Is Karam Ka Karun Shukr Kaise Ada Qawwali Lyrics In Hindi (Rare Version)
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा लिरिक्स
Qawwal : Nusrat Fateh Ali Khan
करम जब आले नबी का शरीक होता है
बिगड़ बिगड़ के हर एक काम ठीक होता है
दुरूद-ए आले मुहम्मद ﷺ की ये फज़ीलत है
के ला-शरीक़ भी इसमें शरीक़ होता है
ताज़ीम से लेता है ख़ुदा नाम-ए मोहम्मद ﷺ
क्या नाम है ऐ सल्ले-अला नाम ए मोहम्मद ﷺ
अल्लाह करे उस पे हराम आतिश-ए दोज़ख़
जिस शख़्स के हो दिल पे लिखा नाम ए मोहम्मद ﷺ
जो भी चौखट पे तेरी मांगने वाले होंगे
हां वोही लोग ज़माने से निराले होंगे
पूंछा दोज़ख ने के या रब हैं गुनहगार कहां
ज़ात-ए हक़ बोली मोहम्मदﷺ ने संभाले होंगे
बे बंदगी उरूज किया बंदा कर दिया
तारा मेरे नसीब का ताबिंदा कर दिया
इतनी बढ़ीं हुजुर की बंदा- नवाज़ियां
मुझको मेरे सवाल ने शर्मिंदा कर दिया
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
Is Karam Ka Karooñ Shukr Kaise Ada
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा
जो करम मुझपे मेरे नबी कर दिया
मैं सजाता था सरकार की महफ़िलें
मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
ग़म-ए-आशिक़ी से पहले मुझे कौन जनता था
तेरी ज़ात ने बना दी मेरी ज़िन्दगी फ़साना
इस करम का करूं शुक्-र् कैसे अदा .. ..
कोई सलीक़ा न आरज़ू का न बंदगी मेरी बंदगी है
ये सब तुम्हारा करम है आक़ा के बात अब तक बनी हुई है
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
अ़ता किया मुझको दर्द-ए-उल्फ़त
कहां थी ये पुरख़ता की क़िस्मत
मौं इस करम के कहां था क़ाबिल
हुज़ूर की बंदा-परवरी है
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
हाथ आ गई गदाई दर-ए ताजदार की
मुफ़लिस था मैं खुदा ने तवंगर बना दिया
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
ख़ालिक़ ने मुझको मेरी तलब से सिवा दिया
सरमाया दार-ए-इश्क़-ए-मुहम्मदﷺ बना दिया
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
आक़ा ने आके ख़्वाब में जल्वा दिखा दिया
मैं सो रहा था मेरा मुक़द्दर जगा दिया
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
गदाई की तेरी चौखट की बादशाही की
बना दिया है फ़क़ीरी ने ताजदार मुझे, मैं
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
उनकी जब शाने-करीमी पे नज़र जाती है
जिंदगी कितने मराहिल से गुज़र जाती है
बे-तलब मुझको दिए जाता है देने वाला
हाथ उठते नहीं नीयत मेरी भर जाती है
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
जो फंसी भंवर में कश्ती तो हुज़ूर को पुकारा
वहीं आ गया सिमटकर मेरे रूबरू किनारा
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
किया मुज़तरिब ने जब भी किया याद उन्हें तड़पकर
तो हुज़ूर कर गए हैं मेरे दर्द-ए दिल का चारा
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा ..
जब मुहम्मद ﷺ की इ़नायत हो गई
जब मुहम्मद ﷺ की इ़नायत हो गई
दूर हमसे हर मुसीबत हो गई
ख़्वाब में बेदार क़िस्मत हो गई
कमली वाले की ज़ियारत हो गई
भीख पायी जब दर-ए सरकार से
पूरी मंगतों की ज़रूरत हो गई
आपकी सूरत का जब आया ख़याल
पूरे क़ुरआं की तिलावत हो गई
मुस्तफ़ा ﷺ के दर पे सज्दा कर लिया
मरहबा! कैसी इबादत हो गई
बंदगी उसकी है जिसको या नबी ﷺ
आपके दर से मोहब्बत हो गई ।
कमली वाले के करम की बात है
वर्ना मुझ मांगते की क्या औक़ात है
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा
जो करम मुझ पर मेरे नबी कर दिया
मैं सजाता था सरकार की महफ़िलें
मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
जब लिया नाम-ए-नबी मैंने ख़ुदा से पहले
हो गई मुझपे अ़ता मेरी ख़ता से पहले
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
इस्म-ए-अहमद का वज़ीफा है हर एक ग़म का इलाज
लाख ख़तरे हों इसी नाम से टल जाते हैं
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
मोहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ की याद से मैं काम लेता हूं
ख़याल ए मुस्तफ़ा ﷺ आए तो दामन थाम लेता हूं
मेरी रग-रग में वज्दान-ए कलंदर रक्स करता है
जनाब ए आमिना के चांद का जब नाम लेता हूं, मैं
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
जुबां पर जब मोहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ का नाम आता है
बड़ी तस्कीन होती है बड़ा आराम आता है
मोहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ का नाम भी क्या इस्म्-ए-आज़म है!
