Zehra Ki Ab Jahan Se Rukhsat Hai Lyrics | वसीयत-ए-ज़हरा

Zehra Ki Ab Jahan Se Rukhsat Hai Lyrics, वसीयत-ए-ज़हरा

 

हाय ज़हरा, हाय ज़हरा, हाय ज़हरा, हाय ज़हरा

 

ज़हरा की अब जहान से रुख़सत है या अली
तुमसे यही हमारी वसीयत है या अली
या अली…..
या अली मेरी मय्यत पर मेरा ह़क़ खाने वाले ना आएं
दरबार में तेरी ज़हरा को झुठलाने वाले ना आएं

 

या अली, मेरे बाबा हर लम्हा जिस दर को चूमा करते थे
उस दर जलाने वाले और जलवाने वाले ना आएं

 

या अली, मेरी हसरत थी तुमको बाबा के मिम्बर पर देखूं
हाय! तेरी जगह उस मिम्बर पर, आ जाने वाले ना आएं

 

या अली, सब अहले सक़ीफ़ा को पैग़ाम मेरा ये दे देना
बाबा के पाक जनाज़े पर ना आने वाले ना आएं

 

या अली पहलू भी शिकस्ता है बालों में सफेदी छाई है
ज़हरा को तेरी इस हालत में पहुंचाने वाले ना आएं

 

हाय या अली,
या अली मेरे मोहसिन पर गिरिया हक़ था मेरा जो छीन लिया
या अली, मुझे मरते मरते भी तड़पाने वाले ना आए

 

या अली, ज़ैनब की आंखों में मुझे ख़ौफ़ दिखाई देता है गर्दन में तेरी है तंग रसन पहनाने वाले ना आएं

 

या अली मेरी मय्यत को छुप कर तारीकी में दफ़ना देना
रोने के लिए मुझ पर मुझको रुलवाने वाले ना आएं

 

सलमान मैं बीबी का नोहा मीसम के लिए कैसे लिखूं
जब तक जन्नत में ले जाकर लिखवाने वाले ना आएं

 

Noha Khwan: Mir Hasan Mir

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