अदब से अर्ज़ है बा चश्म-ए-तर, ग़रीब नवाज़ लिरिक्स इन हिंदी | मनक़बत ख़्वाजा ए ख़्वाजगां, फ़ख़्र ए कौन-व-मकां, सय्यदी मुर्शदी, शैख़ मुईनुद्दीन चिश्ती संजरी अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह।
कलाम: हज़रत पीर नसीरुद्दीन’नसीर’गिलानी रह. अ।
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अदब से अर्ज़ है बा चश्म-ए-तर, ग़रीब नवाज़
अदब से अर्ज़ है बा चश्म-ए-तर, ग़रीब नवाज़,
इधर भी एक उचटती नज़र, ग़रीब नवाज़।
मेरे जुनूं में हो तुम मुस’ततर ग़रीब नवाज़,
मेरा जुनूं है तुम्हारी ख़बर, ग़रीब नवाज़।
बहुत दिनों से है ज़ौक़-ए-सफ़र ग़रीब नवाज़,
निगाह-ए-शौक़ में है रह गुज़र ग़रीब नवाज़।
जिन्हें हवस है उन्हें सीम-व-ज़र ग़रीब नवाज़,
इधर तो सिर्फ़ करम की नज़र ग़रीब नवाज़।
नवाज़िए मुझे जल्दी नवाज़िए ख़्वाजा,
न देखिए मिरे ऐ़ब-व-हुनर ग़रीब नवाज़।
मोइनुद्दीन, रिसालत भी है, विलायत भी,
के मुब्तदा हैं मोहम्मद ﷺ, ख़बर, ग़रीब नवाज़।
तुम्हारे नाम पे मिटते रहेंगे दीवाने,
न मिट सकेगा तुम्हारा असर, ग़रीब नवाज़।
जिन्हें नसीब गदाई तुम्हारे दर की है
ग़नी रहेंगे वही उम्र भर गरीब नवाज।
वोह कम नज़र हैं न देखें तुम्हें जो उल्फ़त से,
वोह बे बसर हैं, उन्हें क्या ख़बर, गरीब नवाज।
ब-फ़ैज़ ए हज़रत ए पीराने पीर व आल-ए-अ़बा,
तुम्हारे साए में है, घर का घर, ग़रीब नवाज़।
ज़हे नसीब, दो गुना उरूज हासिल है,
इधर मेरे शहे जीलां, उधर ग़रीब नवाज़।
ख़बर नहीं के ग़रीबों का हश्र क्या होता
ख़ुदा तुम्हें न बनाता अगर गरीब नवाज।
तुम्हारे दर से क़यामत ही अब उठाएगी,
यहां से जाएं तो जाएं किधर गरीब नवाज।
मेरे मज़ाक़-ए-तलब की भी लाज रह जाए,
ये मुन’हसिर है करम आप पर, गरीब नवाज।
तुम्हारे लुत्फ़-व-करम से पता चला मुझको,
नहीं है आह मेरी बेअसर गरीब नवाज।
सर-ए-नियाज़ को तुमने बुलंदियां बख़्शीं,
कमाले फ़ख़्र से ऊंचा है सर, गरीब नवाज।
नसीर ख़्वाजा-ए-अजमेर इसलिए हैं करीम,
के है अज़ल से मोहम्मद ﷺ का घर “ग़रीब नवाज़”
फ़ैज़ ए निस्बत