुफ का, चाहें इश्क़ ए बिलाल

मिली सभी को ये अज़मत मेरे हुज़ूर से है।

 

सरकार का सदक़ा, मेरी सरकार का सदक़ा

 

मेरी सरकार का सदक़ा

मेरी सरकार का सदक़ा

 

रब ने फ़रमाया मेरी क़ुदरत की हद कोई नहीं

और मेरे महबूब की रहमत की हद कोई नहीं

जब मलक समझे नहीं तो आदमी समझेगा क्या

आमिना के लाल की अज़मत की ह़द कोई नहीं

 

वोह जो जुल्फ़ों को अपनी संवारा करें

वोह जो जुल्फ़ों को अपनी संवारा करें

चांद सूरज भी मिलकर उतारा करें

 

मेरी सरकार का सदक़ा

मेरी सरकार का सदक़ा

 

चमनिस्तां का ग़ोशा ग़ोशा

कलियों की चटक, फूलों की महक,

अर्श से लेकर धरती तक

ज़र्रों की दमक, तारों की चमक,

शबनम का ये मोती बरसाना

शाखों की लचक, चिड़ियों की चहक,

साक़ी की निगाहे मस्ताना

शीशे की खनक, साग़र की छलक,

हर शै ब ख़ुशी है नग़मा सरा

सरकार ए दो आलम का सदक़ा,

उस दो जग के मतवाले का

ये फ़ैज़ है कमली वाले का।

 

मेरी सरकार का सदक़ा

मेरी सरकार का सदक़ा

 

सरकार का सदक़ा, मेरी सरकार का सदक़ा

मौहताज ओ ग़नी, शाह ओ गदा मांग रहे हैं।

 

अब लाज तेरे हाथ है ऐ रहमत ए कौनैन

अब लाज तेरे हाथ है ऐ रहमत ए कौनैन

 

ग़म के मारे हैं, बेसहारे हैं

कुछ भी हैं आक़ा हम तुम्हारे हैं

 

अब लाज तेरे हाथ है, ऐ रहमत ए कौनैन

मदफ़न को मदीने में जगह मांग रहे हैं।

 

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं

 

असरार करम के फ़क़त उन पर ही खुले हैं

असरार करम के फ़क़त उन पर ही खुले हैं

 

कोई दाता बना, कोई ख़्वाजा बना, कोई ग़ौस बना

कोई देहली में जाके निज़ामी बना

कोई गंज ए शकर बा ख़ुदा हो गया

 

असरार करम के फ़क़त उन पर ही खुले हैं

जो तेरे वसीले से दुआ़ मांग रहे हैं।

 

दामान ए अ़मल में कोई नेकी नहीं ख़ालिद

बस नात ए मुहम्मद का सिला मांग रहे हैं।

 

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं

दिन रात मदीने की दु़आ मांग रहे हैं।

 

मंगते हैं करम उनका सदा मांग रहे हैं


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