फ़िक्र असफ़ल है मेरी मर्तबा आ़ला तेरा हम्द लिरिक्स | Fikr Asfal Hai Meri Martaba A’ala Tera Lyrics in Hindi | Humd Lyrics | fikr asfal hai full lyrics in hindi
Kalaam : Maulana Hasan Raza Khan Bareilvi
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फ़िक्र असफ़ल है मेरी मर्तबा आ़ला तेरा
फ़िक्र असफ़ल है मेरी मर्तबा आ़ला तेरा
वस़्फ़ क्या ख़ाक लिखे ख़ाक का पुतला तेरा
तूर ही पर नहीं मौक़ूफ़ उजाला तेरा
कौन से घर में नहीं जल्व-ए ज़ेबा तेरा
हर जगह ज़िक़्र है ऐ जल्व-ए ज़ेबा तेरा
कौन सी बज़्म में रौशन नहीं इक्का तेरा
फिर नुमायां जो सर-ए-तूर हो जल्वा तेरा
आग लेने को चले आ़शिक़-ए-शैदा तेरा
ख़ीरा करता है निगाहों को उजाला तेरा
कीजिए कौन सी आंखों से नज़ारा तेरा
जल्व-ए यार निराला है ये पर्दा तेरा
के गले मिल के भी खुलना नहीं मिलना तेरा
क्या ख़बर है के अ़ल-अल-अ़र्श के मानी क्या हैं
के है आ़शिक़ की तरह अ़र्श भी जूया तेरा
अरनी गोया ए सरे तूर से पूछे कोई
किस तरह ग़श में गिराता है तजल्ला तेरा
पार उतरता है कोई ग़र्क कोई होता है
कहीं पायाब कहीं जोश में दरिया तेरा
बाग़ में फूल हुआ शम्मा बना महफ़िल में
जोश-ए-नैरंग दर आग़ोश है जलवा तेरा
नए अंदाज़ की ख़ल्वत है ये पर्दानशीं
आंखें मुश्ताक़ रहें दिल में हो जल्वा तेरा
शह नशीं टूटे हुए दिल को बनाया उसने
आह ऐ दीदा-ए-मुश्ताक़ ये लिखा तेरा
सात पर्दों में नज़र और नज़र में आ़लम
कुछ समझ में नहीं आता ये मुअ़म्मा तेरा
तूर का ढेर हुआ ग़श में पड़े हैं मूसा
क्यूं न हो यार के जल्वा है जल्वा तेरा
चार अज़्दाद की किस तरहा गिरह बांधी है
नाख़ुन ए अक़्ल से खुलता नहीं उक़दा तेरा
दश्त-ए-ऐमन में मुझे ख़ाक नज़र आएगा
मुझ में होकर नज़र आता नहीं जल्वा तेरा
हर सहर नग़मा-ए मुर्ग़ान-ए नवा-संज का शोर
गूंजता है तेरे औस़ाफ़ से स़हरा तेरा
वहशी-ए-इ़श्क़ से खुलता है तू ऐ पर्दा-ए-यार
कुछ न कुछ चाक गिरेबां से है रिश्ता तेरा
सच है इंसान को कुछ खो के मिला करता है
आप को खो के तुझे पायेगा जूया तेरा
हैं तेरे नाम से आबादी-ओ-स़हरा आबाद
शह्र में ज़िक्र तेरा दश्त में चर्चा तेरा
बर्क़-ए-दीदार ही ने तो ये क़यामत तोड़ी
सबसे है और किसी से नहीं पर्दा तेरा
आमद-ए-हश्र से इक ई़द है माशूक़ों में
इसी पर्दे में तो है जल्व-ए ज़ेबा तेरा
सारे आलम को तो मुश्ताक़-ए-तजल्ली पाया
पूछने जाइए अब किस से ठिकाना तेरा
तूर पर जल्वा दिखाया है तमन्नायी को
कौन कहता है के अपनों से है पर्दा तेरा
काम देती हैं यहां देखिए किस की आंखें
देखने को तो है मुश्ताक़ ज़माना तेरा
मैकदे में है तराना तो अज़ां मस्जिद में
वस़्फ़ होता है नए रंग में हर जा तेरा
चाक हो जाएंगे दिल जेब ओ गरेबां किसके
दे न छुपने की जगह राज़ को पर्दा तेरा
बे नवा, मुफलिस-ओ-मौहताज गदा कौन के मैं
स़ाहिब-ए-जूद-ओ-करम वस़्फ़ है किसका तेरा
आफ़रीं अहल-ए-मोहब्बत के दिलों को ऐ दोस्त
एक कूज़े में लिए बैठे हैं दरया तेरा
इतनी निस्बत भी मुझे दोनों जहां में बस है
तू मेरा मालिको-मौला है मैं बंदा तेरा
उंगलियां कानों में दे देके सुना करते हैं
ख़ल्वत-ए-दिल में अ़जब शोर है बरपा तेरा
अब जमाता है ‘हसन’ उसकी गली में बिस्तर
ख़ूबरूयों का है महबूब, है प्यारा तेरा
मौलाना हसन रज़ा खां बरेलवी
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