मन बोले मन शाह-ए-ज़मन क़व्वाली लिरिक्स
कव्वाल: साबरी ब्रदर्स (ग़ुलाम फरीद साबरी और मकबूल अहमद साबरी)
शायर: मक़बूल अह़मद साबरी (मुख्य पंक्ति)
साथ में- हज़रत अम्बर शाह वारसी, हज़रत बेदम शाह वारसी, जामी, ख़्वाजा अमीर खुसरो (र. अ.)
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आ…
मेरे ख़ुदा मुझे वो ताब-ए ना-तवाई दे
मैं चुप रहूं तो भी नग़मा मेरा सुनाई दे
मुझे कमाले सुख़न से नवाज़ ने वाले
समाअ़तों पे भी अब ज़ौके़ आशनाई दे
उदास हो माहौल, हर नफ़स हो घुटन
तो बू-ए-जिस्म-ए-ह़बीब-ए-ख़ुदा की बात करो
आ…
नकीरों बाद में, ये दूसरा सवाल रहे
ख़ुदारा पहले, मेरे मुस्तफा़ की बात करो
मन बोले मन शाह-ए-ज़मन
मन बोले मन शाह-ए-ज़मन
काली-काली कमली है नूर का बदन
बोले मन,
मन बोले मन शाह-ए-ज़मन
मन बोले मन शाह-ए-ज़मन
काली-काली कमली है नूर का बदन
कौनैन के बादशाह हैं, या़नी शाफी़-ए-उमम
वो हैं ह़बीब-ए ख़ुदा, सब पर है उनका करम
प्यारे नबी का मेरे नाम कितना प्यारा है
क़ुरआं ख़ुदा ने मेरे आका़ पे उतारा है
मक्का और मदीना मेरे आका़ का वतन
काली काली कमली है, नूर का बदन
बोले मन,
मन बोले मन शाह-ए-ज़मन
मन बोले मन शाह ए ज़मन
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
ज़बां पर जब भी नाम-ए-अहमद-ए-मुख़्तार आता है
ज़मीं का ज़र्रा ज़र्रा बज्द में हर बार आता है
ख़ुदा रखे मदीने को, मदीना ऐसी बस्ती है
मुझे साकी़ तो साकी़, मैकदे से प्यार आता है
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
किया है हिज्र के एहसास ने उदास मुझे
बुला ही लीजिए सरकार अपने पास मुझे
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
(समाअ़त फरमाएं: ये मेरा मन बोले)
मैं जाऊं मदीने, मेरी औका़त नहीं है
सरकार बुला लें तो बड़ी बात नहीं है
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
क्या बोले,
इसने भी मदीना देख लिया, इसने भी मदीना देख लिया
सरकार कभी तो में भी कहूं, मैंने भी मदीना देख लिया
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
नज़र में जलवा हो आठों पहर मदीने का
तवाफ़ करता रहूं उम्र भर मदीने का
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
क़ुरआ़न की हर आ़यत-ओ-सूरत देखी
इस्लाम की तफ़्सीर-ओ-ह़की़क़त देखी
ईमान पे जब ग़ौर किया अम्बर ने
सरकार ए दोआ़लाम की मोह़ब्बत देखी
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
ऐ मनमोहन तैबा धनी, कौसैन के राजेश्वरीं
चन्दर मुकट, सूरज बरन, निरकार ज्योति, मन हरी
मुखड़े को तेरे देख कर, प्रभु ने ये आशा करी
ऐ चेहरा-ए-ज़ेबा-ए-तो, रश्क़-ए-बुतान-ए-आ-ज़री
हर चंद वसफत मीं-कुनम दर हुस्न-ए-ज़ां बाला तरी
रूह उल अमीं से एक दिन कहने लगे शाह-ए-उमम
तुमने तो देखा है जहां, बतलाओ तो कैसे हैं हम?
खुश होके यूं कहने लगे, ऐ शह तेरे रुख़ की क़सम
आफा़क-हा गरदीदा-अम
मेह़र-ए-बुतां वर्जी़दा-अम्
बिस-यार ख़ूबां दीदा-अम्
लेकिन तो चीज़े-दीगरी!
