ये मेरी इबादत नहीं है तो क्या है

Ye Meri Ibaadat Nahi Hai To Kya Hai Lyrics in Hindi

क़व्वाल: ग़ुलाम फ़रीद साबरी और मक़बूल अहमद साबरी

हिन्दी। | English


उनकी निगाहे नाज़ जब बंदा नवाज़ हो गई

अपनी नवाए शौक़ में ज़म ज़मा साज़ हो गई

क़ल्ब में तड़प उठी, आंसुओं से वुज़ू हुआ

आप जो याद आ गए, अपनी नमाज़ हो गई!

 

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना

ये मेरी इबादत नहीं है तो क्या है..

 

हो उम्र की दराज़ी अगर इख़्तियार में

सदियां गुज़ार दूं मैं तेरे इंतिज़ार में

 

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना

ये मेरी इबादत नहीं है तो क्या है

ये मेरी इबादत नहीं है तो क्या है..

 

ऐ जाने मन जानाने मन

बर मन निगर सुलताने मन

यक शब बया मेहमान मन

अज़ मन चरा रंजीदा ई।

 

आरज़ू दारम के मेहमान अज़ कुनम

जानो दिल ऐ दोस्त क़ुर्बान अज़ कुनम।

कोई काहू मा मगन, कोई काहू मा मगन

हम बाऊ मा मगन जा से लागी है लगन।

 

ये मेरी इबादत नहीं है तो क्या है…

 

आरज़ू दारम के मेहमान अज़ कुनम

जानो दिल ऐ दोस्त क़ुर्बान अज़ कुनम

कोई काहू मा मगन कोई काहू मा मगन

हम बाऊ मा मगन जा से लागी है लगन।

 

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना…

 

मुख महबूब दा ख़ाना काबा

जित्थे आशिक़ सजदा करदे हू,

दो ज़ुल्फ़ां विच नैन मुसल्ले

जित्थे चार मज़हब आरण दे हू,

खोटियां में ज़म ज़म दा पानी

जिसे कुल्ल प्यासे परदे हूं,

बाहू शाह की मक्के जाना

जद हज होवे विच घर दे हू, हू,,

 

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना…

 

तुझी को देखना, तेरी ही सुनना, तुझ में गुम रहना

 

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना…

 

मेरी जुस्तजू, मेरी आरज़ू, मेरा मुद्दआ़ तेरी ज़ात है

तेरा ज़िक्र वजहे सुकून ए दिल, तेरा इश्क़ मेरी हयात है।

 

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना…

 

हो के रूपोश न दिल तोड़ तमन्नाई का

हौसला पस्त न कर अपने तू शैदाई का

हम भी बांधेंगे तेरे इश्क़ में एहराम ए जुनूं

हम भी देखेंगे तमाशा तेरी लैलाई का।

 

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना…

 

नज़रों से निहां क्यूं रहते हो जब जान लिया पहचान लिया

मनशा ए हिजाब आख़िर क्या है हमने तो ख़ुदा भी मान लिया।

 

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना…

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना

ये मेरी इबादत नहीं है तो क्या है

जिधर देखता हूं तुम्ही जलवागर हो

ये मेअ़राजे उल्फत नहीं है तो क्या है..

 

कहां हम, कहां वो, कहां बेहिजाबी

कहां हम, कहां वो, कहां बेहिजाबी…

 

मुनासिब हो गई सूरत भी तवानाई भी

सल्ब कर लीजिए अब क़ुव्वत ए गोयायी भी

तेरे जलवों को जो देखा तो ये एहसास हुआ

किस क़दर कीमती शै है मेरी बीनायी भी।

 

कहां हम, कहां वो, कहां बेहिजाबी…

 

दीदार के क़ाबिल तो कहां मेरी नज़र है

ये तेरी इनायत है जो रुख़ तेरा इधर है

 

कहां हम, कहां वो, कहां बेहिजाबी…

कहां राजदारी ए हुस्नो मोहब्बत

कहां अपनी नज़रें, कहां उनके जलवे

ये उनकी इनायत नहीं है तो क्या है…

 

बहुत अपने अरमान ए दिल निकले बाक़र

मगर फिर भी है इक हुजूम ए तमन्ना

उन्हें बातिनी है वही बेक़रारी

जुनून ए मोहब्बत नहीं है तो क्या है…

 

तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात रहना

हो … ओ… हो.. ओ ओ..

हा.. आ.. आ.. आ आ..

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