सहारा तुम हो तो किस लिए फिर

सहारा तुम हो तो किस लिए फिर लिरिक्स | कव्वाली नुसरत फतेह अली खान | Sahara Tum Ho To Kis Liye Phir Lyrics

क़व्वाल : नुसरत फ़तेह अली ख़ान


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सामने जब भी यार होता है
दिल पर कब इख़्तियार होता है

रू-ए जानां ही अहले दिल के लिए
ज़िक्र ए परवरदिगार होता है।

 

मरीज़ ए इश्क़ का अक्सर ये हाल होता है
किसी की याद से चेहरा बहाल होता है।

मैं इसको कुफ़्र कहूं या कमाल ए इश्क़ कहूं
नमाज़ में भी तुम्हारा ख़याल होता है।

 

न बुतकदे से न काबे से लौ लागी मेरी
तुम्हारे नक़्श ए क़दम से है ज़िंदगी मेरी,

बहुत उदास थी दुनिया में ज़िंदगी मेरी
करम जो तेरा हुआ बात बन गई मेरी।

 

सहारा तुम हो तो किस लिए फिर

 

सहारा तुम हो तो किस लिए फिर
मैं सर पे एहसान लूं किसी का

रहे सलामत ये ग़म तुम्हारा
यही अ़सासा है ज़िंदगी का।

 

तेरा इश्क़ जो न होता तो ये बंदगी न होती
जो तेरा करम न होता तो ये ज़िंदगी न होती।

रहे सलामत ये ग़म तुम्हारा
यही असासा है ज़िंदगी का

 

वह बदनसीब है जिसे ग़म ना गवार है
ग़म तो दलील ए रहमत ए परवरदिगार है।

रहे सलामत ये ग़म तुम्हारा
यही असासा है ज़िंदगी का

 

मुझे देखता है जो भी कहता तेरा दीवाना
निस्बत ना तुझसे होती मेरी जाती ना होती।

रहे सलामत ये ग़म तुम्हारा
यही असासा है ज़िंदगी का

 

मैं न्याज़-मंद तेरा, बंदा नवाज़ तू है
तेरे करम से मेरी दुनिया में आबरू है।

रहे सलामत ये ग़म तुम्हारा
यही असासा है ज़िंदगी का।

 

मैं क़ुर्बतों में भी सादमां था
मैं फ़ुर्कतों में भी मुतमइन हूं

था वह भी इनआम आप ही का
है यह भी तोहफ़ा जनाब ही का।

 

ग़ुरूर ए शाही हमेशा मैंने
रखा है पांवों की ठोकरों में

मक़ाम सबसे जुदा है मेरा
के मैं हूं मंगता तेरी गली का।

 

आहे बस! मैं हूं मंगता तेरी गली का
बस! मैं हूं मंगता तेरी गली का

 

मांगना मैंने दर-दर से सीखा नहीं

बस! मैं हूं मंगता तेरी गली का

 

दैर ओ हरम में जाऊं क्यूं
तूर की ख़ाक उड़ाऊं क्यूं

बस! मैं हूं मंगता तेरी गली का.

 

दुनिया ए बुतकदा न फ़ज़ा ए हरम पसंद
मुझको तेरी गली है ख़ुदा की क़सम पसंद।

बस! मैं हूं मंगता तेरी गली का..

 

मैं यहीं करूंगा सज्दा, यही मेरा मुद्दआ़ है
जो मिला नहीं हरम से, तेरे दर से मिल गया है।

बस! मैं हूं मंगता तेरी गली का..

 

हाथ फैलाने से मौहताज को ग़ैरत ये है
शर्म इतनी है के बंदा तेरा कहलाता हूं।

तेरा मैं हूं मंगता..

 

ये मान लिया लायिक़ ए दरबार नहीं मैं
ये भी न सही क़ाबिल ए दीदार नहीं मैं,

हर चंद अगर आप के दरकार नहीं मैं
बंदा भी तेरा क्या मेरी सरकार नहीं मैं।

तेरा मैं हूं मंगता..

 

तेरे टुकड़ों पे पला ग़ैर की ठोकर पे ना डाल
झिड़कियां खाऊं कहां छोड़ के सदक़ा तेरा।

तेरा मैं हूं मंगता..

 

कोई सलीक़ा है आरज़ू का न बंदगी मेरी बंदगी है
ये सब तुम्हारा करम है आक़ा के बात अब तक बनी हुई है।

तेरा मैं हूं मंगता..
के मैं हूं मंगता तेरी गली का।

 

मक़ाम सबसे जुदा है मेरा
के मैं हूं मंगता तेरी गली का।

 

है ख़ुश मुक़द्दर के जिसने सर को
झुकाया मुर्शिद के आसतां पर,

उसी ने पायी है सरफ़राज़ी
मक़ाम ऊंचा रहा उसी का।

 

अगर है जाना तो जाएं लेकिन
हुज़ूर इतना ख़याल रखें

के हिज्र ए जानां में एक-इक पल
गुमान होता है इक सदी का।

 

रवां हो गर्दन पे गरचे ख़ंजर
ख़लल न सजदे में आए फिर भी

यही इबादत का है क़रीना
यही सलीक़ा है बंदगी का।

 

तुम्हारी मदहा-सराई करके
मैं नाज़ करता हूं अपने फ़न पर

तुम्हारे ज़िक्र ए जमील से ही
वक़ार क़ायम है शायरी का।

 

सहारा तुम हो तो किस लिए फिर
मैं सर पे एहसान लूं किसी का।

Sahara Tum Ho To Kis Liye Phir Lyrics in Hindi

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