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
हा़मिद है तेरा वस्फ़, मुहम्मदﷺ है तेरा नाम
रुतबा तेरा बलंद है, आला तेरा मका़म
फ़रमान-ए-रब है, रहमत-ए-कामिल कहूं तुझे
या़नी के कायनात का हासिल तुझे
कट जाए सारी उम्र तेरे ज़िक्र-ए-पाक में
मिल जाय मेरी ख़ाक, मदीने की ख़ाक में
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
(समाअ़त फरमाएं: मेरा मन बोले, लेकिन एक जगह कहता है, मेरा मन ना बोले। कहां पर मन ना बोल रहा है और कहां पर मन हां बोल रहा है, समात फरमाएं)
ये मेरा मन बोले, क्या मेरा मन बोले
ये मेरा मन बोले,
मेरा मन ना बोले, मेरा मन ना बोले ..
क्यूं,
कहा ये हीर ने, रांझे के जैसा हो नहीं सकता
मेरा मन ना बोले, मेरा मन ना बोले ..
कहा वाक़िम ने के अज़रा के जैसा हो नहीं सकता
मेरा मन ना बोले, मेरा मन ना बोले ..
कहा मजनू ने कोई मिस्ल-ए-लैला हो नहीं सकता
मेरा मन ना बोले, मेरा मन ना बोले ..
कहा फ़रहाद ने शीरीं के जैसा हो नहीं सकता
मेरा मन ना बोले, मेरा मन ना बोले ..
ज़ुलैख़ा ने कहा, यूसुफ़ से अच्छा हो नहीं सकता
मेरा मन ना बोले, मेरा मन ना बोले ..
तो,
कहा उन सबसे मैंने झूठ है क्या हो नहीं सकता
मोहम्मदﷺ दूसरा पैदा जहां में हो नहीं सकता
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
क्या,
तू फख्र-ए-कायनात है, रहमत तेरा वुजूद
अर्शे-बरीं से तुझपे मलायक पढ़ें दुरूद
अज़मत का हो बयान तो सद्र-इल-उला कहूं
बद्र-उद्-दुजा कहूं तुझे, शम्स-उद्-दुहा कहूं
कट जाए सारी उम्र तेरे ज़िक्र-ए-पाक में
मिल जाय मेरी ख़ाक मदीने की ख़ाक में
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
ग़म के मारों का सहारा, ये तेरा लुत्फ़-ओ-करम
रह गया हश्र में ईमान-ओ-अ़की़दत का भरम
दौलत-ए-कौनो-मकां है तेरे दीवाने का ग़म
तेरी तौकी़र से कौनैंन की तक़दीर बनी
तू नहीं है तो दो-आलम में कोई चीज़ नहीं
लज़्ज़त-ए-याद-ए-नबी, ज़िक्र-ए-नबी, हुब्ब-ए-नबी
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
इंसां हैं मगर, अज़मत-ए-इंसां भी वोही है
बंदे है मगर, मज़हर-ए-याज़दां भी वोही हैं
तौकी़र-ए-हरम, काबा-ए-ईमां भी वोही हैं
क़ुरआं भी वोही, हामिल-ए-क़ुरआं भी वोही हैं
उन जैसा यहां बाद-ए- ख़ुदा कोई नहीं है
सब कुछ हैं वोही, उनके सिवा कोई नहीं है
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
किसी दर पर न मुझको सर झुकाने की तमन्ना है
ये मेरा मन बोले,
कहीं मुझको न क़िस्मत आज़माने की तमन्ना है
ये मेरा मन बोले,
न मुझको दौलत-ओ-दुनियां ही पाने की तमन्ना है
ये मेरा मन बोले,
मुहम्मद मुस्तफा ﷺ के दर पे जाने की तमन्ना है
मदीने से पलट कर फिर न आने की तमन्ना है
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
अजब तमाशा हो मैदान-ए-हश्र में बेदम
के सब हों पेशे-ख़ुदा और में रूबरू-ए-रसूल
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
मैं साइल हूं, मेरी औका़त क्या है
तुम आक़ा हो, तुम्हारी बात क्या है
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
जो जाने वाले मदीने के हैं, सुनें वो ज़रा
शह-ए-मदीना से इतना ज़ुरुर कह देना
के एक ज़ख्मी-ए-तीर-ए-निगह नज़र जो पड़ा
तड़प तड़प के वो कहता था या रसूल-अल्लाह
हो के रूपोश ना दिल तोड़ तमन्नाई का
हौसला पस्त न कर अपने तू शैदायी का
तड़प तड़प के वो कहता था या रसूल-अल्लाह
