मेरे पीर की गुलामी मेरे काम आ गई लिरिक्स
Mere peer ki ghulami mere kaam aa gayi Lyrics in Hindi
Qawwali of Aslam Akram Warsi
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दुनिया ख़िलाफ़ है तो मुझे क्या मलाल है
मैं जिसका हो गया हूं उसे ख़ुद ख़याल है।
उनके करम से मेरी पुर लुत्फ़ ज़िंदगी है
गुज़रा हूं मैं जिधर से इज़्ज़त मुझे मिली है
मेरे पीर की ग़ुलामी मेरे काम आ गई है
मेरे पीर की ग़ुलामी मेरे काम आ गई है।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
झुक कर सलाम करने लगा यह जहां मुझे
पहुंचा दिया है तेरे करम ने कहा मुझे!
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
आई हुई बला भी मेरे सर से टल गई
ऐसा नवाज़ा पीर ने दुनिया बदल गई।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
शैदायी हूं मैं उनका, उन्हीं का हूं दीवाना
है मेरे लबों पर मेरे मुर्शिद का फ़साना,
जिस दिन से मिली है दर ए मुर्शिद की गदाई
पहचानता है आज मुझे सारा जमाना।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
दामान ए मुर्शिदी में बड़ी बरकतें मिलीं
हासिल है इस वसीले से फ़ैज़ान ए पंजतन,
बैअ़त मुझे नसीब हुई जब से पीर की
हाथों में मेरे आ गया दामान ए पंजतन।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
जिस दिन से मेरे पीर की निस्बत मुझे मिली
वल्लाह! मेरी बिगड़ी हुई बात बन गई,
मैं एक खोटे सिक्के के जैसा था कल तलक
उनके करम से आज है अनमोल ज़िंदगी।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
तेरे करम ने ऐसा नवाज़ा तेरी क़सम
दुनिया से मांगने की ज़रूरत नहीं रही।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
महफ़िल में पहली सफ़ में जगह दी गई मुझे
ऐ मेरे पीर ये तेरी निस्बत की बात है।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
सौ जां से अपने पीर पे क़ुर्बान जाऊं मैं
गुलशन मेरी हयात का गुलज़ार कर दिया,
जब से बने वह नाख़ुदा मेरी हयात के
बहरे ग़म ए जहां से मुझे पार कर दिया।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
उनकी नवाज़िशों को भला क्या करूं रक़म
अल्ताफ़ ओ करम उनका है मुझ पर क़दम-क़दम,
मुझ जैसे निकम्मे को कोई पूछता न था
उनकी नज़र ने कर दिया दुनिया में मोहतरम।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
ये उनकी इनायात हैं, उनकी है यह अता
लोगों की निगाहों में भरम है बना हुआ,
मैं कुछ भी नहीं हूं मेरी औकात क्या भला
ऐसा मुझे नवाज़ा करूं मैं बयान क्या।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
निस्बत ने आपकी मुझे सब कुछ अ़ता किया
अदना गुलाम था मुझे सुल्तां बना दिया।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
निस्बत से तेरी मेरा ज़माने में भरम है
ऐसा मेरे मुर्शिद तेरा अंदाज़ ए करम है।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
दामान ए पीर से मिला दामान ए पंजतन
है मुझको नाज़ ये मेरी निस्बत बुलंद है,
उस मर्द ए ख़ुदा की मुझे बैअ़त नसीब है
सद-शुक्र मरहबा मेरी किस्मत बुलंद है!
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
मुझ को डुबाना चाहा जो तूफ़ान ओ भंवर ने
घबराया मुश्किलों से मुझे आया पसीना,
“या पीर अल मदद” जो कहा वक़्त ए मुसीबत
बह्र-ए-अलम से पार हुआ मेरा सफीना।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
कल थे जो लोग मुझसे बड़े बद गुमान से
वह भी हैं आज मुझ पे बड़े मेहरबान से,
यह मुर्शिद-ए-कामिल की निगाहों का फ़ैज़ है
रहता हूं इस जहां में बड़ी आन बान से।
मेरे पीर की ग़ुलामी.. मेरे काम आ गई
आईना ए ख़ुलूस की तस्वीर चाहिए
बस ऐसा पीर पाने को तक़दीर चाहिए।
मेरे पीर की गुलामी.. मेरे काम आ गई
तेरी नज़र से दिल को सुकूं है क़रार है
तेरे करम से मेरे चमन में बहार है।
मेरे पीर की गुलामी.. मेरे काम आ गई
आल-ए-रसूल-ए-पाक की उल्फ़त मिली मुझे
ईमान ओ दीन की जो यह दौलत मिली मुझे,
निस्बत से उनकी पहले थी बेकैफ़ जिंदगी
नेमत सब आज उनकी बदौलत मिली मुझे।
मेरे पीर की गुलामी मेरे काम आ गई
मेरे पीर की गुलामी मेरे काम आ गई
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Ji Bhaijaan
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