Shabe Barat Ka Ejaz Hindi Lyrics | Tasleem Arif

Shabe Barat Ka Ejaz Lyrics

शबे बरात का एजाज़

 

नएरंग हैं अजूबा-ए-कुदरत शबे बरात
अल्लाह वालों के लिए रह़मत शबे बरात
शाबान की है पन्दरह तारीख की ये शब
क़ुर्बान हर तरहां से जिस पर की फ़ज़्ले रब
दर-अस्ल है ये रह़मतों बख्शिश का ख़ास दर
जिसके कमाल-ए-फ़ज़्ल से बाक़िफ़ हर बशर
फ़ज़्ले ख़ुदा का होता है इस रात में नुज़ूल
हर अहले दीं की होती है इसमे दुआ क़ुबूल
बे शक़ तमाम रातों में अफ़ज़ल ये रात है
क़ुर्बान इसकी शान पे कुल कायनात है
त्योहार है ये मज़हब-ए-इस्लाम का बड़ा
इसमें न्याज़ हल्वे पे होती है जा-बजा
पहुंचाया इसमें जाता है मुर्दों को भी सबाब
ऊपर से उनके टलता है इसके सबब अजाब
जिनके दिलों में होता है ख़ौफ़े ख़ुदा नसीम
क़ब्रों पे जाके फ़ातिहा पढ़ते हैं अहले दीन

 

बन्दों को ह़क़ ये ह़क़ से दिलाने के वास्ते
बन्दों को ह़क़ ये ह़क़ से दिलाने के वास्ते
आई ये रात सारे ज़माने के वास्ते

 

होती है मस्जिदों में सजावट से रौशनी
महकाई उनमें जाती हैं खुशबूएं इत्र की
उनमें नमाज़ी करते इबादत हैं रात भर
जन्नत में आलीशान बनाते हैं अपना घर
इस शब में बख़्शे जाएंगे उनके गुनाह सब
होता रहेगा उन पे हमेशा ही फज़्ले रब
जो भी करेगा इसका मुसलमान एहतराम
उसका नसीब चमकेगा बिगड़े बनेंगे काम
जितने भी हैं फरिश्ते वो आकर ज़मीन पर
बन्दों के साथ करते इबादत हैं रात भर
सजते हैं सब ही कूचा-ओ-बाज़ार शहर में
जश्न-ए-शब-ए-बारात बड़ा है ये दहर में
फज़्ल-ओ-करम की होती है इस रात में बा-ख़ैर
खुश वक़्त लूटने में ना करते हैं इसके देर

 

इस रात में जो जागेगा जन्नत में जाएगा
इस रात में जो जागेगा जन्नत में जाएगा
हूरों के साथ जश्न-ए-मसर्रत मनायेगा

 

अपना ख़ुदा-ए-पाक बड़ा मेहरबान है
उसका बड़ा है रुत़्बा बड़ी उसकी शान है
इस शब में बैठता है ख़ुदा अपने तख़्त पर
दर सब ही अपने रहमत-ओ-बख्शिश के खोलकर
खुश हो के अपने बंदों से कहता है ! मोमिनों
आओ मेरे खज़ाना-ए-रह़मत को लूट लो
तुम जो भी मुझसे मांगोगे दूंगा तुम्हें ज़रूर

तौबा से बख्श दूंगा तुम्हारे सभी कुसूर
मांगोगे माल-ओ-ज़र तो वो दूंगा बसद खुशी
चमकाऊंगा तुम्हारी हर इक तरहां ज़िन्दगी
है ये शबे बरात मेरी बख्शिशों की रात
इस रात पर निसार है ! कुल मेरी इस कायनात
इस रात में जो तौबा करेगा गुनाहगार
मैं उसको बख्श दूंगा खुशी से ब-सद वक़ार

 

गर हो नज़र तुम्हारी बहिश्ती उसूल पर
गर हो नज़र तुम्हारी बहिश्ती उसूल पर
भेजो दुरुद तुम मेरे प्यारे रसूल पर

 

गर तुमको सब्र-ओ-शुक्र की हालत में पाऊंगा
मैंने जो तुमसे वादा किया है! निभाऊंगा
जो इस शबे बरात में सोएगा बदनसीब
दोनों जहां की नेमतें खोएगा बदनसीब
इस शब में जो भी जागेगा सहरी वो खाएगा
रोज़ा ज़रूर रक्खेगा इनआम पाएगा
ऐ मोमिनो ये ग़ौर से सुनना है ! खास बात
रोज़े बिना अधूरी रहेगी शबे बरात
रोज़ा ये लाज़मी है बड़ा इसका है सबाब
इसमें मेरी अत़ाओं की बरकत है बे-हिसाब
रोज़ा ये और रोज़ों से अफ़ज़ल है विल-यकीन
इसको बड़े ही शौक से रखते हैं अहले दीन
परवाना-ए-बहिश्त है रोज़ा ये शानदार
रखने से इसके होता बहुत खुश है किर्दगार

 

