हौसला हारे न इन्सान परेशानी में | Aziz Miyan

हौसला हारे न इन्सान परेशानी में

Hosla Haare Na Insaan Pareshani Mein

Qawwal: Aziz Mian


English Lyrics


क़ुरआन की हर आयत-ओ-सूरत देखी
इस्लाम की तफ़्सीर-ओ-ह़क़ीक़त देखी
ईमान पे जब ग़ौर किया है मैंने
सरकार-ए-दो आ़लम की मुहब्बत देखी

हौसला हारे न इन्सान परेशानी में

 

हौसला हारे न इन्सान परेशानी में
हर बना काम बिगड़ जाता है नादानी में
सब्र हर हाल में हासिल है परेशानी में
डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

मोमिन कभी ग़मनाक नहीं हो सकता
बा राफ़्ता-ए-इदराक नहीं हो सकता
सरकार-ए-दो आलम की मोहब्बत के बग़ैर
इन्सान का दिल पाक नहीं हो सकता

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

कश्ती का मेरे हाथ में लंगर तो नहीं है
गरदिश में सितारे हैं मुक़द्दर तो नहीं है

तारीफ़ इस तरह की, ज़ुलैख़ा न किया कर
ये माना युसुफ भी तेरा खास है दिलबर
ये माना युसुफ भी ख़ुदा के हैं पयम्बर
रुत़बे में मुह़म्मद के बराबर तो नहीं हैं

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

हौसला हारे न इन्सान परेशानी में
हर बना काम बिगड़ जाता है नादानी में
सब्र हर हाल में हासिल है परेशानी में
डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

नज़र का नूर दिलों के लिए क़रार दुरुद
अक़ीदतों का चमन, रुह का निखार दुरूद
चराग़, यास-ए-मुसलसल के ग़ुप अंधेरों में
ग़मों की धूप में है अब्र-ए-सायादार दुरूद

दुरूद रुह की पालीदगी का सामां है
जबीन-ए-शौक़ को देता है इक निखार दुरूद
सदाबहार दुआओं का है बिक़ार दुरूद
गुलाब ज़हन के पर्दों पे खिलने लगते हैं
ज़बां पे जब भी मेरी आता है मुस्कबार दुरूद

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी मेें

हौसला हारे न इन्सान परेशानी में
हर बना काम बिगड़ जाता है नादानी में
सब्र हर हाल में हासिल है परेशानी में
डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

नज़र का नूर दिलों के लिए क़रार दुरुद
अक़ीदतों का चमन, रुह का निखार दुरूद
चराग़, यास-ए-मुसलसल के ग़ुप अंधेरों में
ग़मों की धूप में है अब्र-ए-सायादार दुरूद

दुरूद रुह की पालीदगी का सामां है
जबीन-ए-शौक़ को देता है इक निखार दुरूद
सदाबहार दुआओं का है बिक़ार दुरूद
गुलाब ज़हन के पर्दों पे खिलने लगते हैं
ज़बां पे जब भी मेरी आता है मुस्कबार दुरूद

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

मदीना में किसी पत्थर के नीचे मेरी तुरबत हो
वो पत्थर भी जो उनके दर का पत्थर हो तो बेहतर है
और उस पत्थर पे नक्श-ए-पा-ए-सरवर हो तो क्या कहना!

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

दरस-ए-आदाब पढ़ाने के लिए आये आप
मानी-ए-ज़ीस्त बताने के लिए आये आप

मुज़तरिब सारा ज़माना था हिसार-ए-ग़म से
इसलिए सारे ज़माने के लिए आप आये

जब कहीं दीन के सूरज के लिए उजाला न रहा
तो, ज़ुल्मत-ए-कुफ्र मिटाने के लिए आप आये

हुस्न-ए-अख़लाक़-ओ-मोहब्बत का सहीफ़ा लेकर
इकतिलाफ़ात मिटाने के लिए आप आये

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

हकतबी राहत ओ तस्कीन में ढल जाते हैं
जब करम होता है हालात बदल जाते हैं

रख ही लेते हैं भरम उनके करम के सदक़े
जब किसी बात पे दीवाने मचल जाते हैं

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

उस काली कमलिया वाले ने क्या क्या न जहां में कर डाला
ये शान है मेरे आक़ा की जिसे खाली देखा भर डाला

जब औज में आईं वोह मौंजें क़तरे को समन्दर कर डाला
ये रीत पुरानी है उनकी जिसे खाली देखा भर डाला

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

हौसला हारे न इन्सान परेशानी में
हर बना काम बिगड़ जाता है नादानी में
सब्र हर हाल में हासिल है परेशानी में
डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

थी मंजिल कौन सी वल्लाह आ़लम, रात थी मैं था
था महव-ए-रक़्स-ए-बिसमिल सारा आ़लम

वो मासूक-ए-परी पैकर, सरु क़द लाला रुख तौबा!
था दिल के वास्ते महशर मुजस्सम, रात थी मैं था

रक़ीबों के लगे थे कान, वो नाज़ां, मुझे खदशे
बहुत मुश्किल था करना बात बाहम, रात थी मैं था

ऐ खुशरो आप अल्लाह ला मकां में मीर-ए-मजलिस था
शमा महफ़िल थी सरकार-ए-दो आ़लम, रात थी मैं था।

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

आरिज़-ए-ताबां, मुसहफ़-ए-ई़मां, सय्यदना वा मुह़म्मद ना
सूरत-ए-इन्सां, जल्वा-ए-यज़दां, सय्यद ना वा मुह़म्मद ना

