रो रो के अली क्यूं लेते हैं | Ro Ro Ke Ali Kyun Lete Hain Zainab Ka Naam Noha Lyrics

रो रो के अली क्यूं लेते हैं | Ro Ro Ke Ali Kyun Lete Hain Zainab Ka Naam Noha Lyrics 

 

हाय अली.. हाय अली हाय अली

हाय अली.. हाय अली हाय अली

 

हाय अली, हाय अली, हाय अली

हाय अली, हाय अली, हाय अली

मौला अली…

 

 

रो रो के अली क्यूं अली लेते हैं ज़ैनब का नाम मुसल्ले पर

क्या याद अली को आया है बाजा़रे शाम मुसल्ले पर

रो रो के अली क्यूं अली लेते हैं ज़ैनब का नाम मुसल्ले पर

 

खूं जारी था ज़ख्मी सर से रोते थे नमाज़ी सफ़ में खड़े

किस तरहं हसन ने रो-रोकर की फज्र तमाम मुसल्ले पर

रो रो के अली क्यूं अली लेते हैं ज़ैनब का नाम मुसल्ले पर

 

क्या मां की तरहं लेने तुमको मस्जिद में चली आए ज़ैनब

बाबा को जाकर दो फ़िज़्ज़ा मेरा पैग़ाम मुसल्ले पर

रो रो के अली क्यूं अली लेते हैं ज़ैनब का नाम मुसल्ले पर

 

ज़ख़्मी पहलू जब याद आया ज़ख़्मी पेशानी भूल गया ज़हरा की मुसीबत पर रोया मज़लूम इमाम मुसल्ले पर

रो रो के अली क्यूं अली लेते हैं ज़ैनब का नाम मुसल्ले पर

 

ये पहली फज्र है ज़ैनब की सजदे में सुकूं मिलता ही नहीं

दिल डूबता है आता ही नहीं इक पल आराम मुसल्ले पर

रो रो के अली क्यूं अली लेते हैं ज़ैनब का नाम मुसल्ले पर

 

दीवार-ए-काबा बैठ गई अल्हम्दु लहू में डूब गई

उम्मत से मिला है मौला को कैसा ईनआ़म मुसल्ले पर

रो रो के अली क्यूं अली लेते हैं ज़ैनब का नाम मुसल्ले पर

 

उस ग़ैरत-दार की ग़ुरबत पर रोती है अली की ग़ुरबत भी

चालीस बरस जो कहता रहा अश्शाम अश्शाम मुसल्ले पर

रो रो के अली क्यूं अली लेते हैं ज़ैनब का नाम मुसल्ले पर

 

शब्बीर की जानिब से “अकबर” क़ातिल को पिलाया था शर्बत

जब याद अली को आया था इक तिश्नाकाम मुसल्ले पर

रो रो के अली क्यूं अली लेते हैं ज़ैनब का नाम मुसल्ले पर

 

Recited by: Mir Hasan Mir

Poet: Hasnain Akbar

 

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