ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौस-ए-आज़म का लिरिक्स

ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौस-ए-आज़म का लिरिक्स इन हिंदी | Khuda Ke Fazal Se Hum Par Hai Saaya Ghaus e Azam ka Lyrics in Hindi, Full Lyrics | qasida ghausiya hindi | Manqabat Ghause Aazam

Kalaam : Maulana Jameel ur Rehman Qadri


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ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौस-ए-आज़म का

 

ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौस-ए-आज़म का
हमें दोनों जहां में है सहारा ग़ौस-ए-आज़म का

हमारी लाज किसके हाथ है बग़दाद वाले के
मुसीबत टाल देना काम किसका ग़ौस-ए-आज़म का

गए एक वक़्त में 70 मुरीदों के यहां आक़ा
समझ में आ नहीं सकता मोअ़म्मा ग़ौस-ए-आज़म का

सलातीन ए जहां क्यों कर न उनके रोअ़्ब से कांपें
न लाया शेर को ख़तरे में कुत्ता गौसे आज़म का

न क्यों कर औलिया उस आस्ताने के बनें मंगता
के इक़लीम ए विलायत पर है कब्ज़ा गौसे आज़म का

बुलाकर काफिरों को देते हैं अब्दाल का रुतबा
हमेशा जोश पर रहता है दरिया ग़ौस-ए-आज़म का

नया हफ्ता, नया दिन, साल नौ जिस वक़्त आता है
हर इक पहले बजा लाता है मुजरा गौसे आजम का

वह कह कर कुम-बि-इज़्निल्लाह जिला देते हैं मुर्दों को
बहुत मशहूर है अह़या ए मौता गोसे आजम का

जिलाया उस्तुख़्वान ए मुर्ग़ को दस्त ए करम रख कर
बयां क्या हो सके अह़या ए मौता ग़ौस-ए-आज़म का

फरिश्ते मदरसे तक साथ पहुंचाने को जाते थे
ये दरबार ए इलाही में है रुतबा गौसे आज़म का

जो हक़ चाहे वह ये चाहें, जो ये चाहें वो हक़ चाहे
तो मिट सकता है फिर किस तरहां चर्चा गौसे आज़म का

रिहाई मिल गई उसको अज़ाब ए क़ब्र ओ महशर से
यहां पर मिल गया जिसको वसीला गौसे आज़म का

यह सुनते हैं नकीरैन उस पे कुछ सख़्ती नहीं करते
लिखा होता है जिसके दिल पे तुग़रा ग़ौस-ए-आ़ज़म का

लहद में जब फरिश्ते मुझसे पूछेंगे तो कह दूंगा
तरीक़ा क़ादरी, हूं नाम लेवा गौसे आज़म का

निदा देगा मुनादी हश्र में यू क़ादरीयों को
किधर हैं क़ादरी कर लें नज़ारा ग़ौसे आज़म का

चला जाए बिला ख़ौफ़ ओ ख़तर फिरदौस ए आला में
फ़क़त इक शर्त है, हो नाम-लेवा गौसे आज़म का

फरिश्तो रोते क्यों हो मुझे जन्नत में जाने से
यह देखो हाथ में दामन है किसका ग़ौस-ए-आज़म का

जनाब ए ग़ौस दूल्हा और बराती औलिया होंगे
मज़ा दिखलाएगा महशर में सेहरा गौसे आज़म का

यह कैसी रौशनी फैली है मैदान ए क़यामत में
नक़ाब उट्ठा हुआ है आज किसका ग़ौस-ए-आज़म का

ये महशर में खुले हैं गेसू ए अंबर-फ़िशां किस के
बरसता है करम का किस के झाला ग़ौस ए आज़म का

मुहम्मद ﷺ का रसूलों में है जैसे मर्तबा आ़ला
है अफ़ज़ल औलिया में यूं ही रुतबा गौसे आज़म का

अता की है बुलंदी हक़ ने अहलुल्लाह के झंडों को
मगर सबसे किया ऊंचा फरेरा ग़ौस ए आज़म का

इसी बाइस से हैं क़ब्रों में अपनी औलिया ज़िंदा
हयात ए दाइमी पाता है कुश्ता ग़ौस ए आज़म का

“बिलादुल्लाहि मुल्की तहता हुक्मी” से ये ज़ाहिर है
के आलम में हर इक शै पर है कब्ज़ा गौसे आज़म का

(फरमान ए ग़ौस ए आज़म : “बिलादुल्लाहि मुल्की तहता हुक्मी”
तर्जुमा : अल्लाह ताला के तमाम शहर मेरा मुल्क हैं और उन पर मेरी हुकूमत है)

 

हुआ मौक़ूफ़ फौरन ही बरसना अहले मजलिस पर
जो पाया अब्र-ए-बारां ने इशारा गौसे आजम का

फ़क़ीहों के दिलों से धो दिया उनके सवालों को
दिलों पर है बनी&आदम के क़ब्ज़ा गौसे आज़म का

सफ़र से वापसी में दीन-ए-अक़दस को किया जिंदा
मोहिउद्दीं हुआ यूं नाम ए वाला ग़ौस ए आज़म का

