Ishq Ki Ibtida Bhi Tum Lyrics In Hindi

Ishq Ki Ibtida Bhi Tum Husn Ki Intaha Bhi Tum (Naat-e Paak) Lyrics in Hindi
इश्क़ की इब्तिदा भी तुम हुस्न की इंतहा भी तुम

Qawwal :  Maulvi Ahmad Hasan Akhtar

Ishq Ki Ibtida Bhi Tum Hindi Lyrics
इश्क़ की इब्तिदा भी तुम

मोहम्मदﷺ सा कोई पैदा ना होगा
वोह जैसे हैं कोई ऐसा न होगा

 

इश्क़ की इब्तिदा भी तुम

इश्क़ की इब्तिदा भी तुम हुस्न की इंतहा भी तुम

हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .

 

फ़िरे ज़माने में चार जानिब
सनम सरापा तुम्हीं को देखा

हसीन देखे जमील देखे
पर एक तुझही को तुझी सा देखा

 

हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

दर-ए – सू-ए खुल्द से मुस्तफ़ा
तुझे जिब्राईल ने की सदा

के जनाब ए ख़्वाजा ए दोसरा
सभी अंबियाओं के पेशवा

हुई अब है जल्वागरी बजा
दरे ख़ुल्द की दिये चल दवा

वहीं सुनके रिजवां क़रीब आ
लगा अर्ज़ करने के सैय्यदा

 

हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

अब देखो सर-ए अर्श तो आवाज़ ये आई
ख़िलवत में चले आइए महबूब हमारे

मेराज की शब और वोह कौसैन का मंज़र
थे तालिब-ओ-मतलूब के आपस में इशारे

कुछ भी न रहा फ़र्क़ मोहम्मद ﷺ में अहद में
जिस वक़्त हुए जज़्ब नज़ारों में नज़ारे

हैं शम्सो क़मर रौशन अनवारे मोहम्मद ﷺ से
सितारों में झलकती है तनवीर मोहम्मद ﷺ की

 

हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

जब चला चांद मदीने का सूए रब्बे जलील
बुझ गई मेहर ए दरख़शां की फ़लक पर क़ंदील

शहर ए फिरदौस की आदम ने अभी रखी थी सबील
के इसी राह से गुज़रेगा वोह फ़रज़न्द-ए जमील

रूह पर रूह लगी गिरने बरा-ए ताजीम
कहीं यूसुफ़ थे खड़े और कहीं इस्माइल

तब हुए सूरा में यूं नगमा-सरा असराफ़ील

 

हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

अंदाज़ हसीनों को सिखाएं नहीं जाते
यह उम्मी लक़ब है के पढ़ाये नहीं जाते
हर एक का हिस्सा कहां दीदार किसी का
बू-जहल को महबूब दिखाए नहीं जाते

 

जां- नाफ़रीनी जां देही जा परवरी जादूगरी
कुछ तेरे होठों में रखी कुछ तेरी आंखों में भरी

मोजज़ नुमाई ने कोई नाज़कतनी चां बक़तरी
एक एक का है ख़ात्मा क्या ख़त्म है पैग़ंबरी

ऐ सर्वो-अब्दल मुतलबा सब पर है तुझको सरवरी
शम्सो क़मर, शाम-ओ-सहर, ज़ेब-ओ-ज़बर ख़ुश्क़ो तरी

सब अज़ पए फ़रमां-देही तू अज़ पए फ़रमां-बरी

लब’हा-ए-नाज़ुक में शफ़क़ चश्मान-ए-जादू में हया
हो जैसे ग़ुन्चा में शमीम हो जैसे शीशा में परी

टुकड़े क़मर के देख कर ख़ुर्शीद थर्राने लगा
हां एक को इबरत हुई गर एक ने कि हमसरी

इस नात का सुनकर बयां सकते में साकत रह गये
सादी-ओ-हाफ़िज़, अन्सारी, जामी, निज़ामी, अख़्तरी

जब हुआ मक्के में पैदा सरवर-ए दुनिया-ओ-दीं
हूरो ग़िलमां से ज़मी थी रश्क़-ए- फिरदौस-ए बरीं

आसिया मरियम खड़ी थीं आमना के हम करीं
कहते आते थे मलायक चर्ख़ से सूए ज़मी

 

वल्लाह! हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

नाज़ां है जिस पे हुस्न वोह हुस्न-ए-रसूल है
यह कहकशां तो आपके क़दमों की धूल है

 

मुहम्मद ﷺ,
हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

बतहा का बासी मनमोहन,
जब अर्श पे आयो आनन में

अब का से कहूं मैं हे री सखी
जो धूम थी कौनो मकानन में

जब वोह मोहन अनमोल उठा
मुख पर से पर्दा खोल उठा

मौला कलमा तब बोल उठा
उस उम्मी लक़ब की शानन में

 

