आ गम ए शब्बीर आ सीने लगा कर चूम लूं | Aa Gham e Shabbir Aa Lyrics in Hindi | Manqabat Shahidan e Karbala | Nohay Lyrics|
Qawwali : Nusrat Fateh Ali Khan
Kalaam : Allama Saim Chishti and others
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Aa Gham e Shabbir Aa Lyrics in Hindi
वफ़ा का नूर दुनिया में कभी मधम नहीं होता
गम-ए-शब्बीर बढ़ता जा रहा है कम नहीं होता
वो दिल, दिल ही नहीं पत्थर के टुकड़े से भी बदतर है
के जिस दिल में नबी के लाडले का गम नहीं होता
आ गम-ए-शब्बीर आ
आ गम-ए-शब्बीर आ सीने लगा कर चूम लूं
कर्बला की खाक को आंसू पिला कर चूम लूं
आ ग़म-ए-शब्बीर आ..
आ ग़म-ए-शब्बीर आ..
ज़ैग़म अली का ज़ुल्म के जंगल में घिर गया
ज़हरा का चाँद शाम के बदल में घिर गया
आ गम-ए-शब्बीर आ..
आ गम-ए-शब्बीर आ..
था गुल-इज़ारे फ़ातिमा ख़ारों में घिर गया
तनहा अली का लाल हजारो में घिर गया
आ गम ए शब्बीर आ..
आ गम ए शब्बीर आ..
आ गम-ए-शब्बीर आ सीने लगा कर चूम लूं
कर्बला की खाक को आंसू पिला कर चूम लूं
आ मेरे असग़र सदा देती थी सुग़रा रात दिन
आ तेरी रहो को मैं पलकें बिछा कर चूम लूं
यूँ मुख़ातिब लाशा-ए-असग़र से थे इब्न-ए-अली
उठ मेरे बेटे तुझे दिल में बिठा कर चूम लूं
जब चले मैदान को क़ासिम तो सय्यद ने कहा
रुक ज़रा दुल्हा तुझे सेहरे सजा कर चूम लूं
रोक कर औन ओ मोहम्मद को ये ज़ैनब ने कहा
आख़री बार आओ सीने से लगा कर चूम लूं
तुम भी मेरे चाँद असगर पानी पी कर आ गए
आंख तो खोलो तुम्हे लोरी सुना कर चूम लूं
जिसने बचाया ख़ल्क़ को दोज़ख़ की आग से
अफ़सोस उसकी आल के ख़ेमे भी जल गए
असग़र की हिचकी आख़री गरचे थी बे सदा
फिर भी ज़मीन-ओ-असमां के दिल दहल गए
साईम कमाल-ए-ज़ब्त की कोशिश तो की मगर
पलकों का हल्क़ा तोड़़ कर आंसू निकल गए
कैसे क़लम रक़म करे आयात-ए-कर्बला
ये बोलती किताब के पारे की बात है
पलकों का हल्का तोड़़ कर आंसू निकल गए..
पलकों का हल्का तोड़़ कर आंसू निकल गए..
छाए थे बादल ज़ुल्म-ओ-तश्द्दुद के आल पर
पत्थर बरस रहे थे मुहम्मद ﷺ के लाल पर
दर्द-ओ-अलम अज़ल से था हिस्सा हुसैन का
ग़म से भरा हुआ है सब क़िस्सा हुसैन का
पलकों का हल्क़ा तोड़़ कर आंसू निकल गए..
पलकों का हल्का तोड़़ कर आंसू निकल गए..
तेग़ों से बंद बंद जुदा था जनाब का
शीराजे खुल गए थे ख़ुदा की किताब का
( मीर अनीस का ये शेर इस तरह है:
मिलता था फ़स़्ल का न ठिकाना न बाब का
शीराज़ह खुल गया था सितम की किताब का
ملتا تھا فصل کا نہ ٹھکانا نہ باب کا
شیرازہ کھل گیا تھا ستم کی کتاب کا)
पलकों का हल्क़ा तोड़़ कर आंसू निकल गए..
पलकों का हल्का तोड़़ कर आंसू निकल गए..
लाशे पड़े थे दस्त-ए-मुसीबत में इस तरह
सहन-ए-चमन में फूल बिखरते है जिस तरह
पलकों का हल्क़ा तोड़ कर आंसू निकल गए..
पलकों का हल्का तोड़ कर आंसू निकल गए..
तुम भी मेरे चाँद असग़र पानी पी कर आ गए
आंख तो खोलो तुम्हें लोरी सुना कर चूम लूं
जब चले मैदान को क़ासिम तो सय्यद ने कहा
रुक ज़रा दुल्हा तुझे सेहरे सजा कर चूम लूं
रात दिन जो आंख रोती है ग़म-ए-शब्बीर में
क्यूँ न मैं साईम उसे आंखे झुका कर चूम लूं
आ गमे शब्बीर आ
सीने लगा कर चूम लू
आ गमे शब्बीर आ
सीने लगा कर चूम लू
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Manqabat Shahidan e Karbala | Nohay Lyrics|
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