न हो आराम जिस बीमार को सारे जमाने से

न हो आराम जिस बीमार को सारे जमाने से लिरिक्स इन हिंदी | Na Ho Aram Jis Bimar Ko Lyrics in Hindi


न हो आराम जिस बीमार को सारे जमाने से

 

न हो आराम जिस बीमार को सारे जमाने से,
उठा ले जाए थोड़ी ख़ाक उनके आस्ताने से।

 

तुम्हारे दर के टुकड़ों से पड़ा पलता है इक आलम,
गुज़ारा सबका होता है इसी मौहताज ख़ाने से।

 

शब-ए-असरा के दूल्हा पर निछावर होने वाली थीं,
नहीं तो क्या ग़रज़ थी इतनी जानो के बनाने से।

 

कोई फ़िरदौस हो या ख़ुल्द हो हमको ग़रज़ क्या है,
लगाया अब तो बिस्तर आप ही के आस्ताने से।

 

न क्यों उनकी तरफ़ अल्लाह सौ-सौ प्यार से देखे,
जो अपनी आंखें मलते हैं तुम्हारे आस्ताने से।

 

तुम्हारे तो वोह एहसां और ये ना-फ़रमानियां अपनी,
हमें तो शर्म सी आती है तुम को मुंह दिखाने से।

 

बहार-ए-ख़ुल्द सदक़े हो रही है रू-ए-आशिक़ पर,
खिली जाती हैं कलियां दिल की तेरे मुस्कुराने से।

 

ज़मीं थोड़ी सी देदे बह्र-ए-मदफ़न अपने कूचे में,
लगा दे मेरे प्यारे मेरी मिट्टी भी ठिकाने से।

 

पलटता है जो ज़ाइर उससे कहता है नस़ीब उसका,
अरे ग़ाफ़िल! क़ज़ा बेहतर है यां से फिर के जाने से।

 

बुला लो अपने दर पर अब तो हम ख़ाना बदोशों को,
फिरें कब तक ज़लील-व-ख़्वार दर-दर बे-ठिकाने से।

 

न पहुंचे उन के क़दमों तक न कुछ हुस्न ए अ़मल ही है,
हसन क्या पूछते हो हम गए-गुज़रे ज़माने से।

ना हो आराम जिस बीमार को सारे जमाने से, उठा ले जाए थोड़ी ख़ाक उनके आस्ताने से। यह नात शरीफ हज़रत मोलाना हसन खां बरेलवी रह. अ. ने लिखी है। हमने हिंदी हिंदी में लिख कर पेश कर दी। अगर कोई खामी दिखे तो बराए करम कमेंट में ख़बरदार कीजिए।

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