वल्लाह! हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

ग़ुरुब हो जो सके ये वोह आफ़ताब नहीं
नबी के हुस्न का कौनैन में जवाब नहीं

 

वल्लाह! हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

अंबिया देख के वोह हुसन ओ जमाले मदनी
सब कहेंगे कि अजब शान है अल्लाहो ग़नी

उसका हमसर है, न कोई गुल है, ना सर्वे चमनी
ख़त्म इस काम तेरा ना पहे गुल पहरौनी

आज उश्शाक़ की बिगड़ी हुई तक़दीर बनी
आज ही उनको मज़ा देगी ग़रीब-उल्-वतनी

जब कि ये कहते हुए उठेंगे उवैसे क़रनी

 

हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

हमो इसमें अज़म, हमो जिसमें अज़म
के दर इश्क़े हक़ इंतजाम ए मोहम्मद ﷺ

मुज़ैय्यन, मुनव्वर, मोअ़त्तर, मुताह्हिर
ज़मीन-ओ-ज़मा हस्त बाम-ए मुहम्मद ﷺ

 

ज़मी भी कहती थी ये और फ़लक भी कहता था
बात क्या थी बल्कि ख़द ख़दा यह कहता था

 

वल्लाह! हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

क़द्दे-राना की अदा, जामा-ए-ज़ेबा की फबन
सुरमगी आंख ग़ज़ब नाक भरी वोह चितवन

 

ऐसी आंखों के तसददुक मेरी आंखें बेदम
के जिन्हें आता है अग़यार को अपना करना

चश्म दो जादूस्त, जा आहूस्त, जा सैय्याद-ए ख़लक़,
जा दो बादम-ए-सियाह, जा नरगिस-ए-शोला अस्ती.

 

क़द्दे राना की अदा, ज़मा-ए-ज़ेबा की फ़बन
सुरमगी आंख ग़ज़ब नाक भरी वोह चितवन

वोह इमामे की ज़बाइश वोह बेयाज़-ए गर्दन
वोह मुखड़े की तजल्ला, वोह जबीन-ए-रौशन

मुर्दे भी देखें जो, कर चाक गिरेबान कफ़न
उठ चलें क़ब्रों से मुर्दे, ज़ुबान पे ये सुख़न

 

वल्लाह! हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

शुदम बर सूरत-ए-आशक़ के बर पा मी कुनद ग़ौग़ां
के सूरत सूरत-ए दिलबर के दिलबर दिलबर-ए ज़ेबा

निगारे मन ब-सद ख़ूबी दो ज़ुल्फ़ अज़ निकहत-ए-दारद
के निकहत निकहत-एअम्बर चे अम्बर अम्बर-ए सारा

 

बा ज़ुल्फ़े सियाहे के ख़मदार दारी
दिले हर दो आ़लम गिरफ्तार दारी

ब बाज़ारे हुस्ने के मिसले न दारद
चू यूसुफ़ हज़ारां ख़रीदार दारी

 

हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

हुए लाखों हसीं आदम से लेकर इब्ने मरियम तक
बनी हाशिम की महफ़िल में जो आया लाजवाब आया

 

वल्लाह! हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .۔۔

 

रोया शबे हिजरां में बहुत अश्क बहाया
इतने में मुसव्विर को ज़रा रह्म जो आया
नक़्शे कई तस्वीरों के वोह सामने लाया

बोला के ये यूसुफ़ हैं, ये ईसा हैं, ये मूसा
तो मैंने कहा इनमें से किसी पर नहीं शैदा

जब सामने लाया वो सबीह ए शहेवाला
तो बे साख़्ता उस वक्त़ जुबां से मेरी निकला

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

नूर उनका जलवा-गन है कौनैन के चमन में
हैं खुद ही शम्म-ए-महफ़िल वोह अपनी अंजुमन में

खुशबू बसी हुई थी जो आपके बदन में
उसकी महक लहक है गुलहा-ए-हर चमन में

नबियों में उनका चेहरा ऐसा चमक रहा है
जैसे हो चांद रौशन तारों की अंजुमन में

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

क्या नज़्म को परवाज़ है
परवाज़ में अंदाज़ है
अंदाज में इक नाज़ है
और नाज़ में एजाज़ है
एजाज़ में आवाज़ है
आवाज़ में अग़राज़
अग़राज़ में ये साज़ है
ये साज़ में आवाज़ है

