Khwaja Khwaja Bol Faqeera Qawwali Lyrics
Qawwal : Iqbal Afzal Sabri
फ़रिश्ते रश्क करें हैं तुम्हारी हस्ती पर,
तमाम शहर है क़ुर्बां तुम्हारी बस्ती पर ।
साहब जी सुल्तान जी तुम बड़े ग़रीब नवाज़
अपनी करके राखियो सो बंह पकड़े की लाज
संसार हर को पूजे, गुर को जगत सराहे
काबे में कोई ढूंढे, काशी में कोई चाहे
गुईयां मैं अपने पी के पैय्यां पड़ूं ना काहे,
हर क़ौम ओ मिल्लते रा दीने ब क़िबला गाहे,
मन क़िबला रास्त करदम, बर सम्त कज कुलाहे ।
ज़िक्रे खुदा की दिल के अंदर अमृतवाणी घोल
ज़िक्रे खुदा की दिल के अंदर अमृतवाणी घोल
नामे नबी की सुमिरन करके घट के पर्दे खोल ।
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा .. ख्वाजा ख्वाजा बोल
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा .. ख्वाजा ख्वाजा बोल
ख्वाजा पिया के नाम की सुमिरन रब से तुरत मिलाएं
सांचे गुर का बालका मरे ना मारा जाए ।
ख़्वाजा ख़्वाजा बोल फ़कीरा .. ख़्वाजा ख़्वाजा बोल
ख़्वाजा ख़्वाजा बोल फ़कीरा .. ख़्वाजा ख़्वाजा बोल
नेज़े तारो नेज़े चोबो नेज़े पोस्त
अज़ कुजा मीं आयदीं आवाज़-ए दोस्त
ख़ुश्क लकड़ी खुश्क तारो खुश्क पोस्त
फिर कहां से आ रही आवाज़े दोस्त
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा .. ख्वाजा ख्वाजा बोल ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
धुनले धुनिये अपनी धुन पराई धुनी का पाप न बुन,
तेरी रुई में चार बिनौले सबसे पहले उनको चुन ।
वलियन के महाराज हैं ख़्वाजा सब वलियन से न्यारे,
देख के ख़्वाजा रुत़बा तेरा शेख़ फ़रीद पुकारे ।
ख़्वाजा ख़्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख़्वाज ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
इसी नाम की लूट है, लूटी जाए तो लूट
अंतकाल पछ्तायेगा जब प्राण जाएंगे छूट
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
अगर यकीं ना हो तो देख लो सब पढ़ कर के
किताबे चिश्त के पहले सफे पे लिखा है,
ख़्वाजा ख़्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
चिश्त नगर में धूम मची है
ख़्वाजा पिया की आज छटी है ।
चिश्त नगर में .. ओहो नगर में ..
चिश्त नगर में .. ओहो नगर में ..
चिश्त नगर में धूम मची है
ख़्वाजा पिया की आज छटी है ।
ख्वाजा पिया की आज छटी है ..
ख्वाजा पिया की आज छटी है ..
उम्मीदों का फ़ूल खिलेगा
जो मांगोगे वही मिलेगा
ख्वाजा पिया की आज छटी है ..
ख्वाजा पिया की आज छटी है ..
देखो तो भाग जागे हैं भारत की ख़ाक के
अ़र्शे बरीं से देखें फ़रिश्ते भी झांक के ।
ख़्वाजा पिया की आज छटी है ..
ख्वाजा पिया की आज छटी है ..
देखो तो भाग जागे हैं भारत की ख़ाक के
अ़र्शे बरीं से देखें फ़रिश्ते भी झांक के ।
आज की रतियां मेला लगा है ख़्वाजा पिया के द्वारे
चांद, सूरज, आकाश के तारे झांकें नैन पसारे
ख़्वाजा पिया की आज छटी है ..
ख्वाजा पिया की आज छटी है ..
अ़र्श पर रतजगा हो रहा है
फ़र्श पर जश्ने ख्वाजा मनाओ,
आओ सखियों मेरे संग चल कर
रंग ख्वाजा के आंगन में गाओ ।
ख़्वाजा पिया की आज छटी है ..
ख्वाजा पिया की आज छटी है ..
ख़्वाजा पिया का सदक़ा लुटाएं फ़तिमा बीबी ज़हरा
राबिया बसरी गूंध के लाएं ख़ुल्दे बरीं से सेहरा ।
ख़्वाजा पिया की आज छटी है ..
ख्वाजा पिया की आज छटी है ..
जिसको ना यकीं आए, अजमेर में देख आए।
ख़्वाजा पिया की आज छटी है ..
ख्वाजा पिया की आज छटी है ..
ज़िक्रे खुदा की दिल के अंदर अमृतवाणी घोल
ज़िक्रे खुदा की दिल के अंदर अमृतवाणी घोल ।
नामे नबी की सुमिरन करके घट के पर्दे खोल ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
त़स्वीह माला यूं कहे के तू क्या फ़ेरे मोय
दिल की माला फ़ेर ले तू तुरत मिला दूं तोय
ख़्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
वेद, पुराण को पढ़-पढ़ थक्के
सज्दे करदे घिस गये मत्थे
ना रब तीरथ ना रब मक्के
खाता है तू कित-कित धक्के
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
चिश्त नगर में धूम मची है
ख़्वाजा पिया की आज छटी है ।
फ़ूल हुसैनी बाग़ से आए
ग़ौसुल आ़ज़म ने मंगवाए
ख़्वाजा उस्मां गूंद के लाए
ख़्वाजा क़ुत़ब हैं झंडा उठाए ।
गंजे शकर हैं वज़्द में आए
निजामुद्दीन और साबिर गाएं
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
कहा एक साबरी ख़ादिम ने ये अपने शेख़े कामिल से,
बचा लीजे मुझे बहरे खुदा इसियां की मंजिल से ।
बुराई बहुत की लेकिन मैं अब यह ग़म भी सहता हूं
मेरी बख्शिश हो कैसे मैं इसी उलझन में रहता हूं ।
रहा हूं आज तक मैं तारे शैतानी का दिल दादा
मेरे आमाल नामे पर सियाही हो गई ज़्यादा ।
कहा यह पीर ने अपने गुनाहों का बदल कर ले
यह नुस्खा याद कर ले और फिर इस पर अमल कर ले
शरीअ़त का तू साबुन पीर से अपने मंगा लेना
तरीक़त की जला कर आग उसे खुद पर चढ़ा लेना
तू रंगे मारिफ़त का नील भी उसमें मिला लेना
हवा की गर ज़रूरत हो हक़ीक़त की हवा लेना ।
जहां सो जाता है लेकिन तू पिछली शब ना सोया कर
तू अपनी आंख के अश्कों से उसको रोज़ धोया कर ।
हिर्स की दाल, नींद का हलवा
बुग़्ज़ का साग गोश्त भी मत खा
चार चीज़ों के पास मत जाना
नब्ज़ दिखलाने पांचों वक़्त आना
वेद, पुराण को पढ़-पढ़ थक्के
सज्दे करदे घिस गये मत्थे
ना रब तीरथ ना रब मक्के
खाता है तू कित-कित धक्के
अपने मुर्शिद पे कर पहले हस्ती फ़ना
इश्क़ में करामात हो जाएगी
जब करम तुझ पे ख़्वाजा का हो जाएगा
फ़िर नबी से मुलाक़ात हो जाएगी ।
लेकिन,
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
ख्वाजा ख्वाजा बोल फ़कीरा ..
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