निगाहे मस्त से ये क्या पिला दिया तूने | Nigah e Mast Se Hindi

निगाहे मस्त से ये क्या पिला दिया तूने | Nigah e Mast Se Ye Kya Pila Diya Tune Lyrics in Hindi | Sufi Poetry | Arifana Kalam

Kalaam: Sufi Alimullah Shah
Qawwali : Inamullah Qawwal


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निगाह‌ ए मस्त से यह क्या पिला दिया तूने लिरिक्स

साग़र का तलब गार बना जाता है
जो भी पीता है वह मै-ख़्वार बना जाता है

 

निगाह‌ ए मस्त से यह क्या पिला दिया तूने..

निगाहे मस्त से ये क्या पिला दिया तूने
रगों में शोर-ए-अ़नल हक़ उठा दिया तूने

 

अ़नल हक़ की सदा उठती रहेगी हर ज़माने में
उठाके सर, सर-ए-मक़तल से दीवाने नहीं जाते!

रगों में शोर ए अ़नल हक़ उठा दिया तूने..
रगों में शोर ए अ़नल हक़ उठा दिया तूने..

 

निगाह‌ ए मस्त से यह क्या पिला दिया तूने
रगों में शोर-ए-अ़नल हक़ उठा दिया तूने

 

तड़पना मेरी फितरत तो नहीं है
मैं तड़पा हूं कि तड़पाया गया हूं

रगों में शोर-ए-अ़नल हक़ उठा दिया तूने
रगों में शोर-ए-अ़नल हक़ उठा दिया तूने

 

मैं खुश हूं तेरे सिवा कोई आरज़ू न रही
वह ग़म दिया के हर इक ग़म भुला दिया तूने

मैं खुश हूं तेरे सिवा कोई आरज़ू न रही..
मैं खुश हूं तेरे सिवा कोई आरज़ू न रही..

 

दर्द होता नहीं सभी के लिए
है यह दौलत किसी किसी के लिए

मैं खुश हूं तेरे सिवा कोई आरज़ू न रही
वह ग़म दिया के हर इक ग़म भुला दिया तूने

 

यक़ीन आए किसे मैं तो ख़ुद भी हैरां हूं
लबों से कह न सकूं जो दिखा दिया तूने

 

है सोज़-ए-जां से ही तकमील-ए-आदमी मुमकिन
वह दर्द बख्शा के इन्सां बना दिया तूने

 

शबे-हयात में दो गाम चलना मुश्किल था
क़दम क़दम पे मुझे आसरा दिया तूने

 

यह तेरी मस्त निगाही का फ़ैज़ है सारा
नज़र मिला के ख़ुदा से मिला दिया तूने

 

कभी-कभी तो यह महसूस होने लगता है
हिजाब ए जिस्मी ही जैसे उठा दिया तूने

 

न जाने कौन यहां आग लेने आएगा..
न जाने कौन यहां आग लेने आएगा..

 

के दयार-ए-आशिक़ी में रह-ए-वापसी नहीं है

न जाने कौन यहां आग लेने आएगा
मैं जब भी बुझने लगा हूं जला दिया तूने

 

तेरे ही हुस्न की तस्वीर थी हर इक सूरत
तेरे ही हुस्न की तस्वीर..
तेरे ही हुस्न की तस्वीर..

 

न नमाज़ आती हैै मुझको न ही वज़ू आता है
सजदा कर लेता हूं जब सामने तू आता है

तेरे ही हुस्न की तस्वीर..
तेरे ही हुस्न की तस्वीर..

 

बन दिलबर शक्ल ए जहान आया
हर सूरत ऐन अयान आया

तेरे ही हुस्न की तस्वीर..
तेरे ही हुस्न की तस्वीर..

 

ख़तम तिफ़रका-ए-दैर-ओ-हरम को करता हूं
बंदा अल्लाह का हूं ज़िक्र-ए-सनम करता हूं

तेरे ही हुस्न की तस्वीर..
तेरे ही हुस्न की तस्वीर..

 

तेरे ही हुस्न की तस्वीर थी हर इक सूरत
बुतों के पर्दे में काफिर बना दिया तूने

 

मैं सोज़-ए-इश्क़ से शादाब हूं अ़लीम-उल्लाह
हज़ार शुक्र है जीना सिखा दिया तूने

 

निगाहे मस्त से यह क्या पिला दिया तूने
निगाह‌ ए मस्त से यह क्या पिला दिया तूने


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