छटी आज है मेरे ख़्वाजा पिया की
Chhati Aaj Hai Mere Khwaja Piya Ki Lyrics
Qawwal : Iqbal Afzal Sabri
मंगते खड़े हुए हैं ग़रीबुन नवाज़ के
पर्दे उठे हुए हैं नियाज़ और नाज़ के।
महबूब-ए-किर्दिगार हैं जो चाहें मांग लो
ये चिश्त की बहार है जो चाहें मांग लो।
छठी आज है मेरे ख्वाजा पिया की
छटी आज है मेरे ख़्वाजा पिया की
करम ही करम की घटा छा रही है ..
छठी का जश्न-ए-पाक है रसूले पाक आए हैं
मलायका भी साथ हैं सहाबियों को लाए हैं
हसन, हुसैन, फ़ातिमा भी अंजुमन सजाए हैं
ये ऐसा वैसा घर नहीं अली के घर में आए हैं
छटी आज है मेरे ख़्वाजा पिया की
करम ही करम की घटा छा रही है ..
चार दिशा में धूम मची है
ख़्वाजा पिया की आज छटी है
फूल हुसैनी बाग़ से आए
गौसुल आजम ने मंगवाए
ख़्वाजा उस्मां गूंद के लाए
ख़्वाज कुतुब हैं झंडा उठाए
बाबा फ़रीद भी वज्द में आए
निजामुद्दीन और साबिर गाएं
छटी आज है मेरे ख़्वाजा पिया की
करम ही करम की घटा छा रही है ..
छटी आज है मेरे ख़्वाजा पिया की
करम ही करम की घटा छा रही है
मुह़म्मद ﷺ का सदका लुटाते हैं ख़्वाजा
ज़माने की झोली भरी जा रही है ..
कोई तुमसा नज़र नहीं आता
वर्ना क्या क्या नज़र नहीं आता
झोलियां सबकी भरती जाती हैं
देने वाला नज़र नहीं आता
छटी आज है मेरे ख़्वाजा पिया की
करम ही करम की घटा छा रही है ..
यह ख्वाजा की गलियों का पुर-कैफ़ मंज़र
मदीने की खुश्बू मोअ़त्तर मोअ़त्तर
तेरे धौले ग़ुम्बद पे अजमेरी ख़्वाजा
हरम की तजल्ली नज़र आ रही है
ये शाने सख़ावत यह अंदाज तेरे
ये नूरानी मंज़र सवेरे सवेरे
झुका कर जबीं तेरी चौखट पे ख्वाजा
मुझे कमली वाले की याद आ रही है.
या गरीब नवाज,
दीदार के क़ाबिल तो कहां मेरी नज़र है
यह तेरी इनायत है कि रुख़ तेरा इधर है
क्या तुझ पे त़सद्दुक़ करूं क्या पास है मेरे
क़ुर्बान तेरे क़दमों पे मौहताज का सर है
उठ्ठेगा ना सर दर से तेरे ता ब क़यामत
यह सर सरे ज़ाहिद नहीं सौदाई का सर है
झुका कर जबीं तेरी चौखट पे ख्वाजा
मुझे कमली वाले की याद आ रही है …
है बुग़्ज़-ओ-हसद जिनके सीनों के अंदर
करें सजदा रेज़ी वोह ख्वाजा के दर पर
यहीं सर्द होंगे त़ा’अ़स्सुब के शोले
मदीने से ठंडी हवा आ रही है
फ़क़ीरों का मसलक तो वोह आई़ना है
बता देगा खुद कौन खोटा खरा है
अरे वाइज़े ख़ुश्क इस आईने में
तुझे अपनी सूरत नज़र आ रही है.
जो ख़्वाजा ने राज़े हक़ीक़त को खोला
तो क़दमों पर गिर कर के जयपाल बोला.
जो ख्वाजा ने राज़े हक़ीक़त को खोला
ये ख्वाजा ने राज़े हक़ीक़त को खोला
मुहम्मदﷺकी ग़ुलामी की सनद जिसको भी हासिल है
कोई मौजे अलम उस से कभी टकरा नहीं सकती
मुहम्मदﷺकी ग़ुलामी की सनद जिसको भी हासिल है
कोई मौजे अलम उस से कभी टकरा नहीं सकती
फ़रिश्ते तो फ़रिश्ते खुद खुदा-ए-पाक कहता है
मुह़म्मदﷺ के ग़ुलामों पर मुसीबत आ नहीं सकती
जो ख्वाजा ने राज़े हक़ीक़त को खोला
तो क़दमों पर गिर कर के जयपाल बोला.
खुदा के लिए अपनी नज़रों को रोको
मेरे दिल की दुनिया लुटी जा रही है
उम्मीदों का दामन मुरादों से भर दो
करम की नज़र सू-ए इक़बाल कर दो
तूफ़ैले मुह़म्मद ﷺ निगाहे करम हो
ये दुनिया सितम पर सितम ढा रही है
छटी आज है मेरे ख़्वाजा पिया की
करम ही करम की घटा छा रही है
मुह़म्मदﷺ का सदक़ा लुटाते हैं ख़्वाजा
ज़माने की झोली भरी जा रही है
मुह़म्मद ﷺ का सदक़ा लुटाते हैं ख़्वाजा
ज़माने की झोली भरी जा रही है
मुह़म्मद ﷺ का सदक़ा लुटाते हैं ख़्वाजा
ज़माने की झोली भरी जा रही है ….
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