जहां में जुज़ तेरे जल्वों के चार सू क्या है
Artist: Mufti Abdulla Bin Abbas
Lyrics: Mufti Taqi Usmani
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जहाँ में जुज़ तेरे जल्वों के चार सू क्या है
ये बज़्म ए शम्स ओ क़मर क्या है, रंग ओ बू क्या है
नज़र नज़र में फ़रोज़ा हैं ताबिशें तेरी
मगर ये राज़ ना अब तक खुला के तू क्या है
जहाँ में जुज़ तेरे जल्वों के चार सू क्या है
ये बज़्म ए शम्स ओ क़मर क्या है, रंग ओ बू क्या है
रज़ा ए दोस्त के आगे ये ख़्वाहिशें कैसी
खूलूस ए इ़श्क़ का मक़तल है और आरज़ू क्या है
जहाँ में जुज़ तेरे जल्वों के चार सू क्या है
ये बज़्म ए शम्स ओ क़मर क्या है, रंग ओ बू क्या है
कहाँ की इ़ज्जत ओ शौकत कहाँ का जाह ओ हशम
सिवाए उनकी ग़ुलामी के आबरू क्या है
जहाँ में जुज़ तेरे जल्वों के चार सू क्या है
ये बज़्म ए शम्स ओ क़मर क्या है, रंग ओ बू क्या है
वो जान क्या है जो ना हो खर्च तेरे रस्ते में
जो तेरे दर पे ना बहजाये वो लहू क्या है
जहाँ में जुज़ तेरे जल्वों के चार सू क्या है
ये बज़्म ए शम्स ओ क़मर क्या है, रंग ओ बू क्या है
ये हादसात हैं खुद तेरे वाक़्यात का अ़क्स
इक आईना है तक़ी तेरे रुबरु क्या है
जहाँ में जुज़ तेरे जल्वों के चार सू क्या है
ये बज़्म ए शम्स ओ क़मर क्या है, रंग ओ बू क्या है
जहां में जुज़ तेरे जल्वों के चार सू क्या है
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