ख्वाजा से जो निस्बत है Lyrics

क्या ख़ौफ़ ज़माने का ख़्वाजा से जो निस्बत है

Khwaja Se Jo Nisbat Hai Qawwali Lyrics

Qawwal: Iqbal Afzal Sabri
Shayar: Danish Ali Ghani

 

English Lyrics

हम तो ख़्वाजा मुईनुद्दीन के दर के फ़क़ीर हैं
क्योंकि ख़्वाजा मुइनुद्दीन बड़े दस्तगीर हैं

हम अगर, चाहें तो अपनी झोली से शाहों को भीख दें
क्योंकि, हम ऐसे बादशाह के दर के फक़ीर हैंं।

 

कहते हैं ग़ुलाम उनके ये सारे ज़माने से

कहते हैं ग़ुलाम उनके ये सारे ज़माने से
पाया है खुदा हमने ख़्वाजा के घराने से..

 

एक कैफ़ सा तारी है सर दर पे झुकाने से
मिलता है सुकूं दिल को अजमेर में आने से..

 

साइल कोई इस दर से खाली नहीं जाता
हर शख़्स को मिलता है ख़्वाजा के खज़ाने से..

 

क्या ख़ौफ़ ज़माने का ख़्वाजा से जो निस्बत

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत है, निस्बत ..

 

दुनिया सलाम करती है हैरत की बात है
मैं कुछ नहीं हूं सब तेरी निस्बत़ की बात है.

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत है, निस्बत ..

 

मेरी हस्ती के लिए हासिल-ए- ईमान है यही
ताजे खुसरो है यही, तख़्ते सुलेमान है यही.

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत है, निस्बत ..

 

मुझे रास आ गया है तेरे दर का आब ओ दाना
मेरा क्या बिगाड़ लेगा जो ख़िलाफ है ज़माना

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत है, निस्बत ..

 

यहां छोटा है कोई और ना बड़ा है वाइज़
सर झुकाए हुआ हर शख़्स खड़ा है वाइज़.

फ़लसफ़े मर्दे क़लंदर को बताता क्यों है
विद’अती कह के मेरे दिल को दुखाता क्यों है.

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत है, निस्बत ..

 

मेरा क़िबला यही दर है
मेरा काबा यही दर है
बंदा-ए-ख़्वाजा हूं मुझ पर
मुझ पे ख़्वाजा की नज़र है

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत है, निस्बत ..

 

हम भी तो कभी इंशा अल्लाह
दरबारे मदीना देखेंगे,
अल्हम्द पढ़ेगें दीवाने
सरकारे मदीना देखेंगे.

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत है, निस्बत ..

 

चश्मे करम तो वोह मेरी जानिब उठाएंगे

चश्मे करम वोह मुझ पे यक़ीननन उठाएंगे
अजमेर आ गए हैं तो मदीने भी जाएंगे.

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..

 

निस्बत़ भी कैसी चीज़ है दामान-ए-यार से
बेफ़िक्र जी रहा हूं हर एक ऐतबार से

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..

 

मुफ़लिसान-ए मा मुदा आमदा दर कू-ए-तो
शैइनिल्ला अ़ज़ जमाले रु-ए-तो

दस्त ब कुशा जानिब-ए-ज़मबीग़े मा
आ़फ़रीं बर दस्त, बर बाज़ू-ए-तो

 

(एक गुनाहगार कहता है)

ऐ मेरे मौला, ऐ मेरे अल्लाह ..

मानता हूं के गुनहगार हूं, सियाह कार हूं, तेरा ख़ताबार हूं

लेकिन, ऐ मेरे मौला, ये मानता हूं,

 

ना मैं तक़दीर लाया हूं, ना मैं त़दबीर लाया हूं
गले में त़ौक़ है और पांव में ज़ंजीर लाया हूं
बड़ा बद-बख़्त हूं, फूटी हुई तक़दीर लाया हूं
करम से अपने अब तो मेरे इसियां बख्श दे मौला
मैं अपने दिल में तो ख़्वाजा पिया की त़स्वीर लाया हूं.

ख़्वाजा से तो निस्बत़ है, निस्बत़ ..
ख़्वाजा से तो निस्बत है, निस्बत़ ..

 

क्या ख़ौफ़ ज़माने का ख़्वाजा से जो निस्बत
मैं मिट नहीं सकता हूँ दुनिया के मिटाने से

(सरगम)
मैं मिट नहीं सकता हूँ दुनिया के मिटाने से
(तराना)
मैं मिट नहीं सकता हूँ दुनिया के मिटाने से ..

 

यह फै़ज़ है ख़्वाजा का ख़्वाजा के गुलामों पर
कम होती नहीं दौलत दिन-रात लुटाने से ..

 

कुछ मज़हब-ओ-मिल्लत की त़फ़रीक़ नहीं दानिश
हर एक को मिलता है ख़्वाजा के खज़ाने से..

हर एक को मिलता है ख़्वाजा के खज़ाने से..
हर एक को मिलता है ख़्वाजा के खज़ाने से…

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