दाई ह़लीमा गोद में तेरी साबरी ब्रदर्स कव्वाली लिरिक्स
कव्वाल: साबरी ब्रदर्स
रचना: मक़बूल साबरी
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आ …
(हां हुज़ूर समात फरमाएं, तारीखी बात)
मोह़म्मद ﷺ से पहले था आ़लम निराला
लगाया था शैतां ने ज़ुल्मत का ताला
कहीं तीरो-नश्तर, कहीं तेगो़-भाला
दुशम्बे का दिन था, सहर का उजाला
तो मक्के में पैदा हुआ कमली वाला
हंसत मोहम्मद ﷺ आवत हैं
मोरा हंस्तेई घरवा बस जायी
डगर-डगर कुटवा चमके
मेरे अंगना में नूर बरस जायी
हू़रो – मलायक झूम उठे
ह़क़ ने जारी फ़रमान किया
रेगिस्तान-ए-अरब को जिसने
रश्के बहारिसतान किया
बोले फ़रिश्ते तूने मौला
कैसा ये सामान किया
के
पूरा तूने आज हमारी
रूहो़ं का सामान किया
तो, जश्न मनाओ
जश्न मनाओ कु़दरत ने
हर मुश्किल को आसान किया
अर्श ने ये खु़शख़बरी भेजी
ज़मीं ने ये ए़लान किया
के
अब्दुल्लाह के घर से जहां में
नूर बिखरने वाला है
दाई हलीमा गोद में तेरी
चांद उतारने वाला है….
तक़दीर हलीमा की जागी
रह़मत के बादल छते हैं
जग! जगमग जगमग होवत है
तशरीफ़ मोहम्मद लाते हैं…
अब्दुल्लाह के घर से जहां में
नूर बिखरने वाला है
दाई हलीमा गोद में तेरी
चांद उतारने वाला है…
( समाअ़त फरमाएं : जब ये ख़बर सुनी के दुनिया में, आका़ए नामदार हुज़ूर – ए अकरम पुरनूर सल्लल्ला हो अलहे वसल्लम, दुनियां में तशरीफ़ ला रहे हैं, तो मलायक, जिन्नों – इंसा, ज़मीनों – आसमान, चांद – सितारे, कहकशां ये तमाम के तमाम, किस तरह खुशियां मना रहे थे। समाअ़त फरमाएं)
खुश हुए जिन्नों बशर
सुन के ये नेक ख़बर
बहरे ताज़ीमो-अदब
झुक गए शम्स-ओ-क़मर
हू़रो ग़िलमान सभी
हुए कु़र्बान सभी
अर्श से फ़र्श तलक
रौशनी और चमक
बाम अरमां के सजे
रूह़ के साज़ बजे
झूम उठी अर्शे बरीं
गुनगुना उठी ज़मीं
लह-लहा उठे चमन
हंस पड़े कोहो-दमन
नाच उठी बादे सबा
हो गई मस्त फज़ा
बन गई रेग़े – अरब
चश्मा ए जलवा ए रब
और खजूरों की क़तार
खे़मा ए फ़स्ले – बहार
रेत गौहर की तरहां
सीम और ज़र की तरह
जान मौसम में पड़ी
क्या सुहानी है घड़ी
चांद ने हंस के कहा
बहरे ताज़ीम झुका
सुनले मौला ये दुआ़
करदे रह़ उसकी पनाह
उनके क़दमों में बिछा
जिस पे तू खुद है फ़िदा …
कहकशां बोल उठी
मौला अरमां है यही
उसकी में राह बनूं
उसकी ठोकर में रहूं
मेरे ऊपर वो चले
आएं दिन मेरे भले
मेरी,
ज़िन्दगी फूले – फले
उसकी नअ़लैन तले ….
(रात! रात क्या कहती है!)
रात कहती है ख़ुदा
उसकी जु़ल्फों में बसा
चांदनी को है लगन
चूम लूं उसका बदन
उसकी चादर मै बनूं
उसका बिस्तर मैं बनूं
(क्यूं के)
फूल को उसकी तलब
शाख़ को उसका अदब
बहर ए कुलजु़म को खु़शी
बज़्म-ए- अंजुम को खुशी
मौजे दरिया को खुशी
रेगे़- सहरा को खुशी
आबो – दिल, शीशा – ओ- संग
निकह़त – ओ – खुशबू – ओ रंग
माही – ओ- मोर – ओ – परिंद
मुर्ग़ – ओ- ताऊस – ओ – चरिंद
ये
सब तलबगार हुए
उसके बीमार हुए …
उसकी उम्मीद लिए
हसरत – ए – दीद लिए
सब हैं बेताब यहां
सब हैं बेख़्वाब यहां
सब की आंखों में वोही
सब की रूहों में वोही
वो ही मह़बूब – ए – ख़ुदा
जिस पे हर शै है फ़िदा
वो ही सरदार – ए – जहां
सरवर – ए – कौनों – मकां
आमना गोद तेरी
ह़क़ ने जल्वों से भरी
ऐ हलीमा तू मचल
नाज़ कर, झूम के चल
वो नबी, प्यारा नबी
मुन्तज़िर जिस के सभी
आने वाला है वो ही ….
तो,
झूम री दुनियां, तेरा मुक़द्दर
आज संवरने वाला है
दायी हलीमा गोद में तेरी
चांद उतरने वाला है। …..
आयगा वो महबूब – ए – ख़ुदा
वो ह़मदम दावर आएगा
दुनिया जिस पर नाज़ करेगी
ऐसा पयम्बर आएगा …
ऐ प्यासी मख़लूक ना घबरा
तुझ तक साग़र आएगा
लेके मये – कौसर का प्याला
साक़ी – ए – कौसर आएगा …
ज़ुल्मत पर यलग़ार की खा़तिर
माहे – मुनव्वर आएगा
और,
कांधे पर कमली डाले
कौनैन का सरवर आएगा …
ज़ुल्मत पर यलग़ार की खा़तिर
माहे – मुनव्वर आएगा
और,
कांधे पर कमली डाले
अल्लाह का दिलवर आएगा …
आमना तेरी क़िस्मत पर
हर मां का मुक़द्दर रश्क करे
क्यों के,
तेरे घर के झूले में
कौनैंन का सरवर आएगा ….
बार – ए – गुनह से बोझल इन्सां
हश्र के दिन की फ़िक्र न कर
तेरी शाफाअत होगी यक़ीनन
शाफए महशर आएगा ….
बारह रबी उल अव्वल का दिन
सुब्ह के ठंडे साए
और,
शोर हुआ आफाक़ में हर सू
लो वो मोह़म्मद ﷺ आए …
तो,
आएगा वो शाहा जो सबकी
झोली भरने वाला है
दाई हलीमा गोद में तेरी
चांद उतरने वाला है। …
आ…हा…