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

अनवर मेरे नबी का हमसर कोई नहीं है
औसाफ़ में, चलन में, अख़लाक़ में, फबन में

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

मूसा बराये दीद-ए ख़ुदा तूर पर गये

चौथे फ़लक पे ईसा-ए साहिब ज़फ़र गये

सिदरा पे जा के हज़रते जिब्राईल डर गये

मेरे हुज़ूर अ़र्श से आगे गुज़र गये

अल्लाह के हबीब थे अल्लाह के घर गये

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

रसूल और भी हैं कहलाएं जो कलीम ओ ख़लील
लक़ब खुदा से किसी को मिला हबीब नहीं

ये साइलों को कुछ ऐसा निहाल करते हैं
न फिर कभी वोह किसी से सवाल करते हैं

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

उधर रुख से अहमद ने पर्दा उठाया
इधर शायरों ने क़लम तोड़ डाले

सरापा-ए-नूर अज़ साया न दारद
के शक-उल-क़मरी मुक़ामे मुहम्मद ﷺ

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

गये आप अर्श से वहां गुज़र
जहाँ हो किसी का न हो गुज़र
हुआ नूर नूर से जल्वगर
वोह मिला नज़र के न था नज़र

रहे जिब्राईल ये अर्ज़ कर
मैं चलूं जो आगे, जलेंगे पर
जो है देखा पुश्त-ए बुराक़ पर
तो बोला ये रफ़-रफ़ आन कर

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

हमसर नहीं कोई महबूब-ए सही क़द का

वोह नूर-ए-मुजस्सम हैं और अक्स हैंं एज़ज़ का

मालूम अहद को है रुतवा शह-ए-बेहद का

जिब्राईल तो हद ही में ख़ादिम है मुहम्मद ﷺ का

बेहद हो तो फिर जाने तौक़ीर मुहम्मद ﷺ की

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

निशानी इश्क़ में महबूब की महबूब होती है
ख़ुदा ने पास अपने रख लिया साया मुहम्मद ﷺ का

आई बहार अब हर चमन है बुलबुल ओ गुल का वतन
दैर-ओ-हरम से नारा-ज़न आते हैं शैख़-ओ-बरहमन

ज़ाहिद से कह दो ये सुखन है फस्ल्-ए गुल तौबा शिकन
गर चाहे ऐश-ओ-जान-ओ-तन मैयख़्वारों का सीखे चलन

आई बहारे जां फ़िज़ा लाई गुलिस्तां में सबा
पैग़ाम-ए-फसल-ए-दिलरुबा गुल खिल खिलाकर हस पड़ा

मौजे हवा ने वां किया हर घुन्चे का बन्दे क़बा
बुलबुल ये करती है सदा अब मैं हूँ और सहरे चमन

अब्रे बहारां जा-ब-जा छिड़काओ सा करने लगी
बदली गुलिस्तां की हवा हर नख्ल और फूला फला

जां जान-ओ-दिल हो मुबतला मस्सात बन बन कर सबा
सुलझाती है सुबहो मसा सुम्बुल की ज़ुल्फ़े पुर-सिकन

गुल है यही हर चार सू आता है अब वोह माह-रु
करते हैं जिसकी गुफ़्तगू पैमाने से मिलकर सगू

मतलब से मिलकर आबे जू
सब्ज़ी से मिलकर आबे जू
नसरी से मिलकर नस्तरन

 

सूंघे जो फ़ूलों की महक
बेहोश हों हूरो मलक

देखें जो घुन्चों की चमक
जल जाये अन्जुम की पलक

बर्क़-ए-तजल्ला की झलक
रोज़े अज़ल से अब तलक

आगाह न था जिस से फ़लक
देखेंगे अब सब मर्द-ओ-ज़न

हां महफिल ए मीलाद है वक़्ते मुबारकबाद है
जिब्रील को इरशाद है मशहूर कर दो ये सुखन

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

सोचती है दिल में दुनिया नूर-ए अहमद देखकर
वोह मुसव्विर कैसा होगा जिसकी यह तस्वीर है

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..
ऐसा नबी हमने देखा ना भाला ..

 

ऐसा नबी हमने देखा ना भाला
जिसने किया दोनों जग में उजाला

हुस्न की इन्तहा भी तुम

 

हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .
हुस्न की इन्तहा .. कमली वाले .

