भर दो झोली मेरी या मोहम्मद ﷺ कव्वाली लिरिक्स

भर दो झोली मेरी या मोहम्मद ﷺ कव्वाली लिरिक्स

Bhar Do Jholi Meri Ya Muhammadﷺ Laut Kar Main Na Jaaunga Khali Qawwali Lyrics in Hindi

कव्वाल: साबरी ब्रदर्स

शायर: पुरनम इलाहाबादी


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शहे मदीना सुनो इल्तिजा ख़ुदा के लिए
करम हो मुझ पे ह़बीबे ख़ुदा ख़ुदा के लिए
हुज़ूर ग़ुन्चए उम्मीद अब तो खिल जाए
तुम्हारे दर का गदा हूं तो भीक मिल जाए


https://youtu.be/TQayTtJqEgM


भर दो झोली …
भर दो झोली मेरी या मोहम्मद (स.अ.व.)
लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली

 

भर दो झोली, भर दो झोली, भर दो झोली

हम सब की भर दो झोली, भर दो झोली,

मोहम्मद ﷺ . भर दो झोली,

आक़ा जी –
भर दो झोली, भर दो झोली, भर दो झोली

 

तुम्हारे आस्ताने से ज़माना क्या नहीं पाता
कोई भी दर से ख़ाली मांगने वाला नहीं जाता

भर दो झोली मेरी सरकारे मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे मदीना

 

तुम ज़माने के मुख़्तार हो या नबी
बेकसों के मददगार हो या नबी
सब की सुनते हो अपने हों या ग़ैर हों
तुम ग़रीबों के ग़मख़्वार हो या नबी

भर दो झोली मेरी सरकारे मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे मदीना

 

हम हैं रंजो मुसीबत के मारे हुए
सख़्त मुश्किल में हैं ग़म से हारे हुए

या नबी कुछ ख़ुदारा हमें भीक दो
दर पे आए हैं झोली पसारे हुए

भर दो झोली मेरी सरकारे मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे मदीना

 

है मुख़ालिफ़ ज़माना किधर जाएं हम
हालते बेकसी किसको दिखलाएं हम

हम तुम्हारे भिखारी हैं या मुस्तफा
किसके आगे भला हाथ फैलाएं हम

भर दो झोली मेरी सरकारे मदीना
भर दो झोली मेरी ताजदारे मदीना

 

भर दो झोली मेरी या मोहम्मद ﷺ
लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली

 

आ …
भर दो झोली मेरी या मोहम्मद ﷺ
लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली

कुछ नवासो का सदक़ा अ़ता हो
दर पे आया हूं बनकर सवाली

 

आ …
ह़क़ से पायी वो शाने करीमी
मरहबा दोनो आलम के वाली

उसकी क़िस्मत का चमका सितारा
जिस पे नज़रे करम तुमने डाली

 

आ …
जिंदगी बख़्श दी बंदगी को
आबरु दीने ह़क़ की बचा ली

वो मोहम्मद ﷺ का प्यारा नवासा
जिसने सज्दे में गर्दन कटा ली

 

ज़िंदगी बख़्श दी बंदगी को
आबरु दीने ह़क़ की बचा ली ..

 

जो इब्ने मुर्तज़ा ने किया काम ख़ूब है
क़ुर्बानिए हुसैन का अंजाम ख़ूब है

बख़्शी है जिसने मज़हब-ए-इस्लाम को ह़यात
कितनी अज़ीम ह़ज़रते शब्बीर की है ज़ात

मैदाने कर्बला में शहे ख़ुश-ख़िसाल ने
सज्दे में सर कटा के मोहम्मद के लाल ने

 

जिंदगी बख़्श दी बंदगी को
आबरु दीने ह़क़ की बचा ली

वो मोहम्मदﷺ का प्यारा नवासा
जिसने सज्दे में गर्दन कटा ली

 

आ…
हश्र में उनको देखेंगे जिस दम
उम्मती ये कहेंगे ख़ुशी से

आ रहे हैं वो देखो मुहम्मद (स.अ.व)
जिनके कांधे पे कमली है काली

 

मह़शर के रोज़ पेशे ख़ुदा होंगे जिस घड़ी
होगी गुनाहगारों मे किस दर्जा बेकली

आते हुए नबी को जो देखेंगे उम्मती
एक दुसरे से सब थे कहेंगे ख़ुशी ख़ुशी

आ रहे हैं वो देखो मुहम्मद ﷺ …

 

आ …
सरे मह़शर गुनहगारों से पुरशिस
जिस घड़ी होगी,

यक़ीनन हर बशर को
अपनी बख़्शिश की पड़ी होगी,

सभी को आस उस दम
कमली वाले से लगी होगी,

के ऐसे में मोहम्मद ﷺ की
सवारी आरही होगी,

 

पुकारेगा ज़माना उस घड़ी
दुख़ दर्द के मारो,

न घबराओ गुनहगारों
न घबराओ गुनहगारों,

आ रहे हैं वो देखो मुहम्मद ﷺ
जिनके कांधे पे कमली है काली

 

आशिक़े मुस्तफ़ा की अज़ां में
अल्लाह अल्लाह कितना असर था

 

सच्चा ये वाक़या है अज़ाने बिलाल का
एक दिन रसूले पाक से लोगों ने यूं कहा

या मुस्तफ़ा अज़ान ग़लत देते हैं बिलाल
कहिए हुज़ूर आप का इस में है क्या ख़याल

फ़रमाया मुस्तफा ने ये सच है तो देखिए
वक़्ते सहर की आज अज़ां और कोई दे

ह़ज़रत बिलाल ने जो अज़ाने सहर न दी
क़ुदरत ख़ुदा की देखो न मुतलक सहर हुई

 

आए नबी के पास फिर असहाबे बा सफा
की अर्ज़ मुस्तफ़ा से के या शाहे अंबिया

है क्या सबब सहर न हुई आज मुस्तफ़ा
जिबरील लाए ऐसे में पैग़ामे किबरिया

पहले तो मुस्तफ़ा को अदब से किया सलाम
बाद अस्सलाम उनको ख़ुदा का दिया पयाम

यूं जिब्राईल ने कहा ख़ैरुल अनाम से
अल्लाह को है प्यार तुम्हारे ग़ुलाम से

 

फ़रमा रहा है आप ये रब्बे ज़ुल्जलाल
होगी न सुब्हा देंगें न जब तक अज़ां बिलाल

 

आशिक़े मुस्तफ़ा की अज़ां में
अल्लह अल्लाह कितना असर था,

अर्श वाले भी सुनते थे जिसको
क्या अज़ां थी अज़ाने बिलाली!

साबरी ब्रदर्स की अन्य कव्वालियां

 

आ …
काश पुरनम दयारे नबी में
जीते जी हो बुलावा किसी दिन,

हाले ग़म मुस्तफ़ा को सुनाऊं
थाम कर उनके रौज़े की जाली

 

आ …
हाले ग़म मुस्तफ़ा को सुनाऊं
थाम कर उनके रौज़े की जाली।

 

गा, मा, मा, गा, मा, गा, सा, नी, सा,
धा, नी, सा, गा, मा, मा, गा, सा, नी, धा,
धा, नी, सा, गा, मा, रे, नी, नी, नी, नी, रे, मा,
गा, मा, मा, गा, सा, नी, सा,
धा, नी, सा, गा, मा, रे, नी, सा, नी, सा, मा, पा,
गा, मा, रे, नी, रे, सा।

 

भरदो झोली मेरी या मोहम्मद
लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली।

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