जो फ़रमाया के दोश-ए-औलिया पर है कदम मेरा
लिया सर को झुका कर सबने तलवा ग़ौस ए आज़म का

दम ए फरमां खुरासां में मोइनुद्दीन चिश्ती ने
झुका कर सर लिया आंखों पे तलवा ग़ौस ए आज़म का

न क्यों कर सल्तनत दोनों जहां की उनको हासिल हो
सरों पर अपने लेते हैं जो तलवा गौसे आजम का

लोआ़ब अपना चटाया अहमद ए मुख़्तार ने उनको
तो फिर कैसे न होता बोलबाला गौसे आजम का

रसूलुल्लाह ने ख़िल’अत पिन्हाया बरसर-ए-मजलिस
बजे क्यों करना फिर आलम में डंका ग़ौस ए आज़म का

मुहर्रिर चार सू मजलिस में हाज़िर हो के लिखते थे
हुआ करता था जो इरशाद ए वाला ग़ौस ए आज़म का

खुले हफ़्ताद दर इक आन में इल्म ए लदुन्नी के
ख़ज़ीना बन गया इल्मों का सीना ग़ौस ए आज़म का

हमारा ज़ाहिर ओ बातिन है उनके आगे आईना
किसी शै से नहीं आ़लम में पर्दा ग़ौस ए आज़म का

पढ़ी ला-हौल और शैतां के धोके को किया ग़ारत
उलूम ओ फ़ज़्ल से वोह नूर चमका ग़ौसे आज़म का

क़सीदे में जनाब ए ग़ौस के देखो नज़र्रत को
तो सूझे दूर, के ज़ाहिर हो रुतबा गौसे आज़म का

रहे पाबंद ए ऐहकाम ए शरीअ़त इब्तिदा ही से
न छूटा शीरख़्वारी में भी रोज़ा ग़ौस ए आज़म का

ये क़ैदी छुट रहे हैं इसलिए मैदाने महशर में
ख़ुदा ख़ुद बांटता है आज सदक़ा ग़ौस ए आज़म का

गुज़ारी खेल में कल, अब हुई आमाल की पुरसिश
मगर काम आ गया इस दम वसीला ग़ौस ए आज़म का

कभी कदमों पे लोटूंगा कभी दामन पे मचलूंगा
बता दूंगा कि यूं छटता है बंदा ग़ौस ए आज़म का

सजल उनको दिया वह रब ने जिसमें साफ़ लिखा है
कि जाए ख़ुल्द में हर नाम लेवा ग़ौस ए आज़म का

शिफ़ा पाते हैं सदहा जां-ब-लब, इमराज़ ए मोहलक से
अजब दारुश्शिफा है आस्ताना ग़ौस ए आज़म का

मुरीदी ला-तख़फ़ कहकर तसल्ली दी गुलामों को
क़यामत तक रहे बेख़ौफ़ बंदा गौसे आजम का

जहाज़ ए ताजिरां गर्दाब से फौरन निकल आया
वज़ीफा जब उन्होंने पढ़ लिया “या ग़ौस ए आज़म” का

हुई इक देव से लड़की रिहा उस नाम-लेवा की
पढ़ा जंगल में जब उसने वज़ीफ़ा ग़ौस ए आज़म का

जो अपने को कहे मेरा, मुरीदों में वो शामिल है
ये फ़रमाया हुआ है मेरे आक़ा ग़ौस ए आज़म का

ठिकाना उसके नीचे या ख़ुदा मिलजाए हमको भी
खड़ा हो हश्र में जिस वक़्त झंडा ग़ौस ए आज़म का

ख़ुदावंदा दुआ मक़बूल कर हम रू-सियाहों की
गुनाहों को हमारे बख़्श, सदक़ा ग़ौस ए आज़म का

नबी ﷺ नूर ए इलाही और ये नूर ए मुस्तफ़ाई हैं
तो फिर नूरी न हो क्यूंकर घराना ग़ौस ए आज़म का

नबी ﷺ के नूर को गर देखना चाहे उन्हें देखे
सरापा नूर ए अहमद ﷺ है सरापा ग़ौस ए आज़म का

रसूलुल्लाह ﷺ का दुश्मन है ग़ौस ए पाक का दुश्मन
रसूलुल्लाह ﷺ का प्यारा है प्यारा ग़ौस ए आज़म का

मुख़ालिफ़ क्या करे मेरा के है बेहद करम मुझ पर
ख़ुदा का, रहमतुल्लिल आलमीं का, ग़ौस ए आज़म का

‘जमील ए क़ादरी’ सौ जां से हो कुर्बान मुर्शिद पर
बनाया जिसने तुझ जैसे को बंदा गौसे आज़म का

ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौस-ए-आज़म का
हमें दोनों जहां में है सहारा ग़ौस-ए-आज़म का


Urdu, Hindi And English lyrics

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Qawwali |

Sabri Brothers | Nusrat Fateh Ali Khan | Rahat Fateh Ali Khan | Iqbal Afzal Sabri | Aziz Miyañ |Nazir Ejaz Faridi |  Ghous Muhammad Nasir | Maulvi Ahmad Hasan |

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