मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई Lyrics By Aslam Akram Warsi
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बोझ ये हस्ती का वो हस-हस के उठा लेते हैं
अपने मां बाप की जो लोग दुआ लेते हैं
मुरझाई हुई मेरे दिल की कली खिली है
इनकी दुआ से मुझको सारी खुशी मिली है।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई है ×4
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
मां बाप की करने को जो ख़िदमत मिली मुझे
दोनों जहां में दोस्तों इज़्ज़त मिली मुझे।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
मां-बाप पर जो बारिशें कीं मैंने फूल की
मुझ पर बरसने लग गई रह़मत रसूल की।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
सुनते हैं के मां-बाप का जिसने अदब किया
इंसानियत की पल में वो पहचान बन गया,
मां-बाप के चेहरे को मैं यूं देखने लगा
और देखते ही देखते इन्सान बन गया।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
सर को उठा के जीने लगा हूं जहां में
ये मेरे मां और बाप की मुझ पर अ़ताएं हैं,
इज़्ज़त जहां में होती है जो मुझ ग़रीब की
इनकी मोहब्बतें हैं ये इनकी दुआएं हैं।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
इस दर्जा पुर-असर है ये मां-बाप की दुआ
रह़मत के दर बुलाने लगे देख कर मुझे,
इक रोज़ जब मदीना तसव्वुर में मैं गया
सरकार मुस्कुराने लगे देख कर मुझे।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
सोए हुए नसीब को मेरे जगा दिया
इनकी दुआ ने मुझको मदीना दिखा दिया।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
कुछ लोगों ने जहान में दौलत तलाश ली
और मैंने मां के क़दमों में जन्नत तलाश ली।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
ख़िदमत करोगे इनकी तो जन्नत में जाओगे
मां-बाप को अपने से नहीं करना तुम जुदा,
इस सारी कायनात के आक़ा ने कह दिया
मां-बाप तुमसे राज़ी हैं तो राज़ी है ख़ुदा।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
उंगली पकड़ के बाप ने चलना सिखा दिया
और मां ने अपनी गोद में झूला है झुलाया,
कोई भी मुसीबत मेरे नज़दीक़ ना आई
इन की दुआओं ने मुझे हर वक़्त बचाया।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
क़दमों में मां के देखिए जन्नत है दोस्तों
बहुत अज़ीम मां की फ़ज़ीलत है दोस्तों,
हर वक़्त साथ है मेरे मां-बाप की दुआ
इस वास्ते घर में मेरे रह़मत है दोस्तों।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
बुलन्दियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ
उठाया गोद में मां ने तब आसमान छुआ।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
मुक्तसर होते हुए भी ज़िन्दगी बढ़ जाएगी
मां की आंखें चूम लीजे रौशनी बढ़ जाएगी।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
होती है रोज़ घर मेरे क़ुरआं की तिलावत
ईमान की खुशबू से महकता मेरा घर है,
होते हैं रोज़ हादसे ज़िन्दा हूं मैं फिर भी
मां-बाप की दुआओं का ये मुझ पे असर है।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
मुफ़लिस था मैं जो बोसा-ए-अस्दव ना ले सका
हज हो नहीं सकता था जो मुझसे ग़ुलाम से,
फिर मैंने दिल से चूमे जो मां-बाप के क़दम
काबा भी शाद होने लगा मेरे नाम से।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
ये एहतराम बाप का करने का फल मिला
इतना उठा कि देखता है अब फ़लक मुझे,
मां की दुआएं हैं ये जो पेश-ए-ख़ुदा-ए-पाक
इज़्ज़त से लेके जाने लगे हैं मलक मुझे।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
इस तरहं मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
ऐसा नहीं के अपना बुरा वक़्त कट गया
खुद्दारियां जो बढ़ गईं दामन सिमट गया,
बस्ती के इक बुज़ुर्ग की मय्यित को देखकर
मैं अपने बूढ़े बाप से जाकर लिपट गया।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है
कोई भी ज़हर को मीठा नहीं बताता है,
कल अपने आपको देखा था मां की आंखों में
ये आइना हमें बूढ़ा नहीं बताता है।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
बस एक मां की मोहब्बत दिखाई देती है
