या मोहम्मद नूरे मुजस्सम साबरी ब्रदर्स कव्वाली लिरिक्स
Ya Mohammad Noor e mujassam Qawwali Lyrics in Hindi
कव्वाल: साबरी ब्रदर्स (ग़ुलाम फ़रीद साबरी और मक़बूल अहमद सबरी )
शायर : अदीब रायपुरी
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सारे आलम के लिए तू ही फ़क़त चारा साज़
ऐ के तू बन्दए आजिज़ के लिए बंदा नवाज़
आंख रो रो के तलब करती है रहमत तेरी
दिल धड़कता है तो आती है यही इक आवाज़
ऐ.. के तेरा जमाल है
रौनक़ ए महफ़िल ए वुजूद
ऐ.. के तेरी नमूद है
जल्वा तराज़े हस्त ओ बूंद
या दे तो दादे लज़्ते
ज़िकरे ….
ज़िक्रे तो शौके मन वुजूद
तुझपे दुरुद और सलाम
तुझपे सलाम और दुरुद
सल्ले अला नबीए न
सल्ले अला मोहम्मदिन
या मोहम्मद नूरे मुजस्सम
या हबीबी या मौलाई
तस्वीरे कमाले मोहब्बत
तनवीरे जमाले ख़ुदाई
या मोहम्मद नूरे मुजस्सम..
दो जहां फ़िदा तेरे नाम पर
है सुकून फ़ज़ा तेरा नाम भी
तेरी ज़ात पर हो दुरुद भी
तेरी ज़ात पर हो सलाम भी
मुझे अपनी ताबिशें कर आता
तू मेरा है माहे तमाम भी
है लुटी लुटी मेरी सुब्ह भी
है बुझी बुझी मेरी शाम भी
या म़ुहम्मद नूरे मुजस्सम
या ह़बीबी या मौलाई
तस्वीरे कमाले मोह़ब्बत
तनवीरे जमाले ख़ुदाई
तेरा वस्फ़ बयां हो किस से
तेरी कौन करेगा बड़ायी
या व-र-फअ्-न ल-क-ज़िक-रक
तेरी कौन करेगा बड़ायी
या रहमते कुल ख़ैरुल बशर
तेरी कौन करेगा बड़ाई..
तेरा वस्फ बयां हो किससे
तेरी कौन करेगा बड़ाई ..
खुदा ने खेंच के नक्शा रसूले अकरम का
ये कह दिया तेरा सानी नहीं जवाब नहीं
तेरी कौन करेगा बड़ाई ..
वश्शम्स रुख़े ज़ेबा है तेरा
तू नूर फ़ि-शाने आलम है
तू नूर फ़ि-शाने आलम है ..
तू नूर फ़ि-शाने आलम है ..
ऐ मनमोहन, तैबा धनी
कौसैन के राजिशबरीं
चंदर मुकट, सूरज बरन
निरकार ज्योती, मन हरी
मुखड़े को तेरे देख कर
प्रभू ने ये आशा करी
ऐ चेहरए ज़ेबाए तो
रश्के बुताने आज़री
हर चंद वस्फत मीं कुनम
दर हुस्ने जां बाला तरी
रुहुल अमीं से एक दिन
कहने लगे शाहे उमम
तुम ने तो देखा है जहां
बतलाओ तो कैसे हैं हम
ख़ुश हो के यूं कहने लगे
ऐ वह तेरे रूख़ की क़सम
आफ़ाक हा गर दीदा अम
मेहरे बुतां वर्ज़ीदा अम
बिस यार ख़ूबां दी-दअम
लेकिन तो चीज़े दीगरी
तू नूर फ़ि-शाने आलम है ..
तू नूर फ़ि-शाने आलम है ..
वश्शम्स रुख़े ज़ेबा है तेरा
तू नूर फ़ि-शाने आलम है
वल्लैल है तेरी ज़ुल्फ़े दुता
तू राहते जाने आलम है
कामत का नहीं साया है तेरे
ये अक़्ल ही क्या जो तुझे समझे
तू लाख बशर अपने को कहे
कुछ और गुमाने आलम है
क्य़ूं?
जल्वे तेरे उस वक़्त भी थे
कम भी नहीं थे
ये जब की हैं बातें के जब
आदम भी नहीं थे
ख़्याल आया रब को
कि देखूंगा ख़ुद को
तो ख़ुद में से ख़ुद
एक तस्वीर ढाली
जो देखा तो ख़ुद
हो गया उसपे शैदा
वो तस्वीर अपने
मुक़ाबिल सजा ली
फिर….
मुरक्क़ा किया उसको
हर हर अदा से
रखा नाम उसका
मुहम्मद ﷺ खुदा ने
रखा नाम उसका
मुहम्मद ﷺ खुदा ने ..
ख़ुद ही अपना जल्वा
ख़ुद ही उसका तालिब …
आ-पही माता आपही पिता
आ-पही गोदन हारा
अपनी गोद में आ-पही खेले
बन बन के नंदलाला
कहत नवाब तोरी सूरतिया
लाखन में अनमोल
जब के सूरत आप बनावे
आ-पही लहा-लोट हुई जाए
यारे मनवा कमाले रानाई
ख़ुद तमाशा ओ ख़ुद तमाशाई
ख़ुद ही अपना जल्वा
ख़ुद ही उसका तालिब …
दिल शेफ़्तए सैय्यदे मक्की मदनी है
क्या हुस्ने मुक़द्दर मेरा आल्ला हो ग़नी है
नक्कासे अज़ल ने कहा तस्वीर बना कर
ऐसी कोई तस्वीर बनेगी न बनी है
तेरी कौन करेगा बड़ाई….
तेरा वस्फ बयां हो किससे
तेरी कौन करेगा बड़ाई
इस गर्दे सफ़र में गुम है
जिब्रीले अमीं की रसाई
या म़ुहम्मद नूरे मुजस्सम
या ह़बीबी या मौलाई
तस्वीरे कमाले मोह़ब्बत
तनवीरे जमाले ख़ुदाई
ये रंगे बहारे गुलशन
ये गुल और गुल का जोबन
तेरे नूरे क़दम का धोबन
इस धोबन की रानाई
या म़ुहम्मद नूरे मुजस्सम
या ह़बीबी या मौलाई ..
मा अजमा लका तेरी सूरत
मा अहसा नका तेरी सीरत
मा अकमा लका तेरी अज़मत
तेरी ज़ात में गुम है ख़ुदाई
या म़ुहम्मद नूरे मुजस्सम
या ह़बीबी या मौलाई
तस्वीरे कमाले मोह़ब्बत
तनवीरे जमाले ख़ुदाई
या म़ुहम्मद नूरे मुजस्सम
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(नीचे लिखे गए अशआर कव्वाली में नहीं पढ़े गए)
तेरी एक नज़र के तालिब तेरे एक सुख़न पे कुर्बां
ये सब तेरे दीवाने ये सब तेरे शैदाई
ऐ मज़हर-ए शान-ए जमाली ऐ ख़्वाजा को बंदा-ए आली
मुझे हश्र में काम आ जाए मेरा ज़ौक़ ए सुख़न आरायी
तू रईस-ए रोज़-ए शफ़ाअ़त तू अमीर ए लुत्फ़ को इनायत
है अदीब को तुझ से निस्बत यह ग़ुलाम है तू आक़ायी
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