 

इश्क़ की इबि्तदा भी तुम हुस्न की इन्तहा भी तुम
कहने दो राज़ खुल गया बन्दे भी तुम ख़ुदा भी तुम

कहने दो राज़ खुल गया बन्दे भी तुम खुदा भी तुम …

 

हर एक शै में जल्वा नुमा हैं मुहम्मद ﷺ
मुहम्मद ﷺ ख़ुदा हैं खुदा हैं मुहम्मद ﷺ

मेरा दीन-ओ-ईमान काबा व क़िबला
मेरा यार सल्ले अला है मुहम्मद ﷺ

हक़ीक़त में हक़ है वोह लेकिन शरा में
न हक़ है न हक़ से जुदा है मुहम्मद ﷺ

 

कहने दो राज़ खुल गया बंदे भी तुम खुदा भी तुम …

 

अहमद हैं अहद, है अहद अहमद
है अहद अहमद, अहमद हैं अहद

ज़ाहिर में हद, बातिन बेहद
शान-ए-वहदत, शकले बशरी

कुन इन्नमा अना बशरुम मिसलोकुम यूहा इलैय्या

قُلْ إِنَّمَا أَنَا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُوحَىٰ إِلَيَّ (القرآن‎)

शाने वहदत, शक्ले बसरी
वोह और नहीं, हक़ और नहीं

है बजूद मुहम्मद ﷺ जग सरा
वहदत से ले ता तहत-ए-सरा

वहदत में समाती कब है दुई
वोह और नहीं हक़ और नहीं

 

कहने दो राज़ खुल गया बंदे भी तुम खुदा भी तुम …

 

मुहम्मदﷺ और आदम का ताअ़ल्लुक इस से ज़ाहिर है
वोह लेकर इब्तिदा आये ये लेकर इन्तहा आये

 

ख़ुदाई की तकमील खै़रुल बशर हैं
कमाल ए ख़ुदा है कमाले मुहम्मद ﷺ

न आदम न हव्वा न दुनिया न उक़बा
ज़हूर-ए-दो आलम जमाल-ए-मुहम्मद ﷺ

 

कहने दो राज़ खुल गया बंदे भी तुम खुदा भी तुम …

 

कह दूं कि मेरी आंख ने क्या देखा है
हर देखने वाले से जुदा देखा है

देखा तो बहुत कुछ मगर इतना है याद
सूरत में मोहम्मद ﷺ की ख़दा देखा है

 

कहने दो राज़ खुल गया बंदे भी तुम खुदा भी तुम …

 

निशानी इश्क़ में महबूब की महबूब होती है
खुदा ने पास अपने रख लिया साया मोहम्मद ﷺ का

मीम अहमद में अहद की ज़ात पर्दा पोश है
मुस्तफा बनकर खुदा खुद आप कमली पोश है

 

कहने दो राज़ खुल गया बन्दे भी तुम ख़ुदा भी तुम …

 

इश्क़ की इब्तिदा भी तुम हुस्न की इंतहा भी तुम
कहने दो राज़ खुल गया बन्दे भी तुम खुदा भी तुम …

 

सत्तर हज़ार पर्दों में था हुसने मुस्ततर
फिर भी रूखे हदूद पे जमती न थी नज़र
गश, करना जाए सूरते मूसा कोई बशर
है इसलिए वोह सूरत ए इंसां लिए हुए

 

कहने दो राज़ खुल गया बन्दे भी तुम खुदा भी तुम …

 

निशां देख कर बे निशा तक गया हूं
मकाां देखकर ला मकां तक गया हूं

न सजदा न साजिद न मसजूद कोई
मैं ऐसे भी सिर्रे ए नेहां तक गया हूं

तमाशा ए कौन-ओ-मकां मैं ही मैं हूं
जो नाज़िर हैं नज़रें अयां मैं ही मैं हूं

मैं आप अपना पर्दा हूं पर्दे की खातिर
हक़ीक़त में पर्दा कहां मैं ही मैं हूं

 

 बस,
कहने दो राज़ खुल गया बन्दे भी तुम खुदा भी तुम …

 

अर्श पे किब्रिया भी तुम फ़र्श पे मुस्तफा भी तुम
दुनिया में मुद्दई भी तुम हश्र में मुद्दाआ भी तुम

 

आसिफ हज़ार जान से तुम पर फरेफ़्ता हुआ
मुझसे मरीज़ ए इश्क़ का दर्द भी तुम दवा भी तुम

 

कहने दो राज़ खुल गया बन्दे भी तुम खुदा भी तुम

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Hindi And English lyrics

Qawwali |

Sabri Brothers | Nusrat Fateh Ali Khan | Rahat Fateh Ali Khan | Iqbal Afzal Sabri | Aziz Miyañ |Nazir Ejaz Faridi |  Ghous Muhammad Nasir | Maulvi Ahmad Hasan |

Naat-E-Paak|

Khalid Mahmud ‘Khalid’ Ajmal Sultanpuri Naat  | Ala Hazrat Naat | Akhtar Raza Khan| Raaz Ilaahabadi | Muhammad Ilyas Attari | Sayyad Nazmi Miyan

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