ये रात जागने की है बिस्तर को छोड़ दो
ये रात जागने की है बिस्तर को छोड़ दो
आंखों से अपनी नींद के रिश्ते को तोड़ दो

है साल भर की रातों में अफ़ज़ल ये एक रात
कुदरत का है हदिया मुकम्मल ये एक रात
पर्चे इसी में कटते हैं मौत-ओ-हयात के
बन्दों को दर्ज़े मिलते हैं आला सिफ़ात के
होता है पूरे साल का इस रात में हिसाब
तूफ़ां के हादसात बबाओं का ऐ जनाब
ह़क़ ने बनाये रह़मत-ओ-बख्शिश के दिन तमाम
लेकिन शबे बरात को बख़्शा बड़ा मक़ाम
अल्लाह इसमें करता है ऐलान बार-बार
क्या चाहिए तुझे मेरे बंदे मुझे पुकार
तू जो भी मुझसे मांगेगा दूंगा तुझे ज़रूर
गफ़लत ना इसमें करना जो रखता है कुछ शऊर
ऐ मेरे बंदे ग़ौर से सुन ले ये मेरी बात
तेरे ही वास्ते ये सजाई है कायनात

 

भेजेगा जो सलाम शहीदों के नाम पर
भेजेगा जो सलाम शहीदों के नाम पर
मैं उसका नाम लिखूंगा कौसर के जाम पर

 

हर एक शैय है सिर्फ तुम्हारे लिए बनी
दरअस्ल इम्तहां है तुम्हारी ये ज़िन्दगी
फ़र्श-ए-ज़मीं तुम्हारे लिए है बिछा दिया
इसको चमन बना के गुलों से सजा दिया
इस पर उगा के सब्ज़ियों, आनाज, फूल, फल
दरिया बहाए झीलों में खिलवा दिए कवल
इक साल की ये रातों में रौशन है एक रात
मेरी अताओं का बड़ा मख़ज़न है एक रात
पुरनूर चांद तारे है इसमें सजा दिए
खुश करने को तुम्हारे ये सामां बना दिए
शहरद से भी तुम्हारी ज़्यादा हूँ मैं करीब
समझे जो मुझको दूर वो काफ़िर है बदनसीब
कहते हैं जिसको हश्र वो दिन है बहुत करीब
ढायेगा जो के वज़्में जहां पर सितम अजीब

 

दिन वो गज़ब में आएगा चिंघारता हुआ
दिन वो गज़ब में आएगा चिंघारता हुआ
मलऊन काफ़िरों का जिगर फ़ाड़ता हुआ

 

जब सूर मेरे हुकुम से फ़ूकेंगे इस्राफ़ील
पैदा निज़ाम-ए-दहर में होने लगेगी ढील
फट जाएगा धमाके से फौरन वो आसमान
होगा मुसीबतों में गिरफ़्तार कुल जहान
सूरज भी आएगा सबा नेज़े पे वो उतर
गर्मी से उसकी भागेगा बचने को हर बशर
पुरशाने हाल होगा किसी का नहीं वहां
हर सिम्त नफ़्सी नफ़्सी का होगा अजब समा
उस दिन किसी का कोई ना होगा जहान में
नक्शा पलट ही जाएगा सब एक आन में
तूफ़ां ये जब उठेगा कयामत का चार सू
इक हश्र खेज़ आएगा भूचाल कू बतू
घबरा के लोग चीखेंगे चिल्लाएंगे सभी
इमदाद को ना आएगा उनकी वहां कोई

 

फट जाएगी ज़मीन उखड़ जाएंगे पहाड़
फट जाएगी ज़मीन उखड़ जाएंगे पहाड़
कहरो गज़ब की होगी हर सिम्त मार धाड़

 

बन्दे जो नेक होंगे वहां पर वफ़ा शुआर
महशर में ये अज़ाब ना गुज़रेगा उन पे बार
उनको हर इक बला से बचायेंगी नेकियाँ
खुल्द-ए-बरीं की राह दिखायेंगी नेकियाँ
किस तरहां दिन ये होगा कयामत का शोला बार
हो जायेंगे ये खत्म के जितने हैं जानदार
पिस जायेगा ये हश्र की चक्की में कुल जहां
बाक़ी ना ज़िन्दगी की रहेगी कोई निशां

इन्सान, जिन्न, फ़रिश्ते ये मर जायेंगे सभी
उस दिन सिवा ख़ुदा के बचेगा कोई नहीं
बाक़ी बचेगी वो सिर्फ़ ख़ुदा की एक ज़ात
वो क़ादिर-ए-बक़ा है बड़ी मज़हरे सिफ़ात
सब होंगे ज़िन्दा हुक़्में ख़ुदा से वो फिर जनाब
आमाले नेक-ओ-बद का किया जायेगा हिसाब

 

जो नेक लोग होंगे वो जन्नत में जायेंगे
जो नेक लोग होंगे वो जन्नत में जायेंगे
बद होंगे जो सज़ा वो जहन्नुम की पायेंगे

 

Voice: Haji Tasleem Arif
Lyrics: Nairang Sambali

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