लौह-ए-जबीं, पुरनूर-ए-रिसालत, मिशअल-ए-ई़मां, शम-ए-हिदायत
वहदत कसरत रुख़ से नुमायाँ, सय्यद ना वा मुह़म्मद ना

ऐ ख़ुदा के बनके पयामी, मुजरई, लाखों, लाखों पयामी
मालिक-ए-दुनिया, दीन के सुल्तां, सय्यद ना वा मुह़म्मद ना

फ़खरे ज़मीन ओ फ़खरे ज़माना, आमना का फ़रज़न्द-ए-यगाना
ज़ेर-ए-क़दम है आ़लम-ए-इमकां, सय्यद ना वा मुह़म्मद ना

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

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20:30
नबूव्वत, हादी-ओ-रहबर
नबूव्वत, वाक़िफ़-ए-दव्वार
नबूव्वत, अहमद-ओ-सरवर
नबूव्वत, साबिर-ओ-शाकर
नबूव्वत, सय्यद-ओ-अकबर
नबूव्वत, शाफ़ा-ए-महशर
नबूव्वत, साक़ी-ए-कौसर

नबूव्वत, आ़ला-ओ-अफ़जल
नबूव्वत, कमली-ओ-अकमल

नबूव्वत, हासिल-ए-ईमान
नबूव्वत, हामिले क़ुरआन
नबूव्वत, रहबर-ए-इंसां
नबूव्वत, ज़ीनत-ए-इमकां
नबूव्वत, नय्यर-ए-ताबां
नबूव्वत, सरवर-ए-सुल्तां
नबूव्वत, रौनक़-ए-वज़दां
नबूव्वत, जल्वा-ए-यज़दां

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

तेरे उश्शाक़ को राज़ी-बा-रज़ा कहते हैं
तेरी मन्ज़िल में फ़ना को भी बक़ा कहते हैं

मैं तो नादाँ था, दानिस्तां भी क्या क्या न किया
लाज रख ली मेरे सरकार ने रुसवा न किया

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

हौसला हारे न इन्सान परेशानी में
हर बना काम बिगड़ जाता है नादानी में
सब्र हर हाल में हासिल है परेशानी में
डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

यूं तो क्या नज़र नहीं आता
कोई तुमसा नज़र नहीं आता
झोलियाँ सबकी भरती जाती हैं
देने वाला नज़र नहीं आता

ज़ेरे साया उसी के हैं हम सब
जिसका साया नज़र नहीं आता

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

अली से पूछा किसी ने इसका सबब क्या है
के कलमे में नबी के नाम को मा बाद रक्खा है
भला ये आशिक़ी कैसी है और ये इ़श्क़ कैसा है
रखे माशूक़ को पीछे यह कब आशिक़ का शेवा है

तो, अली ने जिस तरह समझाया उस गुस्ताख़-ए-बेहद को
अरे नादां ! तू समझा नहीं है राज़-ए-क़ुदरत को
ख़ुदा ने इसलिए रक्खा है पीछे नाम-ए-अहमद को
के नापाकी में न ले ले कोई नाम-ए-मुह़म्मद को

ज़ुबाँ धुल जाए पहले नाम जब अल्लाह का निकले
फिर उसके बाद में कलमा रसूलल्लाह का निकले

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

तड़पते हैं मचलते हैं बहुत अरमान सीने में
रवां जब काफ़िला होता है यां हज के महीने में
भला ये कैसे मुमकिन है मोहब्बत के क़रीने में
मज़ा क्या ख़ाक आये दूर रहकर ऐसे जीने में
के परवाना यहां तड़पे जले शम्मा मदीने में

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

मलायक, जिन्न-ओ-इन्सां का तो आख़िर पूछना क्या है
हवाएं भी अदब के साथ चलती हैं मदीने में

मुह़म्मद इस तरहां से जल्वा फ़रमां हैं मदीने में
के जैसे सूरह-ए-यासीन है क़ुरआं के सीने में

दर-ए-आक़ा पे पहुचूं और पहुच कर दम निकल जाए
यही है आरज़ू मेरी बने मदफ़न मदीने में

मेरी कश्ती को क्या ग़म तूफ़ान-ओ-हवादिस का
मुहम्मद का वसीला ले के बैठूँगा सफ़ीने में

डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

हौसला हारे न इन्सान परेशानी में
हर बना काम बिगड़ जाता है नादानी में
सब्र हर हाल में हासिल है परेशानी में
डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में

 

ख़ालिक़-ए-ह़क़ के समावात का एहसान है ये
देखो दुनिया में मुसलमानों की पहचान है ये

नूर होता है मुसलमानों की पेशानी में
नूर होता है मुसलमानों की पेशानी में

हौसला हारे न इन्सान परेशानी में
हर बना काम बिगड़ जाता है नादानी में
सब्र हर हाल में हासिल है परेशानी में
डूब सकती नहीं तूफ़ान की तुग़यानी में
जिसकी कश्ती हो मुह़म्मद की निगेहबानी में


Hindi and English Lyrics

Naat-E-Paak|

Khalid Mahmud ‘Khalid’ Allama Saim Chishti  | Ajmal Sultanpuri Naat  | Ala Hazrat Naat | Akhtar Raza Khan| Raaz Ilaahabadi | Muhammad Ilyas Attari | Sayyad Nazmi Miyan

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