मुझ पे अल्ताफ़ ओ करम‌ या शाहे जीलानी रहे

मुझ पे अल्ताफ़ ओ करम‌ या शाहे जीलानी रहे

क़व्वाल: लतीफ़ मंसूर

English Lyrics

 

जनाब ए ग़ौस! करम की निगाह कर देना

शहर बग़दाद मैं देखूं, मुझे दाद ए सफ़र देना

न घर देना न ज़र देना मगर इतना असर देना

तुम्हें आठों पहर देखा करूं ऐसी नज़र देना

 

मुझ पे अल्ताफ़ ओ करम‌ या शाहे जीलानी रहे

वक़्त ए नज़्आ़ सामने तस्वीर ए नूरानी रहे

जलवागर हों आप और सजदे में पेशानी रहे

बात रह जाए मेरी इतनी मेहरबानी रहे

लाज मेरी कम से कम महबूब ए सुबहानी रहे

लाज मेरी कम से कम महबूब ए सुबहानी रहे…

 

करबला वालों का सदका सबसे यक्ता रंग दे

नक्शबंदी या निज़ामी, तेरा जिम्मा रंग दे

सबरी या क़ादरी, लेकिन अनोखा रंग दे

मेरे दिल को या शह ए बग़दाद ऐसा रंग दे

सारी दुनिया तेरे दीवाने की दीवानी रहे।

 

सारी दुनिया तेरे दीवाने की दीवानी रहे…

 

आप हैं दाता तो फिर क्या ग़म, फ़क़ीरों के लिए

कब खज़ाने में रहा है कम, फ़क़ीरों के लिए

हाथ ऊंचा ही रहा हर दम, फ़क़ीरों के लिए

गै़र को शाही मुबारक, हम फ़क़ीरों के लिए

दर सलामत आपका या ग़ौस ए समदानी रहे।

 

दर सलामत आपका या गौस ए समदानी रहे…

 

मौक़ा ए तानाज़नी अहले ज़माना को न दो

लेके शौक़ ए दीद आंखों में यहां से चल पड़ो

आग के शोले उठें, बिजली गिरे, जो हो सो हो

जानिब ए बग़दाद इस अंदाज़ से नाज़ां चलो

भेस जोगी का रहे और चाल मस्तानी रहे।

 

भेस जोगी का रहे और चाल मस्तानी रहे..

 

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