Andhere Andhere Noha Lyrics | अंधेरे अंधेरे यतीमों से छुपकर

Andhere Andhere Noha Lyrics

 अंधेरे अंधेरे यतीमों से छुपकर

 

Ya Zehra… Ya Zehra….

Zehra….. Zehra…..
Zehra….. Zehra…..

 

Añdhere Añdhere Yatimoñ Se Chhupkar
Sar-e-Qabr-e-Zehra Ali Ro Rahi Haiñ

Zehra…. Zehra….

 

Tumhari Musibat Bhulauñga Kaise
Maiñ Bachhoñ Se Aañsu Chhupauñga Kaise
Tumhe Yaad Kar Ke Jo Royeñge Bachhe
Maiñ Bachhoñ Ko Apne Manauñga Kaise
Tasawwur Me Zehra Se Kar Ye Baateiñ
Jhukaye Sar Apna Ali Ro Rahe Haiñ

Añdhere Añdhere Yatimoñ Se Chhupkar
Sar-e-Qabr-e-Zehra Ali Ro Rahi Haiñ

Ya Zehra… Ya Zehra….

 

Kabhi Aañsuoñ Ko Chhupati Hai Zainab
Kabhi Bhaiyoñ Ko Uthaati Hai Zainab
Kabhi Ghar Ke Aañgan Me Aati Hai Zainab
Kabhi Maa Ke Hujre Me Jaati Hai Zainab
Kabhi Ro Ke Dukhiya Ye Karti Hai Noha
Utho Amma Fizza Ali Ro Rahe Haiñ

Añdhere Añdhere Yatimoñ Se Chhupkar
Sar-e-Qabr-e-Zehra Ali Ro Rahi Haiñ

Ya Zehra… Ya Zehra….

 

Utho Shahzadi Hua Hai Andhera
Tumhare Bina Wo Kahañ So Sakega
Maiñ Jauñga Bapas To Bolega Baba
Meri Maañ Kahañ Hai Bula Do Khudara
Akele Jala Kar Charagh Aañsuoñ Ka
Sar e Qabr e Zehra Ali Ro Rahe Haiñ

Añdhere Añdhere Yatimoñ Se Chhupkar
Sar-e-Qabr-e-Zehra Ali Ro Rahi Haiñ

Ya Zehra… Ya Zehra….

 

Hai Shahar e Nabi Me Samañ Karbala Ka
Na Koi Tasalli Na Koi Dilasa
Taraste Haiñ Ghar Me Yateeman e Zehra
Koi Aake Deta Nahiñ Inko Pursa
Hussain o Hasan Ka Kahiñ Par Hai Giriya
Kahiñ Mere Mola Ali Ro Rahe Haiñ

Añdhere Añdhere Yatimoñ Se Chhupkar
Sar-e-Qabr-e-Zehra Ali Ro Rahi Haiñ

Ya Zehra… Ya Zehra….

 

Kabhi Is Jagah Ko Na Bhooleñge Mola
Ye Koocha Hai Maqtal Dil e Murtaza Ka
Yahañ Se Na Guzre Hasan Baad e Zehra
Sitamgar Ne Mara Tha Yuñ Taziyana
Muhammad Ki Beti Zamiñ Par Giri Thi
Yahañ Baithe Tanha Ali Ro Rahe Haiñ

Añdhere Añdhere Yatimoñ Se Chhupkar
Sar-e-Qabr-e-Zehra Ali Ro Rahi Haiñ

Ya Zehra… Ya Zehra….

 

Wo Lamheñ Haiñ Mushkil Ali Ko Bhulana
Wo Pahlu Pe Jalte Huye Dar Ka Girna
Wo Aahoñ ka Bharna Wo Zakhmoñ Ka Risna
Shahadat Wo Mohsin Ki Zehra Ka Rona
Takallum Abhi Tak Isi Bekasi Par
Lahad Me Bhi Maula Ali Ro Rahe Haiñ

Añdhere Añdhere Yatimoñ Se Chhupkar
Sar-e-Qabr-e-Zehra Ali Ro Rahi Haiñ

Ya Zehra… Ya Zehra….

