यादे नबी का गुलशन महका महका लगता है

यादे नबी का गुलशन महका महका लगता है लिरिक्स | नात ए रसूल ए मक़बूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम लिरिक्स


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यादे नबी का गुलशन महका महका लगता है
महफिल में मौजूद हैं आक़ा ऐसा लगता है।

 

नाम ए मोहम्मद ﷺ कितना मीठा मीठा लगता है
प्यारे नबी का जिक्र भी हमको प्यारा लगता है।

 

लब पे नग़मे सल्ले अ़ला के हाथों में कशकोल
देखो तो सरकार का मंगता कैसा लगता है!

 

ऑंखों में माज़ाग़ का कजला, सर ताहा का ताज,
कैसे कहूं कमली वाला हम जैसा लगता है।

 

ग़ौस, क़ुतब, अब्दाल, कलंदर सब उसके मोहताज
मेरा दाता हर दाता का दाता लगता है।

 

औ-अदना की सेज सजी है अर्श ए बरीं पर आज
हक़ का दुलारा बांध के सेहरा दूल्हा लगता है।

 

आओ सुनाएं अपने नबी को अपने मन की बात
उनके अलावा कौन नेयाज़ी अपना लगता है।

नुसरत फतेह अली खान कव्वाली


यादे नबी का गुलशन महका महका लगता है

महफिल में मौजूद हैं आक़ा ऐसा लगता है।

 

नाम ए मोहम्मद ﷺ कितना मीठा मीठा लगता है
प्यारे नबी का जिक्र भी हमको प्यारा लगता है।

 

लब पे नग़मे सल्ले अ़ला के हाथों में कशकोल
देखो तो सरकार का मंगता कैसा लगता है!

 

ऑंखों में माज़ाग़ का कजला, सर ताहा का ताज,
कैसे कहूं वो कमली वाला हम सा लगता है।

 

ग़ौस, क़ुतब, अब्दाल, कलंदर सब उसके मोहताज
मेरा दाता हर दाता का दाता लगता है।

 

औ-अदना की सेज सजी है अर्श ए बरीं पर आज
हक़ का दुलारा बांध के सेहरा दूल्हा लगता है।

आओ सुनाएं अपने नबी को अपने मन की बात
उनके अलावा कौन नेयाज़ी अपना लगता है।

नुसरत फतेह अली खान कव्वाली

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