प्यार के मोड़ पर मिल गए हो अगर कव्वाली लिरिक्स

प्यार के मोड़ पर मिल गए हो अगर कव्वाली लिरिक्स

Pyar Ke Mod Par Mil Gaye Ho Agar Qawwali By Sabri Brothers Lyrics in Hindi

कव्वाल: साबरी बंधु

रचना: मक़बूल साबरी

Pyar Ke Mod Par Mil Gaye Ho Agar Qawwali By Sabri Brothers Lyrics in Hindi
प्यार के मोड़ पर मिल गए हो अगर कव्वाली लिरिक्स

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ऐ अब्रे करम ज़रा थम के बरस,
इतना ना बरस के वो आ न सकें

वो आ जाएं तो जम के बरस
और इतना बरस के वो जा न सकें

 

(हां साब, एक नज़र और चार काम)

नज़र नीची की तो ह़या बन गई
नज़र ऊंची की तो दुआ़ बन गई
नज़र तिरछी की तो अदा बन गई
नज़र फेर ली तो कजा़ बन गई।

 

प्यार के मोड़ पर

प्यार के मोड़ पर

अरे, प्यार के मोड़ पर मिल गए हो अगर
और मिलने मिलाने का वादा करो…

आरहे हो, तो जाने की ज़िद ना करो
जारहे हो, तो आने का वादा करो …

 

तस्कीने दिल के वास्ते वादा तो कीजिए
हम जानते हैं, आप से आया न जाएगा

आरहे हो, तो जाने की ज़िद ना करो
जारहे हो, तो आने का वादा करो …

 

अगर तू बुरा न माने, तो जहाने-रंगो-बू में,
मैं सुकून ए दिल की खा़तिर कोई ढूंढ लूं सहारा

जारहे हो तो आने का वादा करो …

 

चलिए माना, ये उल्फ़त का दस्तूर है,
हुस्न की ये अदा हमको मंज़ूर है

रूठना है ज़रूरी तो रूठो मगर …

 

बराबर ख़फा़ हो बराबर मनाएं
ना तुम बाज़ आओ न हम बाज़ आएं।

 

तुझे मज़ा अगर आता है रूठ जाने में
तो लुत्फ़ आता है मुझको तेरे मानने में

रूठना है ज़रूरी तो रूठो मगर
बाद में मान जाने का वादा करो …

 

वो रूठ जाएं तो आए मज़ा मानने का,
बहाना खू़ब मिलेगा गले लगाने का

रूठना है ज़रूरी तो रूठो मगर
बाद में मान जाने का वादा करो …

 

मुझसे बिछड़े तो खु़द गुम भी हो जाओगे
इस उजाले की दुनियां में खो जाओगे

मेरी तारीक रातों का जुगनू हो तुम
रौशनी में ना आने का वादा करो ….

 

आंसूओं से तो सब राज़ खुल जायेंगे
और ख़यानत मोहब्बत में हो जाएगी

मेरे महबूब तुम हो अ़मानत मेरी
ग़म में भी मुस्कुराने का वादा करो …

 

मैं ही शाहिद नहीं तुम को भी है पता,
बात आगे बढ़ने के क्या फा़यदा

जब निभाने की हिम्मत नहीं है तो फिर
सारे वादे भुलाने का वादा करो …

 

मैंने कहा,
जब निभाने की हिम्मत नहीं है तो फिर ..

तो आयी आवाज़,
ये है मेरा वादा … हो मेरा वादा …

अरे! ये है मेरा वादा … हो मेरा वादा …

 

बसा लूंगा मैं दिल में सूरत तुम्हारी
सुनूंगा तुम्हे दिल की धड़कन बना कर

और,
मेरे प्यार से तुम ना मायूस होना
तुम्हे घर में लाऊंगा दुल्हन बना कर

अरे! ये है मेरा वादा … हो मेरा वादा …
ये है मेरा वादा … हो मेरा वादा …

 

रज़ा मेरी भी वो होगी, जो मर्ज़ी आपकी होगी
तुम्हारे हर इशारे पर, मेरी गर्दन झुकी होगी

अरे! ये है मेरा वादा … हो मेरा वादा …
देखो! ये है मेरा वादा … हो मेरा वादा …

 

