Ya Mustafa Noor ul Huda Saani Tera Koi Nahiñ Lyrics In Hindi
या मुस्तफ़ा नूर-उल-हुदा, सानी तेरा कोई नहीं लिरिक्स
Qawwal : Nusrat Fateh Ali Khan
करम जब आले नबी का शरीक होता है
बिगड़ बिगड़ के हर एक काम ठीक होता है
दुरूद-ए आले मुहम्मद ﷺ की ये फज़ीलत है
के ला-शरीक़ भी इसमें शरीक़ होता है
हर नफ़स इश्क़-ए मोहम्मद ﷺ का पयामी कर लो
जिंदगी मिट के मोहब्बत में, दवामी कर लो
बादशाही है अगर दोनों जहां की दरकार
दोस्तों आओ मोहम्मद ﷺ की ग़ुलामी कर लो
अल्लाह की हम जल्वागरी देख रहे हैं
यानी के जमाल-ए म-दनी देख रहे हैं
जिस वक्त पढ़ो सल्ले-अला नाम-ए मोहम्मद ﷺ
समझो के रसूले अ-रबी देख रहे हैं
हद्द-ए तौसीफ से भी नाम है बाला तेरा
के ख़ुदा आप है ख़ुद चाहने वाला तेरा
तेरे सदक़े हुई मंजूर दुआ़-ए आदम
रोज़-ए अव्वल ही था मौजूद उजाला तेरा
या मुस्तफ़ा नूर-उल-हुदा, सानी तेरा कोई नहीं
Ya Mustafa Noor ul Huda Saani Tera Koi Nahiñ
या मुस्तफ़ा नूर-उल-हुदा, सानी तेरा कोई नहीं
या मुस्तफ़ा नूर-उल-हुदा, सानी तेरा कोई नहीं
शम्सुद्दुहा कोई नहीं बदरुद्दुजा कोई नहीं
या मुस्तफ़ा नूर-उल-हुदा, सानी तेरा कोई नहींं ..
सानी तेरा कोई नहीं ..
सानी तेरा कोई नहींं ..
काली कमली वाले आक़ा
सानी तेरा कोई नहीं ۔۔۔۔..
रसूल और भी आए जहान में, लेकिन
काली कमली वाले आका
सानी तेरा कोई नहीं ……
शह-ए यसरबी तेरे हुस्न की
किसे ताब जो करे हमसरी
न गुलों में ऐसी शुगुफ़्तगी
न ये रंग ओ बू न ये सादगी
ये अनोखी छब ये नई फबन
ये अदाएं प्यारी ये सादगी
तेरी मिस्ल कोई हुआ न हो
तेरे सदके जाऊं मैं या नबी
काली कमली वाले आका
सानी तेरा कोई नहीं ……
हर-हर कुंडल-कुंडल उत्ते आशिक़ दा दिल डोले
हुस्न तेरे दी सिफ़्त की आखां काफिर कलमा बोले, आखे
काली कमली वाले आका
सानी तेरा कोई नहीं ……
नज़रों ने मेरी सारा जहां छान लिया है, पर
काली कमली वाले आक़ा
सानी तेरा कोई नहीं ……
(सरगम)
काली कमली वाले आक़ा
सानी तेरा कोई नहीं ……
फिरे ज़माने में चार जानिब
निगार-ए यक्ता तुम्हीं को देखा
हसीन देखे जमील देखे
पर एक तुमसा तुम्हीं को देखा
काली कमली वाले आका
सानी तेरा कोई नहीं ……
हुए हैं हज़रत-ए यूसुफ़ हसीं ज़माने में
मगर उन्हें भी तेरे हुस्न की ज़कात मिली !
काली कमली वाले आका
सानी तेरा कोई नहीं ……
या मुस्तफ़ा नूर-उल-हुदा, सानी तेरा कोई नहीं
शम्सुद्दुहा कोई नहीं बदरुद्दुजा कोई नहीं …….
ख़त्म-ए रुसुल ख़ैरूल अ़मल कोई नहीं तेरा बदल
आईना-ए हुस्न-ए अज़ल तेरे सिवा कोई नहीं …..
जाएं कहां हम बे-नवा आक़ा तेरे दर के सिवा
हम बे-कसों का आसरा या मुस्तफ़ा कोई नहीं ..
ऐ मज़हर-ए नूर-ए ख़ुदा तुमसा कहां है दूसरा
तुम हो इमाम-उल अंबिया तुमसा हुआ कोई नहीं .
या मुस्तफ़ा नूर-उल-हुदा, सानी तेरा कोई नहीं
शम्सुद्दुहा कोई नहीं बदरुद्दुजा कोई नहीं ……
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