दुनिया में जो क़ायम तेरे मंगतों का भरम है

Duniya Mein Jo Qayam Tere Mangton Ka Bharam Hai
दुनिया में जो क़ायम तेरे मंगतों का भरम है
Qawwal : Iqbal Afzal Sabri

 

फ़िज़ा छाई हुई है नूर की साबिर के रौज़े पर
चमकती है तजल्ली तूर की साबिर रौज़े पर

कशिश है ये मेरे मख़दूम साबिर तेरी हस्ती में
खिची आती है पब्लिक दूर की साबिर के रौज़े पर.

मम्बा-ए-सिर्रे-नबूवत हम वलायत हैदरी
आ़फ़्ताबे चिश्तिया मखदूम साबिर कलयरी

दुनिया में जो क़ायम

दुनिया में जो क़ायम तेरे मंगतों का भरम है … भरम है

दुनिया में जो क़ायम तेरे मंगतों का भरम है … भरम है
या साबिर-ए-कलयरी तेरी निस्बत का करम है … करम है

कभी चलते चलते भटक गया
कभी गिरते गिरते संभल गया
मैं हर इक मंज़िले सख़्त से
तेरा नाम लेके निकल गया

या साबिर-ए-कलयरी तेरी निस्बत का करम है … करम है

दामन है चाक चाक सिये जा रहा हूँ मैं
जीने का हक़ नहीं है जिये जा रहा हूँ मैं

या साबिर-ए-कलयरी तेरी निस्बत का करम है … करम है

ये उदास राहे मंज़िल ये मेरी शकस्ता पाई
मैं तो थक के बैठ जाता तेरी याद काम आई

मेरा क्या बिगाड़ लेगा जो खिलाफ है जमाना
मेरे साथ जब के तू है मेरे साथ है खुदाई

या साबिर-ए-कलयरी तेरी निस्बत का करम है … करम है

ज़िद्दी थे अपनी बात के हम भी अड़े रहे
नश्तर खलिश के दिल में हमारे गड़े रहे
मखमूर होके दर पे तुम्हारे पड़े रहे
यूं तो मुख़ालिफ़ो ने बहुत ज़ोर लगाये
लेकिन हमारे नाम के झंडे गड़े रहे

या साबिर-ए-कलयरी तेरी निस्बत का करम है … करम है

त़ूफ़ान ने मुझे सजदा-ए-त़ाज़ीम किया है

या साबिर-ए-कलयरी तेरी निस्बत का करम है … करम है

ये उदास राहे मंज़िल ये मेरी शख़स्ता पाई
वहीं मिल गया सहारा जहां नाव डगमगाई

या साबिर-ए-कलयरी तेरी निस्बत का करम है … करम

कोई अफ़ज़ल कहता है कोई इक़बाल कहता है
ज़माना हमको चिश्ती साबरी क़व्वाल कहता है

या साबिर-ए-कलयरी तेरी निस्बत का करम है … करम है

जाम देखा ना कभी सागर -ओ-मीना देखा
जब बढ़ी प्यास तो साक़ी-ए-मीना देखा

तेरी चौखट से मेरे सरकार का घर दूर नहीं
हमने कलियर में खड़े होके मदीना देखा

या साबिर-ए-कलयरी तेरी निस्बत का करम है … करम है

कभी चलते चलते भटक गया
कभी गिरते गिरते संम्भल गया

मैं हर मन्ज़िले सख़्त से
तेरा नाम लेके निकल गया

वोह क़सम ख़ुदा की संम्भल गया
जो तेरी गली में भटक गया

जो तेरी गली में भटक गया
जो तेरी गली में भटक गया

अली मिले हैं नबी मिले हैं
नबी मिले हैं ख़ुदा मिला है

जो तेरी गली में भटक गया
जो तेरी गली में भटक गया

जब तेरी गली में भटक गया

 

मैं तेरी गली में भटक गया
मैं तेरी गली में भटक गया

है जैसी नज़र वैसी सूझे
कोई ये पूजे कोई वोह पूजे
दिवाने की दुनिया सबसे अलग
ना ये पूजे ना वोह पूजे

मैं तेरी गली में भटक गया
या साबिर,
मैं तेरी गली में भटक गया

दरबारे साबरी में मांगो तो कुछ ज़बां से
सब कुछ तुम्हें मिलगा साबिर के आस्तां से

काबा मुझे पुकारे या बुतकदा पुकारे
अब सर नहीं उठेगा मेरा साबिर के आस्तां से

मैं तेरी गली में भटक गया
मैं तेरी गली में भटक गया

(ज़रा रुख़ बदलते हैं)

यूं तेरी गली में भटक गया
यूं तेरी गली में भटक गया

मौला अली हसनैन के जानी साबिर
सरकारे दो जहां की निशानी साबिर

यूं तेरी गली में भटक गया
यूं तेरी गली में भटक गया

मैं तेरी गली में भटक गया
मैं तेरी गली में भटक गया

यूं तेरी गली में भटक गया
यूं तेरी गली में भटक गया

ना ग़रज़ ह़रम के वक़ार से
ना सनमकदे की बहार से
मुझे काम है दरे यार से
दरे यार फ़िर भी दरे यार है

यूं तेरी गली में भटक गया
यूं तेरी गली में भटक गया

इक ये भी सबब है के मैं दिवाना बना हूँ, यूं तेरी गली में

गदा नवाज़ ने सबके तो हाथ थाम लिए
हमारा दस्ते त़लब मुस्कुरा के छोड़ दिया

यूं तेरी गली में भटक गया
यूं तेरी गली में भटक गया

दुनिया में जो क़ायम तेरे मंगतों का भरम है … भरम है
या साबिरे कलियर तेरी निस्वत का करम है … करम है

काबे की त़लब है ना तमन्ना-ए-सनम है … सनम है
जब आप सलामत हैं तो किस बात का ग़म है … ग़म है

जब आप सलामत हैं तो किस बात का ग़म है … मेरे साबिर

यूं तू ने नवाज़ा है मुझे अपने करम से … करम से
महसूस ये होता है मुह़म्मद ﷺ का करम है … करम है

हैं सबके सनम अपनी जगह लायक़-ए-त़ाज़ीम
बिस्मिल मेरी नज़रों में तो बस मेरा सनम है

या साबिरे कलियर तेरी निस्वत का करम है … करम है

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