उठा कर मेरी क़ब्र की थोड़ी मिट्टी
बना लेना तुम कोई गुलनार गा़ज़ा

बचे कोई टुकड़ा कफ़न का जो मेरे
लगा लेना खिड़की पे चिलमन बना कर

ये नाज़ुक सी, रेशम सी, जुल्फे़ मोअंबर
ख़ुदा जाने क्या हो गई भूल इस्से

ये पैदा हुई थी महकने की खा़तिर
इसे रख दिया सब ने नागन बना कर

तो,
बसा लूंगा मैं दिल में सूरत तुम्हारी
सुनूंगा तुम्हें दिल की धड़कन बना कर

और,
मेरे प्यार से तुम ना मायूस होना
तुम्हे घर में लाऊंगा दुल्हन बना कर

अरे! ये है मेरा वादा … हो मेरा वादा …

 

अभी कमसिन हो, नादां हो कहीं खो-दोगे दिल मेरा
तुम्हारे ही लिए रखा है, लेलेना जवां होकर

अरे! ये है मेरा वादा … हो मेरा वादा …

 

जितने शिकवे-गिले हैं मिटा ले अभी
जो सुनाना उनको सुना ले अभी

इन हसीनों का कोई भरोसा नहीं
आज वादा किया कल मुकर जाएंगे

नाजे़ सद कज़कुलाही उठाएंगे हम
तुझसे अहदे- मोहब्बत निभाएंगे हम

अपने दामन में कांटे भरे हों मगर
तेरा आगो़श फूलों से भर जाएंगे

अरे! ये है मेरा वादा … हो मेरा वादा …

 

(क्या वादे को निभाया है! समात फरमाएं
हज़रत अल्लामा डॉक्टर इक़बाल फरमाते हैं।
अल्लाह तबारक व तआला से शिकवा करते हैं।)

(अल्लामा इक़बाल साहब फरमाते हैं:)

के,
क्यूँ ज़याँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ

फ़िक्रे-फ़र्दां ना करूँ महवे-ग़मे-दोश रहूँ

नाले बुलबुल के सुनूँ और हमा-तन गोश रहूँ

हम-नवा मैं भी कोई गुल हूँ कि ख़ामोश रहूँ

 

जुर्रत-आमोज़ मेरी ताबे-सुख़न है मुझ को

शिकवा अल्लाह से ख़ाकम-ब-दहन है मुझ को

 

है बजा शेवा-ए-तस्लीम में मशहूर हैं हम

क़िस्सए-दर्द सुनाते हैं, के मजबूर हैं हम

साज़ ख़ामोश हैं, फ़रियाद से मामूर हैं हम

नाला आता है अगर लब पे तो माज़ूर हैं हम

 

ऐ ख़ुदा शिकवा-ए-अर्बाबे-वफ़ा भी सुन ले

ख़ूगरे-हम्द से थोड़ा सा गिला भी सुन ले

 

थी तो मौजूद अज़ल से ही तेरी ज़ाते-क़दीम

फूल था ज़ेबे-चमन पर न परेशाँ थी शमीम

शर्त इंसाफ़ है ऐ साहिबे-अल्ताफ़े-अमीम

बू-ए-गुल फैलती किस तरह जो होती न नसीम

 

हम को जमईयते-ख़ातिर ये परेशानी थी

वर्ना उम्मत तेरे महबूब की दीवानी थी

 

हम से पहले था अजब तेरे जहाँ का मंज़र

कहीं मस्जूद थे पत्थर, कहीं माबूद शजर

ख़ूगरे-पैकरे-महसूस थी इंसाँ की नज़र

मानता फिर कोई अन-देखे ख़ुदा को क्यूँकर

 

तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तेरा

क़ुव्वते-बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया काम तिरा

 

(अल्लाह तआला की जानिब से जवाब)

जवाब ए शिकवा
अक़्ल है तेरी सिपर इश्क़ है शमशीर तेरी

मेरे दरवेश ख़िलाफ़त है जहाँगीर तेरी

मा-सिवा-अल्लाह के लिए आग है तकबीर तेरी

तू मुसलमाँ हो तो, तक़दीर है तदबीर तेरी

 

की मोह़म्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे हैं

ये जहाँ चीज़ है क्या, लौह़ो-क़लम तेरे हैं

ये हैं मेरा वादा … हो मेरा वादा।


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