कभी मायूस मत होना अंधेरा कितना गहरा
Kabhi Mayoos Mat Hona Andhera Kitna Gahra Ho
Artist: Hafiz Junaid ur Rahman
Audio: Atiq Ur Rahman
अल्लाह …..
मौला ……
कभी मायूस मत होना उम्मीदों के समंदर में
तलातुम आते रहते हैं सफीने डूबते भी है
सफर लेकिन नहीं रुकता मुसाफिर टूट जाते हैं
मगर मल्लाह नहीं थकता सफर ते हो के रहता है
कभी माय़ूस मत होना अंधेरा कितना गहरा हो
कभी माय़ूस मत होना खुदा बाक़िफ भी है नाज़िर भी
खुदा ज़ाहिर है बातिन भी वही है हाल से वाक़िफ
वही सीनों के अंदर भी मुसीबत के अंधेरों में
तुम्हें गिरने नहीं देगा कभी मायूस मत होना
कभी माय़ूस मत होना अंधेरा कितना गहरा हो
अल्लाह …..
मौला ……
कभी तुम मांग कर देखो तुम्हारी आंख के आंसू
यूं ही ढलने नहीं देगा तुम्हारी आस की गागर
कभी गिरने नहीं देगा हवा कितनी मुख़ालिफ़ हो
तुम्हें मुड़ने नहीं देगा कभी मायूस मत होना
कभी माय़ूस मत होना अंधेरा कितना गहरा हो
वहां इंसाफ की चक्की ज़रा धीरे से चलती है
मगर चक्की के पाटों में बहुत बारीक पिसता है
तुम्हारी एक का बदला वहां 70 से ज्यादा है
नियत तुलती है पलड़ों में कभी मायूस मत होना
कभी माय़ूस मत होना अंधेरा कितना गहरा हो
अल्लाह …..
मौला …..
वहां जो हाथ उठते हैं कभी खाली नहीं आते
ज़रा सी देर लगती है मगर वोह देके रहता है
कभी माय़ूस मत होना अंधेरा कितना गहरा हो
दरी दा दामनों को वोह रफू करता है रहमत से
अगर कशकोल टूटा हो तो वोह भरता है नेएमत से
कभी अय्यूब की खातिर ज़मी चश्मा उगलती है
कभी यूनुस के होठों पर अगर फरियाद उठती है
कभी माय़ूस ना होना अंधेरा कितना गहरा हो
अल्लाह …..
मौला ……
तुम्हारे दिल की टीसों को यूं ही दुखने नहीं देगा
तमन्ना का दिया यारों कभी बुझने नहीं देगा
कभी वोह आस का दरिया कहीं रुकने नहीं देगा
कहीं थमने नहीं देगा कभी मायूस मत होना
कभी माय़ूस मत होना अंधेरा कितना गहरा हो
जब उसके रहम का सागर छलक के जोश खाता है
क़हर ढाता हुआ सूरज यका-यक कांप जाता है
हवा उठती है लहरा कर घटा सजदे में गिरती है
जहां धरती तरसती है वही रहमत बरसती है
कभी माय़ूस मत होना अंधेरा कितना गहरा हो
अल्लाह …..
मौला ……
तरसते रेग़ ज़ारों पर अबर वह के ही रहता है
नज़र वोह उठके रहती है करम वोह हो के रहता है
उम्मीदों का चमकता दिन अमर होके ही रहता है
अमर होके ही रहता है कभी मायूस मत होना
कभी माय़ूस मत होना अंधेरा कितना गहरा हो
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