 

Nauha Khwan: Farhan Ali Waris
Poetry By: Mir Takallum Mir

 

Andhere Andhere Yatimon Se Chhupkar Lyrics Hindi

 

ज़हरा…. ज़हरा….
ज़हरा…. ज़हरा…
ज़हरा…. ज़हरा…

 

अंधेरे अंधेरे यतीमों से छुपकर
सर-ए-क़ब्र-ए-ज़हरा अली रो रहे हैं

या ज़हरा…. या ज़हरा….

 

तुम्हारी मुसीबत भुलाऊंगा कैसे
मैं बच्चों से आंसू छुपाऊंगा कैसे
तुम्हें याद करके जो रोएंगे बच्चे
मैं बच्चों को अपने मनाऊंगा कैसे
तसव्वुर में ज़हरा से कर ये बातें
झुकाए सर अपना अली रो रहे हैं

अंधेरे अंधेरे यतीमों से छुपकर
सर-ए-क़ब्र-ए-ज़हरा अली रो रहे हैं

या ज़हरा…. या ज़हरा….

 

कभी आंसुओं को छुपाती है ज़ैनब
कभी भाइयों को उठाती है ज़ैनब
कभी घर के आंगन में आती है ज़ैनब
कभी मां के हुजरे में जाती है ज़ैनब
कभी रो के दुखिया ये करती है नौहा ज़ैनब
उठो अम्मां फ़िज़्ज़ा अली रो रहे हैं

अंधेरे अंधेरे यतीमों से छुपकर
सर-ए-क़ब्र-ए-ज़हरा अली रो रहे हैं

या ज़हरा…. या ज़हरा….

 

उठो शहज़ादी हुआ है अंधेरा
तुम्हारे बिना वो कहां से हो सकेगा
मैं जाऊंगा वापस तो बोलेगा बाबा
मेरी मां कहां है बुला दो खुदारा
अकेले जलाकर चराग़ आंसुओं का
सर-ए-क़ब्र-ए-ज़हरा अली रो रहे हैं

अंधेरे अंधेरे यतीमों से छुपकर
सर-ए-क़ब्र-ए-ज़हरा अली रो रहे हैं

या ज़हरा…. या ज़हरा….

 

है शहर ए नबी में समां कर्बला का
न कोई तसल्ली, न कोई दिलासा
तरसते हैं घर में यतीमान-ए-ज़हरा
कोई आके देता नहीं इनको पुर्सा
हुसैन-ओ-हसन का कहीं पर है गिरिया
कहीं मेरे मौला अली रो रहे हैं

अंधेरे अंधेरे यतीमों से छुपकर
सर-ए-क़ब्र-ए-ज़हरा अली रो रहे हैं

या ज़हरा…. या ज़हरा….

 

कभी इस जगह को ना भूलेंगे मौला
ये कूचा है मक़तल दिले मुर्तज़ा का
यहां से ना गुज़रे हसन बाद ए ज़हरा
सितमगर ने मारा था यूं ताज़ियाना
मुह़म्मद की बेटी ज़मीं पर गिरी थी
यहां बैठे तन्हा अली रो रहे थे

अंधेरे अंधेरे यतीमों से छुपकर
सर-ए-क़ब्र-ए-ज़हरा अली रो रहे हैं

या ज़हरा…. या ज़हरा….

 

वो लम्हें हैं मुश्किल अली को भुलाना
वो पहलू पे जलते हुए दर का गिरना
वो आहों का भरना वो ज़ख्मों का रिसना
शहादत वो मोहसिन की, ज़हरा का रोना
तकल्लुम अभी तक इसी बेकसी पर
लहद में भी मौला अली रो रहे हैं

अंधेरे अंधेरे यतीमों से छुपकर
सर-ए-क़ब्र-ए-ज़हरा अली रो रहे हैं

या ज़हरा…. या ज़हरा….

 

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