ज़मीं पे एक ही औरत दिखाई देती है,
ऐ बूढ़ी मां तेरे चेहरे की झुर्रियों की क़सम
हर इक लकीर में जन्नत दिखाई देती है।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
बुलंदी देर तक जिस शख़्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है,
ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूं मेरी मां सजदे में रहती है।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
अहद जिसमें था वो ज़ंजीर बदल दी मेरी
तूने हाथों की सब लक्कीर बदल दीं मेरी,
कोशिशें बहुत कीं लेकिन ना मिला कुछ भी मुझे
मां तेरी दुआ ने तक़दीर बदल दी मेरी।
मां-बाप की गुलामी मेरे काम आ गई ×4
जब भी रोने की मेरे, मां को ख़बर मिलती है
चीख़ कर मां मेरी घर से बाहर निकलती है,
रास्ता रोक सकेगा ना बहादुर मेरा
साथ मेरे तो मेरी मां की दुआ चलती है।
मां-बाप की गुलामी मेरे काम आ गई ×4
दिल मां-बाप का दुखाया करे जन्नत की आरज़ू
उस शख़्स की तो दोस्तों दोज़क में जगह है,
मस्ताना क्यों जन्नत की तमन्ना करे रब से
जन्नत से ज़्यादा मां तेरे क़दमों में मज़ा है।
मां-बाप की गुलामी मेरे काम आ गई ×4
चौंक जाता हूं मैं बस रात को सोते-सोते
जब भी मां की मुझे फ़ुर्क़त दिखाई देती है,
मां के क़दमों में ही दम निकले मेरा मस्ताना
मां तेरे क़दमों में जन्नत दिखाई देती है।
मां-बाप की गुलामी मेरे काम आ गई ×4
मां कभी ज़ख़्म जुदाई का सह नहीं सकती
वो अपने बच्चों को दिल से भुला नहीं सकती,
मैं घर से निकला हूं, लेकर के साथ मां की दुआ
कोई बला मेरे नज़दीक आ नहीं सकती।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
मौत के आग़ोश में जब थक के सो जाती है मां
तब कहीं जाकर रज़ा थोड़ा सुकून पाती है मां।
मांगती है कुछ नहीं अपने लिए अल्लाह से
अपने बच्चों के लिए दामन को फैलाती है मां।
गोद के पालों को अपने सरहदों पर भेज कर
ज़िन्दगी अपनी वतन के नाम कर जाती है मां।
इस क़दर मसरूफ़ हो जाते हैं साहब काम में
फोन पर भी बात करने को तरस जाती है मां।
कुछ ना दे बस इतना आ कर पूछ ले क्या हाल है
एक दिन आख़िर इसी हसरत में मर जाती है मां।
मरते दम बच्चे ना आए घर अगर परदेस से
अपनी दोनों पुतलियां चौख़ट पे रख जाती है मां।
बाद मर जाने कि फिर बेटे की ख़िदमत के लिए
भेस बेटी का बदल के घर में आ जाती है मां।
जब जवां बेटी हो घर में और कोई रिश्ता ना हो
रोज़ इक एहसास की सूली पे चढ़ जाती है मां।
शादियां कर-कर के बच्चे जा बसे परदेस में
दिल खतों से और तस्वीरों से बहलाती है मां।
हमने तो ये भी नहीं सोचा अलग होने के बाद
जब दिया कुछ भी नहीं हमने तो क्या खाती है मां।
मामता क्या चीज़ है और प्यार कहते हैं किसे
जाके उन बच्चों से से पूछों जिनकी मर जाती है मां।
भूखा सोने ही नहीं देती है बच्चों को कभी
जाने किस-किस से कहां से मांग कर लाती है मां।
इक तरफ़ शौहर की ग़ुर्बत इक तरफ़ बच्चों की ज़िद
लेके इक तूफ़ान मेले से गुज़र जाती है मां।
बर्फ़ जैसी सर्द रातों में कभी ये भी हुआ
बच्चा है सीने पे खुद गीले में सो जाती है मां।
शुक्रिया हो ही नहीं सकता कभी मां का अदा
मरते-मरते भी दुआ जीने की दे जाती है मां।।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
दिन ढले जब करके मज़दूरी रज़ा आता है बाप
देखकर हंसते हुए बच्चों को सुख पाता है बाप।
ऐसा लगता है के जैसे चल रही है कायनात
घुटनियों चलते हुए बच्चों को जब पाता है बाप।
जाने कितने बाप करते हैं सफ़र बेटे के साथ
लेके पहली बार जब स्कूल को जाता है बाप।
कोई उस बच्चे से पूछे क्या है शादी का मज़ा
ब्याह की तारीख़ रखकर जिसका मर जाता है बाप।
क्या बता सकता है उस बेटी को कोई मंज़िलत
जिसके इस्तक़बाल को मसनद से उठ जाता है बाप।
खुश रहें बच्चे मेरे हर हाल में ये सोचकर
वक़्त की मण्डी में सस्ते भाव बिक जाता है बाप।।
मां-बाप की ग़ुलामी मेरे काम आ गई ×4
Song: Maa-Bap Ki Gulami Mere Kam Aa Gayi Hai
Singer: Aalam Akram Warsi & Party
Music: Javed Kamal Azad
Writer: Munawwar Rana, Majid Devbandi,
Tanveer Ghazi Amravati, Salman Sanbhali,
Chand Warsi, Ilyas Mastana
Mere Peer Ki Ghulami Mere Kaam Aa Gayi Lyrics
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