बंदा परवर निगाह-ए-करम कीजिए
अब न कुछ इम्तिहान-ए-वफ़ा लीजिए
मुझको इक़रार है, में गुनाह गार हूं
मुझको कमली में अपनी छुपा लीजिए
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
वह ख़त्म-ए-रुसुल, मोहसिन-ए-कुल, आ़ली-नसब हैं
वोह शान-ए-करम, जान-ए-हरम, फख़्र-ए-अ़रब है
वोह लग़्ज़िश-ए-आदम की तलाफी़ का सबब हैं
और अज़मतें उनकी अभी दरयाफ़्त-तलब हैं
ये रम्ज़-ए-ख़ुदा है इसे रहने दो यहां तक
इस राज़ से वाक़िफ नहीं, जिबरील-ए-अमीं तक
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
इक हाथ से दुनिया को अंधेरे से निकाला
इक हाथ से गिरते हुए लोगों को संभाला
इक आन में बू जहल की दुनिया का हो वाला
इक ज़ात के जिस जात का एअ़जाज़ निराला
इक मोअ़-जिजा़-ए-संग-ए-कलामी ही बहुत है
अज़मत के लिए इस्म-ए-गिरामी ही बहुत है
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
जो बाईस-ए-तख़लीक़-ए-दो-आ़लम था वही नूर
जो ज़ीनत-ए पेशानी-ए आदम था वोही नूर
असरार-ओ-ह़िजाबात का मह़रम था वही नूर
जो रोज़-ए-ज़ल ही से मोअ़ज़्ज़म था वहीं नूर
फैला तो हुयीं वुस्अ़तें कौनेन की मह़दूद
और
सिमटा तो ज़माने में मोहम्मदﷺ हुए मौजूद
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
जिस नाम को अल्लाह ने तह़रीर किया है
जिस नाम को आफा़क की तक़दीर किया है
जिस नाम को क़ुरआन से ताबीर किया है
जिस नाम पे कौनैन को तामीर किया है
वो नाम-ए-मोहम्मदﷺ है मगर कैसे लिखा जाए!
किस तरह समन्दर किसी कूजे़ में समा जाए!
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
उम्मी हैं मगर इ़ल्म की तफ़सीर वोही हैं
मुख़्तार-ए-जहां, मख़्ज़न-ए-तौकी़र वोही हैं
ज़ुल्मत के लिए अज़्दह-ए-तनवीर वोही हैं
क़ुरआन के औराक़ पे तह़रीर वोही हैं
नाम उनका पुकारा गया जिस वक़्त अज़ां में
तौहीद की रौ दौड़ गई जिस्म-ओ-जहां में
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
दिल शेफ़्ता-ए-सैय्यद-ए-मक्की-मदनी है
क्या हुस्न-ए-मुक़द्दर मेरा अल्लाहो-गनी है
नक्काश-ए अज़ल ने कहा तस्वीर बनाकर
ऐसी कोई तस्वीर बनेगी, न बनी है
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
हुस्न की जान हो गया होगा
बल्के ईमान हो गया होगा
जब बना होगा वो क़द-ए मौज़ू
कामत-ए-तो क़यामत अज़फ्
हर निगाह-ए-तो महशरे
मह़शर-ए-ता जा़ कुन-फ़कां
चश्म-ए सियाह-ए मस्त-रा
ब-ग़म ज़- सहर-ए-निगाह जादू
ब-तुर्रा अ़फसूं ब-कद क़यामत
ब-खत ब-नफशा ब-ज़ुल्फ सुम्बुल
ब-चश्म नरगिस ब-रुख़ गुलिस्तां
परी पैकर निगार-ए-सर व-कद्दे-लाला-रुख़सार-ए
सरापा आफ़त-ए-दिल बूद शब जाए के मन बूदम्
जब बना होगा वो क़द-ए-मौजूं
साया कु़र्बान हो गया होगा
ख़ुदा खुद मीर-ए मजलिस
बूद अंदर ला-मकां खु़सरो
मुहम्मदﷺ शम्म-ए महफ़िल
बूंद शब जाए के मन बूदम्
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
क्या बोले,
तिश् ना-ए-दीद लहू दिल का पिया करता हूं
टीस होती है जिगर थाम लिया करता हूं
ज़ख्म-ए-दिल बैठ के हर रोज़ सिया करता हूं
नाम ले ले के मुहम्मदﷺ का जिया करता हूं
ये मेरा मन बोले, ये मेरा मन बोले ..
मन बोले मन शाह-ए-ज़मन
मन बोले मन शाह ए ज़मन
आ …
मन बोले मन शाह ए ज़मन
आ …
मन बोले मन शाह ए ज़मन
आ …
मन बोले मन शाह ए ज़मन
आ ….
मन बोले मन
आ ….
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Nusrat Fateh Ali Khan
Aziz Miyañ