इलाही सर पे रहे दस्तगीर की चादर

 

इलाही सर पे रहे दस्तगीर की चादर | मनकबत पीर-ए-पीरां, मीर-ए-मीरां अल-शौख़ हज़रत मुहीउद्दीन अब्दुल कादिर जीलानी रह.अ.


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इलाही सर पे रहे दस्तगीर की चादर

इलाही सर पे रहे दस्तगीर की चादर,
के पर्दा पोश है पीराने पीर की चादर।

 

नज़र में है शहे गरदूं सरीर की चादर,
ज़हे-नसीब मिली दस्तगीर की चादर।

 

शरीक-ए-उर्स ए मुबारक हुए हैं अहले सफ़ा,
ज़माना देखले ग़ौस ए कबीर की चादर।

 

जिसे हुसैन व हसन से नबी से निसबत है,
वोह आ के देखे जनाब ए अमीर की चादर।

 

मता-ए़ कौन-व-मकां तार तार में है निहां,
रिदा-ए़ फ़क़्र-व-विला है फ़क़ीर की चादर।

 

अदब से लोग छुएं फिर लगाएं ऑंखों से,
ये है रसूल ए ख़ुदा के वज़ीर की चादर।

 

निगाहो-दिल हैं हक़ीक़त के नूर से रौशन
कि है ये मुर्शिद ए रौशन ज़मीर की चादर।

 

हमें नसीब ज़ियारत है ऐ ख़ुशा क़िस्मत
खड़े हैं सर पे लिए अपने पीर की चादर।

 

ख़ुलूस ए दिल से वो लाया है नज़र करने को
क़ुबूल कीजिए अपने नसीर की चादर।

शायर: हज़रत पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
फ़ैज़-ए-निसबत

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