जहां कोई न काम आए वहां ये काम आता है
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
(सरगम)
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें ..
ज़िक्र-ए-सरकार की हैं बड़ी बरकतें
मिल गईं राहतें, अजमतें, रिफ़्अ़तें
मैं गुनहगार था बे अमल था, मगर
मुस्तफ़ा ने मुझे जन्नती कर दिया
लम्हा लम्हा है मुझ पर नबी की अ़ता
दोस्तों और मांगूंगा मौला से क्या!
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब ﷺ का उम्मती कर दिया
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब का उम्मती कर दियाा..
फ़ख़रम बस अस्तीं, के*
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब का उम्मती कर दिया ..
ग़रीबम् आज़म के हस्तम् उम्मती तो
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब का उम्मती कर दिया
गुनहगारम् ब लेकिन खुशनसीबम्
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब का उम्मती कर दिया ..
नाज़ जिस बात पे है वोह बात यही है
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब का उम्मती कर दिया ..
भला ये कम है शरफ़ मुझसे बे-नवा के लिए
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब का उम्मती कर दिया ..
ये करम नहीं तो क्या है
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब का उम्मती कर दिया ..
कोई किसी का, कोई किसी का, कोई किसी का
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब का उम्मती कर दिया ..
लम्हा लम्हा है मुझ पर नबी की अता
दोस्तों और मांगूंगा मौला से क्या
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूब ﷺ का उम्मती कर दिया
शुक्र है मौला तेरी ज़ात का
कमली वाले से निस्बत मेरी हो गई
क्या ये कम है के मेरे ख़ुदा ने मुझे
अपने मह़बूबﷺ का उम्मती कर दिया ..
जो भी आया है महफ़िल में सरकार ﷺ की
हाज़री मिल गई जिसको दरबार की
कोई सिद्दीक़ ओ फारूक़ ओ उस्मां हुआ
और किसी को नबी ने अ़ली कर दिया
जो दर-ए-मुस्तफ़ा ﷺ के गदा हो गए
देखते देखते क्या से क्या हो गए!
ऐसी चश्म-ए-करम की है सरकार ने
दोनों आलम में उनको ग़नी कर दिया
ऐसी चश्म-ए-करम ..
ऐसी चश्म-ए-करम ..
उनकी चश्म-ए-करम ..
उनकी चश्म-ए-करम ..
उनकी चश्म-ए-करम, करम ..
उनकी चश्म-ए-करम, करम ..
बदल गई मेरे दिल की दुनिया अता ने वोह मर्तबा दिया
करम की ऐसी निगाह डाली गदा को सुल्तां बना दिया
उनकी चश्म-ए-करम, करम ..
उनकी चश्म-ए-करम, करम ..
जिधर जिधर भी गए वोह करम ही करते गए
किसी ने मांगा न मांगा वोह झोली भरते गए
उनकी चश्म-ए-करम, करम ..
उनकी चश्म-ए-करम, करम ..
इक नज़र में बे-सहारे बा-सहारे हो गए
उनकी चश्म-ए-करम ..
उनकी चश्म-ए-करम ..
जिस तरफ चश्मे मोहम्मद ﷺ के इशारे हो गए
ख़ाक़ के जर्रे थे जितने सब सितारे हो गए
उनकी चश्म-ए-करम, करम ..
उनकी चश्म-ए-करम, करम ..
ऐसी चश्म-ए-करम की है सरकार ने
दोनों आलम में उनको ग़नी कर दिया
कोई मायूस लौटा न दरबार से
जो भी मंगा मिला मेरे सरकार से
सदक़े जाऊं नियाज़ी मैं लजपाल के
हर गदा को सख़ी ने सख़ी कर दिया
इस करम का करूं शुक्र कैसे अदा
जो करम मुझ पे मेरे नबी कर दिया
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